इज़राइल की क्रूरता के साथ उसकी अश्लीलता और उसके झूठ के नमूने रोज़ रोज़ दुनिया के सामने आ रहे हैं। कहना ग़लत न होगा कि इनके बिना इज़राइल की कल्पना नहीं की जा सकती। आख़िर वह देश और कैसा हो सकता है जो दूसरों की ज़मीन लूट कर, उनका क़त्लेआम करके ही क़ायम किया गया हो !
इज़राइल के विषय में यह बात जितनी सही है उतनी ही अमेरिका और यूरोप के ज़्यादातर देशों के बारे में जिनमें जर्मनी भी शामिल है।अमेरिका इन सबके साथ इज़राइल के झूठ को और ज़ोर देकर प्रचारित और प्रसारित करता है और उसकी क्रूरता को मानवता कहकर जायज़ ठहराता है।
अभी दो रोज़ पहले इज़राइल की तरफ़ से वीडियो जारी किया गया जिसमें दर्जनों फ़िलिस्तीनी सिर्फ़अंडरवियर पहने हुए पूरी तरह नंगे, आँखों पर पट्टी बाँधे हुए घुटने टेके बैठे दिख रहे हैं। इज़राइल ने दावा किया कि ये हमास के लड़ाके हैं जिनको इज़राइल की फ़ौज ने हथियार डालने पर मजबूर किया है। तुरंत मालूम हो गया कि ये साधारण नागरिक हैं। इनमें दुकानदार, डॉक्टर, पत्रकार, अध्यापक शामिल थे। इज़राइल ने दूसरा वीडियो जारी किया। इसमें एक व्यक्ति एक हाथ में हथियार लेकर सामने आता दिखलाई पड़ता है। दूसरे वीडियो में वही आदमी दूसरे हाथ में हथियार लिए दिखलाई पड़ता है। फ़ौरन मालूम हो गयाकि यह सब कुछ इज़राइल का झूठा प्रचार है।
इज़राइल को इस झूठ पर शर्म नहीं है। उसके प्रवक्ता से जब पूछा गया कि क्यों फ़िलिस्तीनियों को इस तरह नंगा करके उनका वीडियो बनाया और प्रसारित किया गया तो उसने कहा कि मध्य पूर्व में बहुत गर्मी पड़ती है, इसलिए कपड़े उतरवाए होंगे। इस तरह का उत्तर देने के लिए ख़ासी ढिठाई और बेशर्मी चाहिए और उसकी इज़राइल में कोई कमी नहीं है।
फ़िलिस्तीनियों को नंगा क़रके उन्हें अपमानित करने में इज़राइल को ख़ास मज़ा आता है। उनके अस्पतालों और पनाहगाहों को जलाने और उनमें बेसहारा लोगों को मार डालने में भी।
इज़राइल की यह अश्लीलता और क्रूरता सिर्फ़ उसकी सरकार की नहीं। उसके समाज में यह गहरे बैठी है। साथ साथ इज़राइल की हिंसा के समर्थक ज़ायनवादियों में भी। ग़ज़ा में हज़ारों लोगों के क़त्ल को इज़राइल यह कहकर जायज़ ठहरा रहा था कि हमास के लोग उनके बीच छिपे हैं। लेकिन इस बीच पश्चिमी तट पर फ़िलिस्तीनियों के घरों से उनको बेदख़ल करके उनपर क़ब्ज़ा और उनकी हत्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रहीहै। इसे हमास को खोजने के नाम पर जायज़ ठहराना कठिन है लेकिन इसे लेकर इज़राइल को कोई झेंप भी नहीं है। अमेरिका ने धमकी दी है कि इस प्रकार की हिंसा में शामिल लोगों पर वह पाबंदी लगाएगा। लेकिन सबको पता है कि वह कुछ नहीं कर सकता और कुछ करना चाहता भी नहीं क्योंकि इस बेदख़ली और हिंसा में दशकों से अमेरिकी यहूदी या ज़ायनवादी अमेरिकी नागरिक शामिल रहे हैं। वे उड़कर इज़राइल आते हैं और इज़राइली सरकार के साथ मिलकर फ़िलिस्तीनियों को उनके घरों से बेदख़ल करके उन पर क़ब्ज़ा करते हैं।
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युद्ध में हिंसा होती है। लेकिन क्रूरता एक अलग चीज़ है। युद्ध में हत्या होती है और उसकी मजबूरी को समझा जा सकता है।लेकिन इज़राइली सैनिक फ़िलिस्तीनियों की हत्या और उनकी तबाही को लेकर जश्न मनाते जिस क़िस्म के वीडियो बना रहे हैं उसे देखकर उस समाज की विकृति का अन्दाज़ मिलता है।
बमबारी में एक दुकान का तबाह हो जाना एक बात है लेकिन उस तबाह दुकान में घुसकर खिलौनों को तोड़ने वाला मनोरोगी ही हो सकता है। किसी घर या इमारत के मलबे पर अपने प्रेमी से प्रणय निवेदन करना किसी गहरी मानसिक बीमारी के बिना संभव नहीं। या किसी नष्ट कर दिए गए घर में घुसकर औरतों के अंतःवस्त्रों का वीडियो भी नैतिक रूप से विकृत व्यक्ति ही बना सकता है।
ये सारे सैनिक नौजवान हैं। इनमें से जो बचकर लौटेंगे वे घर बसाएँगे, बच्चे पैदा करेंगे और उन्हें अपनी शक्ल में ढालेंगे, वे अध्यापक, डॉक्टर, वकील बनेंगे, वे ही इज़राइली समाज को आगे ले जाएँगे। इज़राइली समाज को यह सब देखकर अपने बारे में चिंतित होने की ज़रूरत है। उन्हें हमास की जगह इस विकृति से लड़ने की ज़रूरत है। लेकिन वह ऐसा करने की इच्छा भी रखता है या नहीं इसमें शक है। जो सैनिक नहीं हैं, वे भी फ़िलिस्तीनी बच्चों का क़त्लेआम करने की माँग करने वाले वीडियो बना रहे हैं। वे मारे गए बच्चों और औरतों का मज़ाक़ उड़ाते हुए गाने रिकॉर्ड कर रहे हैं। खुलेआम फ़िलिस्तीनियों की नस्लकुशी की माँग कर रहे हैं।
इज़राइल के साधारण लोग, और उनमें औरतें शामिल हैं, उन मिसाइलों पर अपने नाम और संदेश लिख रहे हैं जिन्हें फ़िलिस्तीनियों पर दागा जाना है। इनमें उनके धर्मगुरु भी हैं।
दो महीने से ज़्यादा के जनसंहार में इज़राइल कोई 10000 बच्चों को मार चुका है या उन्हें अपाहिज बना चुका है। हर 15 मिनट में एक बच्चे की हत्या इज़राइल कर रहा है। कोई 1300 परिवारों का पूरी तरह विनाश कर दिया गया है, यानी उनका कोई नामलेवा नहीं बचा है। ग़ज़ा के अभिलेखागार, उसकी अदालत, संसद, उसके स्कूलों, विश्वविद्यालयों, मस्जिदों और गिरिजाघरों को ज़मींदोज़ कर दिया गया है। क्या यह हमास की खोज में किया जा रहा है।
इज़राइल अपने इस जनसंहार को सही ठहराने के लिए जो भी सबूत दे रहा है, उनमें से प्रायः सब झूठ साबित हुए हैं। इसके बावजूद इज़राइल की जनता में इस जनसंहार के लिए ख़ासा समर्थन है और एक बड़ी संख्या की यह समझ है कि अभी भी इज़राइल फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ पर्याप्त हिंसा का इस्तेमाल नहीं कर रहा।
इज़राइल के नेता ख़ुद को उजाले के लोग और फिलिस्तीनियो को अँधेरे के लोग कह रहे हैं। वे नाराज़ हो जाते हैं जब उन्हें क्रूर कहा जाता है। उनका दावा है कि वे पश्चिमी सभ्यता के मूल्यों की रक्षा का युद्ध लड रहे हैं। पश्चिमी देश भी पूरी ताक़त के साथ इस जनसंहार में इज़राइल की पीठ पर खड़े हैं।
अमेरिका और यूरोप के नौजवान ग़ज़ा के वीडियो देख रहे हैं और अपनी सभ्यता की असलियत को पहचान रहे हैं। आख़िर इज़राइल तो पश्चिम की ही संतान है। पश्चिम ने ही अरब ज़मीन पर इज़राइल को थोपा है। इज़राइल की क्रूरता और उसकी बेहयायी के लिए जितना वह ज़िम्मेवार है, उतना ही पश्चिमी दुनिया भी। इज़राइल के 75 साल का इतिहास इस बात का गवाह है कि जिस जनसंहार और मानवद्वेष के कारण वह वजूद में आया, आज वह धरती पर जनसंहार और मानवद्वेष की संस्कृति के सबसे ख़ूँख़ार और घिनौनेप्रतीक के तौर पर देखा जा रहा है। इज़राइल के प्रति फिर दुनिया में अगर घृणा नहीं तो और कौन सा भाव पैदा होगा?