कोलकाता पुलिस के कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करने उनके घर गई सीबीआई टीम के कुछ लोगों हिरासत में लेकर स्थानीय पुलिस ने सनसनी मचा दी है। इसके अलावा ख़ुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ बेजीपी पर ज़बरदस्त हमला कर दिया। उन्होंने इसे लोकतंत्र को कुचलने की केंद्र सरकार की कोशिश क़रार दिया और धरने पर बैठ गई। इससे एक अहम सवाल यह उठ खड़ा हुआ कि क्या राज्य सरकार केंद्रीय जाँच एजेन्सी को इस तरह कार्रवाई करने से रोक सकती है
सीबीआई बनाम राज्य: कोलकाता पुलिस ने सीबीआई के लोगों को हिरासत में लिया, रिहा किया
इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए हमें कुछ महीने पीछे की एक घटना की ओर लौटना होगा। कुछ दिनों पहले आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने अपने-अपने राज्य में जाँच के लिए सीबीआई को दी गई अनुमति वापस ले ली थी। इससे यह बहस छिड़ गई। इससे राज्य-केंद्र सम्बन्धों और संविधान के संघीय ढांचे पर विचार एक बार फिर शुरू हो गया। क्या किसी राज्य सरकार को यह हक़ है कि वह केंद्रीय एजेंंसियों को उसके कामकाज से रोके या अड़चन डाले ऐसा किए जाने पर केंद्र सरकार क्या कर सकती है, यह सवाल भी उठना लाज़िमी है।
उस समय दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर नायडू का समर्थन किया था। उन्होंने यह सवाल भी उठाया था कि सीबीआई नोटबंदी और रफ़ाल जैसे मुद्दों की जाँच क्यों नहीं कर रही है। उन्होंने ट्वीट कर केंद्र सरकार से सवाल पूछे थे।
क्या कहते हैं नियम
सीबीआई की स्थापना दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिशमेंट एक्ट, 1946, के तहत हुई थी और यह उसी के तहत काम भी करती है। इस क़ानून की धारा पांच में सीबीआई को पूरे देश में कहीं भी काम करने की छूट दी गयी है। पर इसी नियम की धारा छह में साफ़-साफ़ कहा गया है कि दिल्ली के बाहर यानी दूसरे राज्य और केंद्र प्रशासित क्षेत्रों में स्थानीय सरकार की पूर्व अनुमति के बग़ैर सीबीआई कोई जांच नहीं कर सकती है। अदालत उसे जांच की अनुमति दे, उसके बाद इस जांच एजेंसी को राज्य सरकार की सहमति की ज़रूरत नहीं होगी। दिल्ली हाई कोर्ट ने इसी साल 11 अक्टूबर दिए एक आदेश में स्पष्ट किया कि यदि कोई मामला दिल्ली में दर्ज है, लेकिन राज्य सरकार पहले से दी गई सहमति रद्द कर देती है, तो सीबीआई राज्य सरकार की अनुमति के बग़ैर भी जाँच कर सकती है।क्या हुआ था कर्नाटक में
दिल्ली हाई कोर्ट ने 11 अक्टूबर, 2018 को दिए एक आदेश में स्पष्ट किया कि यदि कोई मामला दिल्ली में दर्ज है, लेकिन राज्य सरकार पहले से दी गई सहमति रद्द कर देती है, तो सीबीआई राज्य सरकार की अनुमति के बग़ैर भी जाँच कर सकती है। यह पहला मौका नहीं है जब किसी राज्य सरकार ने सीबीआई को पहले से दी गई सहमति वापस ले ली है। कई राज्यों ने ऐसा किया है। साल 1998 में कर्नाटक में ऐसा ही हुआ था। मुख्यमंत्री जेएच पटेल के नेतृत्व में जनता दल सरकार ने सीबीआई को दी हुई सहमति रद्द कर दी। उसके कुछ दिन बाद ही कांग्रेस की सरकार बनी और एसएम कृष्णा मुख्यमंत्री बने। लेकिन उस सरकार ने यह सहमति फिर से बहाल करने की ज़रूरत नहीं समझी। आज लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे उन दिनों कर्नाटक के गृह मंत्री थे। इसके बाद आठ साल तक कर्नाटक सरकार ने सीबीआई को यह सहमति नहीं दी।क्या असर पड़ेगा
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार केंद्रीय एजेंसी का बेज़ा इस्तेमाल कर उनकी सरकार को अस्थिर करना चाहती है। उन्होंने कहा कि वाईएस जगनमोहन रेड्डी के साथ मिल कर भारतीय जनता पार्टी के साथ साज़िश करती रही है ताकि उनकी सरकार को उखाड़ फेंका जा सके।बीते दिनों आयकर विभाग ने तेलुगु देशम पार्टी के सांसद सीएम रमेश के कई ठिकानों पर छापे मारे थे। सीबीआई आंध्र प्रदेश से जुड़े सिर्फ़ दो मामलों की जाँच फ़िलहाल कर रही है। ये मांस व्यापारी मोईन क़ुरैशी और सना सतीश बाबु से जुड़े मामले हैं। लेकिन ये मामले दिल्ली में रिजस्टर्ड हैं। लिहाज़ा, जाँच पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
क्या होगा पश्चिम बंगाल में
सीबीआई पश्चिम बंगाल में शारदा चिटफंड घोटाला, नारद टेप कांड और रोज़ वैली पॉन्जी स्कीम की जाँच कर रही है। पर इन मामलों की जाँच अदालत के कहने पर हो रही है। लिहाज़ा, इनकी जाँच पहले की तरह ही चलती रहेगी। पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा सरकार ने 1989 में पहली बार सीबीआई को राज्य में जाँच करने या छापा डालने की सामान्य सहमति दी थी। यह भी पहली बार नहीं है कि केंद्र सरकार पर सीबीआई के राजनीतिक इस्तेमाल करने और अपने सियासी विरोधियों को परेशान करने के लिए इसका इस्तेमाल करने के आरोप लगे हैं।
बाीजेपी जब विपक्ष में थी, उसने भी केंद्र सरकार पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। पर आज उस पर भी वही आरोप लग रहे हैं। ज़ाहिर है, यह आरोप बेबुनियाद नहीं कहा जा सकता है।