राष्ट्रपति मुर्मू पर टिप्पणी को लेकर बंगाल में क्यों हुआ बवाल?

12:34 pm Nov 17, 2022 | प्रभाकर मणि तिवारी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने मंत्री अखिल गिरि की ओर से राष्ट्रपति के चेहरे-मोहरे पर की गई विवादास्पद टिप्पणी के लिए माफ़ी मांग ली है। बीजेपी इस मुद्दे पर लगातार धरना और प्रदर्शन कर रही है। लेकिन सवाल उठ रहा है कि क्या राज्य के आदिवासी वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए ही ममता ने इस मामले में माफी मांगी है? और क्या इसी को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने इस मुद्दे को इतना तूल दिया है?

क्या था मामला

दरअसल, हाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के विधायक और मत्स्य पालन मंत्री अखिल गिरि की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के चेहरे-मोहरे पर की गई एक टिप्पणी पर राज्य में बवाल पैदा हो गया। विधायक गिरि ने नंदीग्राम में कहा था, ‘शुभेंदु का कहना है कि मैं सुंदर नहीं हूँ।  हम किसी को उसके रूप से नहीं आँकते। हम राष्ट्रपति के पद का सम्मान करते हैं। लेकिन हमारी राष्ट्रपति कैसी दिखती हैं?’ विवाद बढ़ने के बाद उन्होंने कहा, ‘मेरा आशय माननीय राष्ट्रपति का अनादर करने से नहीं था। मैं केवल उन बयानों का जवाब दे रहा था जो भाजपा नेताओं ने मुझ पर हमला करते हुए दिए हैं। अगर किसी को लगता है कि मैंने राष्ट्रपति का अनादर किया है, तो मैं इस बयान के लिए माफी मांगता हूं। देश के राष्ट्रपति का मैं बहुत सम्मान करता हूं।’

लेकिन अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव से पहले अपने बिखरते कुनबे को जोड़ने का प्रयास कर रही भाजपा ने इस मुद्दे को लपक लिया। भाजपा सांसद लॉकेट चटर्जी ने गिरि के खिलाफ दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। चटर्जी ने गिरि के खिलाफ आईपीसी और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) अधिनियम की धाराओं के तहत तत्काल कार्रवाई की भी मांग की है। मालदा में भी गिरि के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। बांकुड़ा और पुरुलिया जिले में कई स्थानों पर आदिवासियों और भाजपा कार्यकर्ताओं ने विरोध-प्रदर्शन किया। आदिवासियों ने ममता बनर्जी सरकार के एक अन्य मंत्री ज्योत्सना मांडी के काफिले को बांकुड़ा में लगभग आधे घंटे तक रोक कर प्रदर्शन किया।

भाजपा के नेता और तमाम आदिवासी संगठन अखिल गिरि को मंत्रिमंडल से हटाने और उनको गिरफ्तार करने की मांग कर रहे हैं। इस मुद्दे पर बवाल बढ़ता देख आखिर ममता बनर्जी ने गिरि के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई करने की बजाय उनकी ओर से माफी मांग ली। ममता ने कहा, ‘मैं किसी व्यक्ति के बाहरी सौंदर्य पर विश्वास नहीं करती हूँ। महज बाहर से दिखने में कुछ नहीं होता है। वे बहुत ही अच्छी हैं।

अखिल ने अन्याय किया है। मैं निंदा करती हूं। अपने विधायक के बयान के लिए मैं दुखी हूं और माफी मांगती हूं।’ ममता का कहना था कि राष्ट्रपति के प्रति उनके मन में बेहद सम्मान है। उन्होंने कहा कि पीएम हों या राष्ट्रपति मैं किसी पर व्यक्तिगत रूप से कोई टिप्पणी नहीं करती हूं। उन्होंने कहा कि पार्टी की ओर से विधायक को चेतावनी दी गयी है। पार्टी ने भी उनकी टिप्पणी की निंदा की है। अगर भविष्य में ऐसा कुछ हुआ तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

लेकिन आखिर इस मुद्दे पर बवाल इतना क्यों बढ़ गया? राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि आदिवासी वोट बैंक ही इसकी सबसे बड़ी वजह है।

खासकर झारखंड से सटे आदिवासी बहुल इलाक़ों और उत्तर बंगाल के कई आदिवासी बहुल इलाक़ों में भाजपा की पैठ लगातार मजबूत हुई है। एक आदिवासी राष्ट्रपति के खिलाफ की गई टिप्पणी को हथियार बना कर पार्टी इस पैठ को और मजबूत करने का प्रयास कर रही है। दूसरी ओर, आदिवासियों को अपने खेमे में लौटाने के प्रयास में जुटी ममता के लिए भी इस मुद्दे पर माफी मांगना मजबूरी थी।

राज्य में आदिवासी वोट बैंक के समीकरणों से तसवीर और साफ़ होती है। राज्य में कुल वोटरों में क़रीब आठ फ़ीसदी आदिवासी हैं। और अगर जंगलमहल के चार और उत्तर बंगाल के आठ संसदीय क्षेत्रों को ध्यान में रखें तो यह तादाद करीब 25 फीसदी पहुंच जाती है। यानी आदिवासी वोटर ही निर्णायक स्थिति में हैं। आदिवासी इलाकों में मिले ठोस समर्थन के कारण ही भाजपा ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी सीटों की तादाद दो से बढ़ा कर 18 तक पहुंचा दी थी। उसने जंगलमहल की चार और उत्तर बंगाल की छह सीटों पर कब्जा कर लिया था। लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने बीते साल हुए विधानसभा चुनाव में वापसी करते हुए जंगलमहल इलाके में शानदार कामयाबी हासिल की थी।

तृणमूल कांग्रेस और भाजपा की निगाहें जंगलमहल इलाके में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के क़रीब 40 फीसदी वोटों पर हैं। ममता वहां बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति पर बढ़ रही हैं। ममता नए सिरे से जंगल महल में पांव जमाने की कवायद में जुटी हैं। उनकी ओर से गठित दलित साहित्य अकादमी को भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। अकेले बांकुड़ा जिले में विधानसभा की 12 सीटें हैं और जिले में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की आबादी 38.5 प्रतिशत है। किसी दौर में उस इलाके को वामपंथियों का वोट बैंक माना जाता था।

ममता ने सत्ता में आने के बाद इलाके में शांति बहाल करने की कामयाबी लेकर अपनी पैठ बनाई थी। लेकिन उसके बाद सरकारी योजनाओं से मोहभंग होने की वजह से इलाके के आदिवासी लगातार भाजपा का समर्थन करते रहे हैं।

चुनाव आयोग के आँकड़ों को ध्यान में रखें तो वर्ष 2014 में भले भाजपा को तृणमूल कांग्रेस से मुंह की खानी पड़ी हो, जंगलमहल इलाके में उसे मिलने वाले वोट बढ़ कर 20 प्रतिशत तक पहुंच गए थे।  उसके बाद वर्ष 2018 के पंचायत चुनावों में भगवा पार्टी को 27 प्रतिशत वोट मिले थे। खासकर झाड़ग्राम, पुरुलिया और बांकुड़ा जिलों में पार्टी को भारी कामयाबी मिली थी।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता खुद भी आदिवासियों के बीच अपनी पैठ बनाने में जुटी हुई हैं। बिरसा मुंडा जयंती से जुड़े समारोह में शामिल होने के लिए उन्होंने इसी सप्ताह झाड़ग्राम का भी दौरा किया था। सरकार ने हाल ही में इस दिन को अवकाश के रूप में घोषित किया था।

ऐसे में अपने मंत्री गिरि की मुर्मू की टिप्पणी उनकी रणनीतियों पर पानी फेरती नजर आ रही थी। वह सियासी रूप से घिरती नजर आ रही थीं। इसलिए इस मामले को शीघ्र रफा-दफा करना जरूरी था। शायद इसीलिए ममता ने खुद फ्रंट पर आते हुए माफी मांगने में ही भलाई समझी।