इसराइल ग़ज़ा में हमास और लेबनान में हिजबुल्लाह के ख़िलाफ़ हमला कर रहा है तो ईरान क्यों प्रतिक्रिया कर रहा है? क्या हमास, हिजबुल्लाह के बहाने असली निशाना ईरान है? आख़िर इसराइल ईरान में क्या चाहता है? क्या वह यह चाहता है कि मध्य पूर्व में इसराइल और अमेरिका का विरोध करने वाला कोई नहीं हो और वे अपनी मनमानी कर सकें? तो क्या फ़िलहाल जो मध्य पूर्व में हो रहा है उसका संबंध ईरान में रिजिम यानी सत्ता में बदलाव से है? और यदि ऐसा है तो क्या उसके लिए यह इतना आसान है?
इन सवालों पर जवाब पाने से पहले यह जान लें कि हाल में आख़िर मध्य पूर्व में हुआ क्या है। ताज़ा तनाव तब शुरू हुआ जब कुछ हफ़्ते पहले इसराइल ने लेबनान में पेजर विस्फोट से हिजबुल्ला को निशाना बनाया। इसके बाद वॉकी-टॉकी विस्फोट किए। दो सप्ताह के हवाई हमलों और पिछले सप्ताह हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की हत्या के बाद तनाव और बढ़ गया। हवाई हमलों ने कई हिजबुल्लाह कमांडरों को खत्म कर दिया है, जबकि लगभग 1000 नागरिकों की मौत हो गई है और दस लाख लोगों को अपने घरों से भागने पर मजबूर होना पड़ा है। इसराइल ने कथित तौर पर लेबनान के अंदरुनी क्षेत्रों में जमीनी अभियान तक शुरू कर दिया। इसी बीच ईरान ने बड़ा धमाका किया।
ईरान ने एक साथ क़रीब 200 मिसाइलों से इसराइल को निशाना बनाया। कथित तौर पर उसने एक घंटा पहले ही इसराइल को संदेश भेज दिया था कि वह हमले करने वाला है। तो क्या यह एक संदेश था? इस सवाल के जवाब में विदेश मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार अतुल अनेजा कहते हैं कि ये मैसेज है कि युद्ध नहीं हो, लेकिन यह भी संदेश है कि यदि युद्ध हुआ तो हम पीछे भी नहीं हटेंगे।
अतुल अनेजा मध्य पूर्व में जो हो रहा है उसके पीछे एक बड़ी वजह की ओर इशारा करते हैं। वह कहते हैं कि ये हमले बस यूँ ही नहीं हो रहे हैं। उन्होंने सत्य हिंदी से कहा, 'इसराइल और अमेरिका दोनों का सबसे बड़ा ऑब्जेक्टिव रहा है- रिजिम चेंज का।' रिजिम चेंज यानी सत्ता परिवर्तन का। सत्ता परिवर्तन से मतलब है कि ऐसे लोग सत्ता में आएँ जो पश्चिम की हाँ में हाँ मिलाएँ।
अनेजा कहते हैं, 'वे 1979 युद्ध से रिजिम बदलाव चाहते रहे हैं। 8 साल तक ईरान-इराक युद्ध हुआ, लेकिन शासन नहीं बदला। हत्याएँ तक कराई गईं लेकिन रिजिम नहीं बदला। कोशिश की गई कि ईरान में रिजिम बदलाव के लिए आंतरिक विद्रोह कराया जाए, सैंक्शन जैसा कुछ लगाया जाए ताकि लोग दुखी हो जाएँ, प्रोपेगेंडा फैलाने की कोशिश की जाए ताकि आंतरिक रूप से विद्रोह हो। पर विद्रोह नहीं हुआ।'
वह कहते हैं, 'मुझे नहीं लगता है कि वहाँ का समाज विभाजित है। यदि तथाकथित लिबरल के पास जाएँ तो वे भी नहीं चाहते हैं कि रिजिम हटे। वो सिर्फ़ चाहते हैं कि अंदर सिर्फ़ उदारता हो। वे नहीं चाहते हैं कि ईरान प्रो-अमेरिका हो।'
अनेजा कहते हैं कि 'सैनिक अड्डे, न्यूक्लियर प्लांट के ऊपर इसराइल हमला कर सकता है। बाक़ी इसराइल की क्षमता नहीं है। उसकी यह क्षमता नहीं है कि वह रिजिम बदल सके।'
क्या ईरान युद्ध में जाने को अफोर्ड कर सकता है? क्या वह अकेला पड़ गया है? इन सवालों के जवाब में अतुल अनेजा कहते हैं कि चीन ईरान में बड़े पैमाने पर इंवेस्टमेंट कर रहा है और वह उनके साथ आने को तत्पर है। रूस भी इसको लेकर काफी उत्सुक है।
वह कहते हैं कि रूस अरब स्प्रिंग के समय सीरिया में भी काफी सक्रिय रहा था। वह कहते हैं कि 'ऐसे में अब तीसरे विश्व युद्ध की आशंका हो सकती है, वह भी तब जब एक तरह से ईरान में रिजिम बदलाव के लिए बड़ा हमला हो। या फिर वहाँ आंतरिक विद्रोह होने पर भी ऐसा हो सकता है। ...लेकिन चीन और रूस चाहेंगे कि ईरान में शासक उनके समर्थक हों।'
वह कहते हैं कि 'ईरान का एयर डिफेंस सिस्टम बहुत मज़बूत है। उसके एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल एस300 रूस के हैं। इसको बनाने वाला रूस कंट्रोल कर सकता है। यह बात अमेरिका और इसराइल दोनों को पता है।' अनेजा कहते हैं कि यह सिर्फ़ ईरान नहीं है, बल्कि इसके ऊपर सुरक्षा की एक बाहरी परत है। उन्होंने कहा, 'यह बाहरी परत रूस और चीन हैं। वहाँ पर इंटरेस्ट ब्रिक्स का है जो कि एक नये वर्ल्ड ऑर्डर को दिखाता है। तो ईरान में रिजिम बदलना इसराइल और अमेरिका के लिए इतना आसान नहीं है।'
हालाँकि अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार क़मर आगा कहते हैं कि इसराइल और अमेरिका का असली मक़सद रिजिम बदलने का नहीं है। वह कहते हैं, 'उनका उद्देश्य है कि इतना दबाव बना दो, इंफ्रास्ट्रक्चर तबाह कर दो ताकि ये लोग उनके साथ कंप्रोमाइज कर लें। और वहाँ के जो उदार तबक़े के लोग हैं वे चाहते भी हैं कि पश्चिम से अच्छे संबंध हो। उनको लगता है कि वहाँ डेमोक्रेसी आ गई तो स्थिति इससे ज़्यादा ख़राब होगी। ...ईरान की ख्वाहिश है कि वह इस क्षेत्र में बड़ी ताक़त बने।'
क़मर आगा कहते हैं, 'इसमें एक और बेहद अहम चीज है। अरबों के लिए ईरान एक बहुत बड़ी मुसीबत भी है। अरब नहीं चाहता कि ईरान कोई बड़ा पावर बने, या ईरान का अरब के मुद्दों पर वर्चस्व हो।'
उन्होंने कहा, 'ईरान चाहे न चाहे कि युद्ध हो, लेकिन इसराइल युद्ध ही चाहता है। उनका एक ऑब्जेक्टिव यह है कि हमास, हिजबुल्लाह, हूती, रेबेल, इराक और सीरिया के मिलिशिया से तब तक लड़ते रहेंगे जब तक कि ईरान को हटा न दें। जब तक ईरान कमजोर नहीं होगा तब तक युद्ध चलता रहेगा। ईरान कमजोर होगा तो ये भी ख़त्म हो जाएंगे।'