डॉक्टरों के आंदोलन पर चढ़ा सियासी रंग, ममता पड़ीं अलग-थलग

05:13 pm Jun 15, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों की हड़ताल ने विकराल रूप तो ले ही लिया है, यह अब सियासी रंग भी लेने लगा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर स्वास्थ्य सेवा जैसे मामले में भी ख़ास समुदाय को खुश करने का आरोप लगने लगा है। बीजेपी ने तृणमूल कांग्रेस को घेरने के लिए इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्ष वर्द्धन ही नहीं, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी में इस मामले में कुछ अधिक ही दिलचस्पी लेने लगे हैं। और तो और, खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नज़दीक के लोगों ने उनकी आलोचना शुरू कर दी है। ऐसा लगने लगा है कि मामला अब मुख्यमंत्री के हाथ से फिसलने लगा है।

कोलकाता के नील रतन सरकार मेडिकल कॉलेज में एक रेजिडेंट डॉक्टर पर हुए हमले के बाद आंदोलन बेहद तेज़ी से फैला और पूरी व्यवस्था ही लुंज पुंज दिख रही है। डाक्टरों की हड़ताल बंगाल से निकल कर दिल्ली पहुँची जहाँ ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइसेंज यानी एम्स के रेजिडेंट डॉक्टरों ने एक दिन की हड़ताल की। उन्होंने उसके बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को दोषियों को गिरफ़्तार करने और हड़ताली डॉक्टरों की माँग मानने के लिए 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया है। उन्होंने यह भी कहा है कि वे इसके बाद सोमवार को पूरे देश में हड़ताल करेंगे।

हमलावर मुसलमान, तृणमूल समर्थक

शुरुआत एक मामूली घटना से हुई। एक रोगी मुहम्मद सईद की मौत के बाद उसके परिजनों ने इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हुए ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर परिबाह मुखर्जी को पीट दिया। इसके बाद डॉक्टरों ने बेमियादी हड़ताल कर दी। तुनकमिजाजी समझी जाने वाली ममता बनर्जी ने इसे सदाशयता से निपटाने के बदले डॉक्टरों को 4 घंटे के अंदर काम पर लौटने का आदेश दे दिया। इसने आग में घी का काम किया।

मामले का पेच यहीं फँसा हुआ है। जिस व्यक्ति की मौत हुई, वह मुसलमान था। उसके परिजन तृणमूल कांग्रेस के समर्थक हैं। ममता पर यह आरोप लग रहा है कि उन्होंने इस मामले में कड़ी कार्रवाई इसलिए नहीं की क्योंकि वह मुसलमानों के प्रति नरम दिखना चाहती हैं। दूसरे, वे लोग उनकी पार्टी के समर्थक तो हैं ही।

सवाल यह पूछा जा रहा है कि क्या राज्य सरकार या सत्तारूढ़ दल स्वास्थ्य जैसे मुद्दे पर भी किसी समुदाय विशेष को खुश करने की कोशिश करेगा। यह एक ऐसा पेच है, जिसका फ़ायदा उठाने की जुगत में बीजेपी है। तृणमूल के लोग भी इस मुद्दे पर दीदी से नाराज़ हो गए हैं।

राज्यपाल की दिलचस्पी

इस मामले ने राजनीतिक रूप ले लिया। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने परिबाह मुखर्जी से मुलाक़ात की, हाल चाल पूछा। उसके बाद उन्होंने अपरोक्ष रूप से ममता बनर्जी पर चोट भी कर दी। 

मैंने मुख्यमंत्री से संपर्क करने की कोशिश की, मैंने उन्हें फ़ोन किया। अब तक उनके यहाँ से कोई जवाब नहीं आया है। यदि उन्होंने फ़ोन किया तो मैं बात करूँगा।


केशरी नाथ त्रिपाठी, राज्यपाल, पश्चिम बंगाल

यहाँ यह दिलचस्प है कि त्रिपाठी जिस उत्तर प्रदेश के हैं, वहाँ भी डॉक्टरों को निशाना बनाया जा चुका है। क्या इस पर भी उन्होंने चिंता जताई थी, यह सवाल पूछना लाज़िमी है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री की सलाह

जिस तरह उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व स्पीकर और बीजेपी के नेता रहे केशरीनाथ त्रिपाठी ने इस मामले में दिलचस्पी दिखाई, उसी तरह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्ष वर्द्धन ने भी रुचि ली। उन्होंने ममता बनर्जी को पत्र लिख कर सलाह दी कि इस मामले को सहृदयता से निपटाएँ। उन्होंने लिखा, ‘पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों की हड़ताल खत्म होने का नाम नहीं रही है, इसके उलट मामला और गंभीर होता जा रहा है। हड़ताली डॉक्टरों से बेहतर संवाद और सहृदयता से बात करने से रोज़मर्रा की दिक्क़तों से निपटा जा सकता है और उस स्थिति से बचा जा सकता है, जो पैदा हो गई है।’ 

राज्य सरकार जल्द से जल्द ऐसा कठोर क़ानून पारित करे जिससे डॉक्टरों पर हमला करने वालों को कम से कम 12 साल जेल की सज़ा हो जाए। इसके साथ ही पहले से मौजूद क्लिनिकल मेडिकल एक्ट को भी ख़त्म कर दिया जाए।


हर्ष वर्द्धन, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री

दिलचस्प बात यह है कि हर्षवर्द्धन स्वयं डॉक्टर हैं। बीजेपी शासित राज्यों में भी ऐसा क़ानून नहीं है जिसके तहत डॉक्टरों पर हमला करने की स्थिति में 12 साल की जेल की सज़ा दे दी जाए। इतना ही नहीं, एम्स में कुछ महीने पहले ही इसी तरह की एक वारदात में डॉक्टरों पर हमला हुआ था, उस समय डॉक्टर हर्ष वर्द्धन चुप थे, तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री ने भी कोई बयान नहीं दिया था।

पश्चिम बंगाल सरकार ने हड़ताल कर रहे डॉक्टरों को बातचीत करने का प्रस्ताव रखा और उन्हें सचिवालय बुलाया, पर डॉक्टरों ने यह कह कर वहाँ जाने से इनकार कर दिया कि ममता ख़ुद आएँ। राज्य के मेडिकल शिक्षा विभाग के निदेशक डॉक्टर प्रदीप मित्र ने भी डॉक्टरों से मुलाक़ात की, पर नतीजा सिफ़र रहा। राज्य के लगभग 700 वरिष्ठ डॉक्टरों ने इस्तीफ़ा दे दिया है, हालाँकि राज्य सरकार ने किसी का इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं किया है।

अपनों ने भी किया विरोध

यह मामला कितना गंभीर है, उसे इससे समझा जा सकता है कि विरोधी ही नहीं, ममता बनर्जी के नज़दीक के लोगों ने भी उनकी आलोचना शुरू कर दी है। कोलकाता के मेयर और मुख्यमंत्री के नज़दीक समझे जाने वाले फ़रहाद हक़ीम के बेटी शब्बा ने कहा कि सरकार इस मुद्दे पर सक्रिय नहीं रही है। 

डॉक्टर शब्बा हक़ीम

हर डॉक्टर को सुरक्षा माँगने का पूरा हक़ है। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता इस मुद्दे पर सरकार की सक्रियता की कमी से शर्मिंदा हैं।


डॉक्टर शब्बा हक़ीम

इसके साथ ही ममता बनर्जी के भतीजे आबेश बनर्जी ने भी विरोध किया। उन्होंने जादवपुर से सियालदह स्थित एनआरएस मेडिकल कॉलेज तक के पदयात्रा की अगुआई की।

बांग्ला फ़िल्मों की बेहद लोकप्रिय अभिनेत्री और फ़िल्म निर्देशक अपर्णा सेन ने भी इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री की आलोचना की है। उन्होंने ममता बनर्जी से अपील की कि वह स्वयं बाहर आएँ और डॉक्टरों से मुलाक़ात करें। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों के साथ सहृदयता से बात करनी चाहिए, वैसे ही जैसी कोई माँ अपने बच्चों से बात करती हो। तृणमूल कांग्रेस की सांसद काकोल घोष दस्तीदार ने भी सरकार की आलोचना कर दी। विधान नगर के मेयर सव्यसाची दत्त ने कहा कि डॉक्टरों से माफ़ी माँगने मे कोई बुराई नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि उन्हें अपने छात्रों के आगे झुकना पड़े, सिर झुका कर माफ़ी माँगनी पड़े तो वह इसके लिए भी तैयार हैं।

यह साफ़ है कि मामला अब सिर्फ़ डॉक्टरों तक सीमित नहीं है। यह एक आंदोलन बनता जा रहा है। ममता बनर्जी इसमें अकेली और अलग-थलग पड़ती जा रही हैं। उन्हें जल्द से जल्द इस मामले को निपटाना होगा।