बंगाल बीजेपी की रथ यात्रा से बिगड़ेगा सांप्रदायिक सद्भाव?

10:19 pm Jan 17, 2021 | प्रमोद मल्लिक - सत्य हिन्दी

क्या भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के पहले सांप्रदायिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है ताकि वह बहुसंख्यक हिन्दू वोटों को अपनी ओर खींच सके? क्या वह एक बार फिर राज्य सरकार से तनातनी की स्थिति पैदा कर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को चुनौती देना चाहती है?

पाँच रथ, 294 सीट

ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के पहले बीजेपी ने राज्य-व्यापी रथयात्रा का आयोजन किया है। इसके तहत पाँच रथ निकाले जाएंगे जो राज्य के सभी 294 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेंगे। दिल्ली में हुई बैठक में इस पर फ़ैसला किया गया है। इस बैठक में पार्टी अध्यक्ष जे. पी. नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह के अलाना पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप घोष भी मौजूद थे।

क्या है बीजेपी की रणनीति?

यह निर्णय किया गया कि ये रथ यात्राएं इस तरह निकाली जाएंगी कि सोमवार को शुरू होंगी और पूरे सप्ताह चलती रहेंगी। इसमें राज्य नेतृत्व के अलावा केंद्रीय नेतृत्व के लोग भी रहेंगे। इस यात्रा के दौरान राज्य सरकार को निशाने पर लिया जाएगा और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को घेरने की कोशिश की जाएगी। 

पश्चिम बंगाल बीजेपी के इस फ़ैसले पर सवाल इसलिए उठता है कि इसने 2019 में लोकसभा चुनाव के पहले ठीक यही योजना बनाई थी। उसने तीन रथ यात्राएं निकालने की योजना बनाई थी। राज्य सरकार ने यह कह कर अनुमति नहीं दी थी कि इससे सांप्रदायिक तनाव पैदा होगा और क़ानून व्यवस्था भंग हो सकती है।

रथ यात्रा विवाद

इस पर बहुत विवाद हुआ। बीजेपी यह मामला अदालत ले गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह फिर से राज्य सरकार के पास अर्जी दे। अंत में बीजेपी ने वह कार्यक्रम रद्द कर दिया क्योंकि उसने यह जानकारी मिलने लगी थी कि उसकी रथयात्रा को जनता से बहुत अधिक समर्थन मिलने की संभावना नहीं है। 

तृणमूल कांग्रेस लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा का हवाला दे कर कह रही थी कि इससे पूरे राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ेगा। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल बीजेपी ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया था कि वह लोकतंत्र का गला घोंट रही है और विपक्ष को अपना काम नहीं करने दे रही है।

लेकिन इसके बहाने राज्य में सांप्रदायिक तनाव का माहौल कुछ हद तक पैदा हो गया था।

विस्फोटक स्थिति?

इस बार की स्थिति पहले से अधिक विस्फोटक है। पश्चिम बंगाल बीजेपी राज्य सरकार पर मुसलिम तुष्टीकरण का आरोप लगा रही है और बहुसंख्यक हिुन्दुओं की उपेक्षा ही नही, उनके दमन का आरोप भी लगा रही है। इसके साथ ही ऑल इंडिया मुत्तहिदा मजलिस-ए-मुसलिमीन (एआईएमआईएम) भी इस बार बड़े पैमाने पर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में भाग ले रहा है। 

इस तरह एक तरफ उग्र हिन्दुत्व की बात करने वाली बीजेपी होगी तो दूसरी ओर मुसलिमों के साथ भेदभाव के आरोप लगा रहा एआईएमआईएम होगा। ये दोनों ही दल उग्र विचारधारा का समर्थन करने के लिए जाने जाते हैं, एक हिन्दुओं के साथ भेदभाव की बात करता है तो दूसरी मुसलमानों का।

ऐसे में पूरे राज्य में जब एक बाद एक पाँच रथयात्राएं निकलेंगी और उन पर सवार बीजेपी नेता खुले आम हिन्दुओं को यह कह कर भड़काएंगे कि उन्हें दुर्गापूजा विसर्जन तक नहीं करने दिया गया तो स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।

बीजेपी-एआईएमआईएम-टीएमसी

इसे इससे भी समझा जा सकता है कि एआईएमआईएम प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी ने राजधानी कोलकाता के पास स्थिति फुरफुरा शरीफ़ दरगाह के प्रमुख से मुलाकात की।

दरगाह के प्रमुख सत्तारूढ़ दल टीएमसी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विरोधी माने जाते हैं। दूसरी ओर, एआईएमआईएम ने राज्य के 346 ब्लॉक में से 200 से अधिक ब्लॉक में अपना कार्यालय खोल लिया है।

मुसलमानों के नाम पर बने दल एआईएमआईम के चुनाव लड़ने से हिन्दुत्व की बात करने वाली बीजेपी को ही फ़ायदा होगा। टीएमसी ने उसे बीजेपी की 'बी' टीम तक कहा है। लेकिन यही बीजेपी 'बी' टीम असली बीजेपी के साथ मिल कर टीएमसी को उखाड़ने की तैयारी में हैं।

दोनों के सामने तृणमूल कांग्रेस है। वही तृणमूल कांग्रेस, जिस पर बीजेपी मुसलिम तुष्टीकरण का आरोप लगाती है तो एआईएमआईएम मुसलमानों की उपेक्षा करने का आरोप मढ़ता है। 

क्या करेगी ममता सरकार?

सवाल है कि ऐसे में राज्य सरकार क्या करेगी। यदि राज्य सरकार ने अनुमति दे दी तो यह बीजेपी की नैतिक जीत तो होगी ही, यदि राज्य में तनाव बढ़ा तो उसके लिए राज्य सरकार ज़िम्मेदार ठहराई जाएगी। लेकिन राज्य सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी तो बीजेपी इसे लेकर लोगों के पास जाएगी और कहेगी कि उसे तो ठीक से अपनी बात तक कहने का मौका नहीं दिया जा रहा है। वह विक्टिम कार्ड खेलेगी और राज्य सरकार फंस जाएगी। 

रथ यात्रा के जरिए बीजेपी ममता बनर्जी सरकार को आगे कुँआ-पीछे खाई की स्थिति में ला खड़ा करेगी, यह सच है। इससे उसे कोई नुक़सान नहीं होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार इससे कैसे निबटती है, वह पश्चिम बंगाल बीजेपी के फेंके जाल को कैसे काटती है। 

क्या इस बार ममता बनर्जी कमज़ोर पड़ रही हैं? देखें, क्या कहना है वरिष् पत्रकार आशुतोष का।