वाट्सऐप के प्रमुख विल कैथकार्ट ने एनएसओ के स्पाइवेयर पेगासस की आलोचना की है। उन्होंने इसकी आलोचना तब की है जब 'द गार्डियन' और वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्टों में दावा किया गया है कि दुनियाभर की कई सरकारों ने 50,000 से अधिक नंबरों को ट्रैक करने के लिए इस पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है। इसमें पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, विपक्षी दलों के नेताओं, जजों आदि को निशाना बनाया गया है।
इन्हीं रिपोर्टों के बाद वाट्सऐप के प्रमुख विल कैथकार्ट ने कहा है कि 'एनएसओ के ख़तरनाक स्पाइवेयर का इस्तेमाल दुनिया भर में मानवाधिकारों के घोर हनन के लिए किया जाता है और इसे रोका जाना चाहिए।' पेगासस की रिपोर्ट आने के बाद विल कैथकार्ट ने एक के बाद एक कई ट्वीट किये।
वाट्सऐप प्रमुख का मानवाधिकारों पर ऐसी टिप्पणी इसलिए आई है क्योंकि पेगासस से कथित तौर पर उन लोगों को निशाना बनाया गया है जो या तो सीधे तौर पर मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं या फिर उससे जुड़ा काम करते हैं। पत्रकार, सोशल एक्टिविस्ट भी इनमें शामिल हैं। द गार्डियन की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि दुनिया भर में 180 पत्रकारों को निशाना बनाया गया है। भारत में ही 40 से ज़्यादा पत्रकारों के फ़ोन को निशाना बनाया गया। इनके अलावा, रोना विल्सन, डिग्री प्रसाद चौहान, उमर खालिद, जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सोशल एक्टिविस्टों को निशाना बनाया गया है।
कैथकार्ट ने कहा है कि मानवाधिकार के रक्षकों, तकनीकी कंपनियों व सरकारों को सुरक्षा बढ़ाने व स्पाइवेयर का दुरुपयोग करने वालों को जवाबदेह ठहराने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
विल कैथकार्ट ने कहा, 'उस समय हमने सिटिज़न लैब के साथ काम किया था, जिसने 20 से ज़्यादा देशों में मानवाधिकार रक्षकों और पत्रकारों को ग़लत तरीक़े से 100 से ज़्यादा मामलों में टार्गेट किए जाने की पहचान की थी। लेकिन आज की रिपोर्टिंग से पता चलता है कि दुरुपयोग का वास्तविक पैमाना और भी बड़ा है और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भयानक निहितार्थ हैं।'
उन्होंने अपने एक ट्वीट में वाशिंगटन पोस्ट की एक ख़बर का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि 2019 में वाट्सऐप ने एनएसओ के एक हमले को नाकाम किया था। उन्होंने कहा कि और अधिक कंपनियों और सरकारों के सहयोग से ऐसे क़दम उठाए जाने चाहिए ताकि एनएसओ ग्रुप को ज़िम्मेदार ठहराया जा सके। उन्होंने ग़ैर ज़िम्मेदार निगरानी तकनीक के ख़िलाफ़ वैश्विक एकजुटता की अपील भी की।
उन्होंने कहा, 'यह इंटरनेट पर सुरक्षा के लिए एक सचेत होने वाला समय है। मोबाइल फ़ोन अरबों लोगों के लिए प्राथमिक कंप्यूटर है। सरकारों और कंपनियों को इसे यथासंभव सुरक्षित बनाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। हमारी सुरक्षा और स्वतंत्रता इस पर निर्भर करती है।'
बता दें कि फ्रांस की ग़ैरसरकारी संस्था 'फ़ोरबिडेन स्टोरीज़' और 'एमनेस्टी इंटरनेशनल' ने लीक हुए दस्तावेज़ का पता लगाया है और कई समाचार एजेंसियों और संस्थाओं के साथ साझा किया। इसका नाम रखा गया पेगासस प्रोजेक्ट। इज़रायली कंपनी एनएसओ पेगासस सॉफ़्टवेयर बना कर बेचती है। इस सॉफ़्टवेयर के जरिए टेलीफ़ोन के डेटा चुरा लिए गए, उन्हें हैक कर लिया गया या उन्हें टैप किया गया। 'द गार्जियन', 'वाशिंगटन पोस्ट', 'ला मोंद' ने 10 देशों के 1,571 टेलीफ़ोन नंबरों के मालिकों का पता लगाया और उनकी छानबीन की। उसमें से कुछ की फ़ोरेंसिक जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनके साथ पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया गया था।
भारत में भी देश के 40 पत्रकारों की जासूसी पेगासस सॉफ़्टवेयर के ज़रिए की गई है। इसमें 'हिन्दुस्तान टाइम्स', 'द हिन्दू', 'इंडियन एक्सप्रेस', 'इंडिया टुडे', 'न्यूज़ 18' और 'द वायर' के पत्रकार शामिल हैं। 'द वायर' ने एक ख़बर में यह दावा किया है। 'एनडीटीवी' ने एक ख़बर में कहा है कि इसके अलावा 'संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति' और विपक्ष के तीन नेताओं की जासूसी भी स्पाइवेयर से की गई है।
लीक हुए एक दस्तावेज़ में इन लोगों के नाम हैं। निष्पक्ष व स्वतंत्र एजेंसी ने डिजिटल फ़ोरेंसिक जाँच कर कहा है कि दस्तावेज़ में जिनके नाम हैं, उनकी जासूसी की गई है या कम से ऐसा करने की कोशिश की गई है।