रामकथा 'नाटक' से आहत भाजपा/संघ छात्रों से क्यों बदला ले रहे हैं?

12:43 pm Apr 08, 2024 | अपूर्वानंद

पॉण्डिचेरी यूनिवर्सिटी के ‘डिपार्टमेंट ऑफ़ परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स’ के अध्यक्ष को पद से हटा दिया गया है। विद्यार्थियों के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई की जा रही है। ‘हिंदू’ अख़बार के मुताबिक़ स्थानीय पुलिस ने भी उनके ख़िलाफ़ स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया है। विद्यार्थियों के ख़िलाफ़ हिंसक प्रचार चलाया जा रहा है। महिला विद्यार्थियों को परिसर छोड़कर अपने घर जाने को मजबूर होना पड़ा है क्योंकि उनको यौन हिंसा की धमकियाँ दी जा रही हैं।  

यह सब कुछ एक नाटक के प्रदर्शन के बाद हो रहा है। ठीक यह कहना होगा कि किया जा रहा है। करने वाले 3 तरह की संस्थाएँ हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन जिसने विभागाध्यक्ष को निलंबित किया और उनके और छात्रों के ख़िलाफ़ जाँच बैठा दी, पुलिस जिसने विद्यार्थियों के ख़िलाफ़ तुरत फुरत मामला दर्ज किया। ये दो राजकीय संस्थाएँ हैं। लेकिन तीसरी संस्था ग़ैर राजकीय है जिसके कहने पर इन दोनों ने अध्यापक और छात्रों के ख़िलाफ़ सजा की यह कार्रवाई की।   

जो भारत को ठीक से जानते हैं, वे अनुमान कर सकते हैं कि यह ग़ैर राजकीय संस्था भारतीय जनता पार्टी की बिरादरी की सदस्य ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ( ए बी वी पी)’ है। एबीवीपी आरएसएस से जुड़ा छात्र संगठन है। 

पहले पूरा प्रसंग जान लें। पॉण्डिचेरी यूनिवर्सिटी के ‘डिपार्टमेंट ऑफ़ परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स’ के सालाना नाट्य उत्सव “ऐझिनी 2K 24” में विभाग के विद्यार्थियों ने ‘सोमायणम’ नामक नाटक मंचित किया। नाटक का आलेख अधिकारियों के द्वारा स्वीकृत था। मंचन सबके लिए खुला था। मंचन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। दर्शकों ने उसे सराहा। लेकिन असली नाटक अगले दिन हुआ। उनके द्वारा जो न विभाग के थे  और जिन्होंने मंचन देखा भी नहीं था।

रामकथा पर आधारित सोमायणम नाटक का दृश्य

ए बी वी पी के 15-20 सदस्य ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाते, भगवा ध्वज के साथ उत्सव के दूसरे नाटक के मंचन के समय वहाँ पहुँच कर हुड़दंग करने लगे और नाटक के मंचन में रुकावट डालने लगे। वे पिछले दिन मंचित हुए नाटक के अभिनेताओं और निर्देशक और दूसरे लोगों को दंडित करने की माँग कर रहे थे। उनके मुताबिक़ उन्होंने उनकी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाई थी। 

नाटक राम कथा पर आधारित था। एक शिक्षित औरत अपने पति के साथ जंगल में एकांत की संभावना से रोमांचित है। लेकिन उसका देवर भी जाने को तैयार है। यह रंग में भंग है। जंगल में कुछ घटनाएँ होती हैं, मसलन एक औरत के साथ दोनों के द्वारा हिंसा। उसका उनसे मन उचटने लगता है। उस औरत का भाई बावण नाराज़ होकर बहन का बदला लेने पहुँचता है। उन दोनों के बीच संवाद होता है। वह औरत उसे कहती है कि वह शादीशुदा है लेकिन दोनों मित्र हो सकते हैं। 

नाटक तेरुकुत्तु शैली में किया गया प्रयोग था। मंचन के वक्त दर्शकों ने इस प्रयोग का ख़ासा आनंद लिया। वे भी प्रायः हिंदू ही रहे होंगे। लेकिन उनमें से किसी ने अपनी भावना के आहत होने की शिकायत नहीं की। यह सब कुछ अगले दिन हुआ। प्रशासन ने जाँच बिठा दी। लेकिन पहले ही अध्यक्ष को पद से हटा दिया। नाटक से जुड़े छात्रों पर भी अनुशासनात्मक कार्रवाई की।

लेकिन विद्यार्थियों के ख़िलाफ़ हिंसक प्रचार चल रहा है। बलात्कार से लेकर हत्या तक की धमकियों की बौछार है। लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं है। छात्राओं को सुरक्षा का कोई आश्वासन नहीं है। उन्हें हिफ़ाज़त के लिए अपने घरों को भागना पड़ा है। 

जो भावनाएँ योजनापूर्वक आहत होती हैं वे कितनी सच्ची हैं यह समझा जा सकता है। जो भावना के आहत होने का आयोजन करते हैं वे एक ही तरह के लोग हैं। जैसे आप अपने शरीर पर एक नक़ली घाव बनाते हैं और फिर दया की माँग करते हैं या उस घाव के बहाने उस पर हमला करते हैं जिसने आपके मुताबिक़ वह घाव आपको दिया है।


हमने इस तरह भावना के आहत होने के कई आयोजन देखे हैं। हर मामले में या तो धार्मिक या राष्ट्रवादी भावनाओं के आहत होने की शिकायत की जाती है। और उसके बहाने अपने शत्रुओं को शारीरिक रूप से आहत किया जाता है।     ए बी वी पी के सदस्यों के अलावा और किसी हिंदू विद्यार्थी की भावना आहत नहीं होती, यह आश्चर्य का विषय है। 

चिंताजनक बात यह है कि इस संगठन के इशारा करते ही विश्वविद्यालय प्रशासन और पुलिस कार्रवाई के लिए हमेशा और प्रायः हर जगह तत्पर दिखलाई पड़ते हैं।अगर आप गूगल में सिर्फ़ इस संगठन का नाम डालें तो इस तरह की वारदातों की लंबी फ़ेहरिस्त सामने आ जाएगी। लेकिन यह संगठन कह सकता है कि यह तो उसकी विचारधारा और उसके स्वभाव के मुताबिक़ ही है।वह अपना  काम कर रहा है। 

विश्वविद्यालय और पुलिस द्वारा ए बी वी पी की विचारधारा को अपना लेने की फुर्ती अधिक फ़िक्र की बात है। वे हंगामे या हुड़दंग के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई करने की जगह हिंसा का निशाना जिन्हें बनाया जा रहा है, उन्हीं के ख़िलाफ़ कार्रवाई करते हैं।


सयाजी राव बड़ौदा का कला विभाग हो या हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय या जोधपुर विश्वविद्यालयया बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय या केरल विश्वविद्यालय या झारखंड विश्वविद्यालय या जवाहरलालनेहरू विश्वविद्यालय या दिल्ली विश्वविद्यालय या पुणे फ़िल्म इंस्टीट्यूट या टाटा सामाजिक अध्ययन और शोध संस्थान या लखनऊ विश्वविद्यालय या पंजाब विश्वविद्यालय, ए बी वी पी द्वारा किए गए ‘प्रतिवाद’ के बाद प्रशासन द्वारा छात्रों और अध्यापकों को दंडित किए जाने की घटनाओं को सूची का अंत नहीं है।

प्रशासन की कार्रवाई का विरोध बाक़ी अध्यापकों की तरफ़ से मज़बूती से नहीं किया जाता। न अन्य छात्रों की तरफ़ से।मानो यह सिर्फ़ उनका मामला है जो इसके सीधे शिकार हुए हैं। लेकिन यह व्यापक अकादमिक माहौल को प्रभावित करता है। यह कक्षाओं और परिसर में स्वतंत्र विचार विमर्श पर  नकारात्मक तरीके से असर डालता है। विश्वविद्यालय प्रशासन से उम्मीद की जाती है कि वह इस स्वाधीनता की रक्षा करेगा लेकिन वह ठीक इसके विपरीत काम करता है।

इस बात पर भी विचार करने की ज़रूरत है कि जो भावना आहत होने की शिकायत करते हैं, वे गाली गलौज और हिंसा के बिना अपना प्रतिवाद क्यों नहीं कर पाते। यह किस संस्कृति या राष्ट्रवाद का परिचायक है? 

यह भी नहीं पूछा जाता कि राष्ट्रवाद या धार्मिक आस्था की व्याख्या का एकाधिकार एक ही संगठन के पास क्यों कर है। क्यों उस संगठन की बात को आख़िरी और आधिकारिक मान लिया जाता है?

रामकथा हो या महाभारत, इनकी परंपरा प्रयोगों से ही बनी है। इसीलिए एक- दो नहीं 300 रामायण हैं। लेकिन हिंदू राष्ट्रवाद के मज़बूत होने के साथ साथ प्रयोगों की अब परंपरा अब ख़त्म हो रही है और अब यह जड़ होती जा रही है।हमें यह तो सोचना ही पड़ेगा कि क्यों हमारे पूर्वज प्रयोग कर पाते थे और क्यों हम यह नहीं कर पाते। 

रामायण और महाभारत भारतीय कल्पना में इस कदर पैबस्त हैं कि बंबइया फ़िल्मों का अध्ययन करने वाले बतलाते हैं कि ऐसी अनेकानेक फ़िल्में बनी हैं जिनका कथात्मक ढाँचा इन दोनों महाकाव्यों से प्रभावित रहा है। लेकिन अब यह आज़ादी हाथ से जा रही है। अब भारत में राम की या सीता की कहानी एक ही होगी और उस पर आधिकारिक राष्ट्रवादी हिंदू मुहर लगा होना अनिवार्य होगा। तो अब नई रामकथा भी, हो सकता है, भारत के बाहर ही लिखी जाएगी।