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वक्फ बिलः टीडीपी के 'सशर्त समर्थन' पर भी सरकार ने विवादित बिल संसदीय समिति को क्यों भेजा

वक्फ बिलः टीडीपी के 'सशर्त समर्थन' पर भी सरकार ने विवादित बिल संसदीय समिति को क्यों भेजा

एनडीए सरकार के विवादित बिल पर भले ही जेडीयू का समर्थन हासिल था लेकिन चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी ने जब कह दिया कि उनका सशर्त समर्थन इस बिल को है तो सरकार को कदम पीछे हटाने पड़े और इससे संसदीय समिति के पास भेजना पड़ा। हालांकि टीडीपी के बयान को मीडिया प्रमुखता से पेश नहीं कर रहा है। मीडिया यही बता रहा है कि जेडीयू और टीडीपी का समर्थन इस बिल को था। लेकिन टीडीपी का समर्थन सशर्त था, इतना ही सरकार को झुकाने के लिए पर्याप्त था। 

अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने गुरुवार को विवादित वक्फ सोशधन बिल 2024 पेश किया। विपक्ष यानी इंडिया गठबंधन के दलों ने वक्फ संशोधन विधेयक को असंवैधानिक और मुस्लिम विरोधी करार दिया। सरकार ने इस विधेयक को गुरुवार को संसदीय समिति को भेज दिया। हालांकि सदन में एनडीए सरकार की सहयोगी जेडीयू के नेता और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह का इस विधेयक के समर्थन में बयान आया। लेकिन टीडीपी का बयान रणनीतिक रहा। इस विधेयक की दिशा मोड़ने में टीडीपी के रुख का ही मुख्य हाथ रहा।

टीडीपी सांसद जीएम हरीश बालयोगी ने विधेयक के लिए अपनी पार्टी का सशर्त समर्थन व्यक्त करते हुए कहा कि अगर वक्फ संशोधन विधेयक को आगे की जांच के लिए संसदीय समिति को भेजा जाता है तो वे इसका विरोध नहीं करेंगे। सांसद बालयोगी ने कहा कि 

"मैं सरकार की उस चिंता की सराहना करता हूं जिसके साथ सरकार इस विधेयक को लेकर आई है। वक्फ दानदाताओं के उद्देश्य की रक्षा की जानी चाहिए। जब ​​उद्देश्य और शक्ति का दुरुपयोग होता है तो सुधार लाना और प्रणाली में पारदर्शिता लाना सरकार की जिम्मेदारी है।" .

टीडीपी सांसद ने कहा, "सरकार को इस उद्देश्य को रेगुलेट और सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है। विधेयक लाया गया है और हम इसका समर्थन करते हैं।" बालयोगी ने हाशिए पर रहने वाले समूहों के लिए विधेयक के संभावित लाभों पर जोर देते हुए कहा, "हमारा मानना ​​है कि वक्फ रजिस्ट्रेशन से देश के गरीब मुसलमानों और महिलाओं को मदद मिलेगी और पारदर्शिता आएगी।"

उन्होंने इस बिल पर आगे की सलाह के संबंध में अपनी पार्टी के रुख को स्पष्ट करते हुए कहा, "अगर गलतफहमी, गलत जानकारी भेजे जाने को दूर करने और विधेयक के उद्देश्य को शिक्षित करने के लिए व्यापक सलाह की जरूरत है, तो हमें इसे सेलेक्ट कमेटी को भेजने में कोई समस्या नहीं है।" इसके बाद सरकार ने विधेयक संसदीय समिति को भेज दिया। फिलहाल यह मामला तीन महीने के लिए कम से कम टल ही गया है।

टीडीपी सांसद बालयोगी के संसद में भाषण का दिलचस्प पहलू यह है कि उन्होंने विधेयक को सशर्त समर्थन देने की बात कही लेकिन वो शर्तों क्या थीं, जिनके आधार पर टीडीपी ने बिल को समर्थन किया, सदन को नहीं बताया। यही उनके भाषण का मुख्य मोड़ है जो बताता है कि टीडीपी ने मोदी सरकार को पहले ही साफ कर दिया था कि यह विधेयक मुस्लिम विरोधी है, इसलिए इस रूप में इसे पास नहीं किया जा सकता। टीडीपी आंध्र प्रदेश में मुसलमानों को 4 फीसदी आरक्षण देने के वादे के साथ सत्ता में आई है। ऐसे में देशभर की वक्फ संपत्तियों पर केंद्र द्वारा कब्जे की कोशिश वाले बिल को टीडीपी कैसे समर्थन देती। लेकिन सरकार में होने के कारण उसे कहना पड़ा कि बिल को पूरा समर्थन है लेकिन शर्तों के साथ। शर्ते क्या हैं वो शायद चंद्रबाबू नायडू ने सरकार को बता दी होंगी। अभी तक  संसद में टीडीपी का हर मुद्दे पर सरकार को समर्थन मिल रहा था, लेकिन यह पहली बार है कि टीडीपी ने रुख और नजरिया अलग हटकर बताया है। उसने बिल का समर्थन करने के बावजूद उसे संसदीय समिति के पास भेजने को मोदी सरकार को मजबूर किया।  

जेडीयू का मुस्लिम विरोधी चेहरा सामने

वक्फ बिल पर एनडीए सरकार में शामिल जेडीयू का मुस्लिम विरोधी चेहरा गुरुवार को संसद में सामने आ गया। जेडीयू नेता और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने वक्फ बिल पर मोदी सरकार की लाइन का जबरदस्त समर्थन किया। हद तो यह है कि ललन सिंह ने अपने भाषण में 1984 के सिख विरोधी दंगो को भी ले आए। जिसका इस विधेयक से कोई संबंध नहीं है। वहीं पर आरेजडी ने इस बिल का संसद में जमकर विरोध किया। आरजेडी सांसदों ने कहा कि मोदी सरकार यह बिल मुसलमानों को टारगेट करने के लिए लाई है। जेडीयू के ललन सिंह ने कहा- वक्फ (संशोधन) विधेयक का उद्देश्य वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता लाना है, न कि मस्जिदों के संचालन में हस्तक्षेप करने का प्रयास है।

हालांकि ललन ने यह भी कहा- "जेडीयू यहां एक पार्टी है, चाहे वह विरोध कर रही हो या समर्थन कर रही हो, मुझे यहां अपना विचार दर्ज कराना है।" उन्होंने अपनी इस बात को ज्यादा स्पष्ट नहीं किया।

बिल का बचाव करते हुए उन्होंने कहा, "कई सदस्य ऐसा कह रहे हैं मानो वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन मुस्लिम विरोधी है। यह मुस्लिम विरोधी कैसे है?" उन्होंने दावा किया, "यहां अयोध्या का उदाहरण दिया जा रहा है... क्या आप मंदिर और संस्था के बीच अंतर नहीं कर सकते? यह मस्जिदों में हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं है। यह कानून संस्था के लिए है, इसे पारदर्शी बनाने के लिए है..." 

जेडीयू सांसद ललन सिंह ने कहा, "वक्फ बोर्ड का गठन कैसे हुआ? यह एक कानून के माध्यम से हुआ था। कानून के माध्यम से स्थापित कोई भी संस्था निरंकुश हो जाती है। सरकार को पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कानून लाने का अधिकार है।" विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, ''कोई सांप्रदायिक विभाजन नहीं है, वे अफवाह फैला रहे हैं।'' 1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने पूछा, 'हजारों सिखों को किसने मारा?' उन्होंने कहा, ''विधेयक आना चाहिए और पारदर्शिता लानी चाहिए।''

वक्फ संशोधन विधेयक के जरिए केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों को इसका सदस्य बनाने और जिला कलेक्टर या डीएम या डीसी को सरकार असाधारण अधिकार देना चाहती है। इस विधेयक में व्यवस्था की गई है कि जिला का कलेक्टर जिस संपत्ति को गैर वक्फ घोषित कर देगा तो उसे कहीं भी चैलेंज नहीं किया जा सकता। नया कानून लागू होने पर वक्फ ट्रिब्यूनल खत्म हो जाना था, जिसके पास ऐसी पावर है। जिला कलेक्टर को यह भी अधिकार था कि वो जब तक सरकार के पास अपनी रिपोर्ट नहीं भेजेगा और उस पर फैसला आने तक वो संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं रह जाएगी। वक्फ संपत्ति वो प्रॉपर्टी है, जिसे मुस्लिम परिवार या मुस्लिम शख्स अल्लाह के लिए दान करता है। उस संपत्ति पर उसके परिवार के लोग तो रह सकते हैं लेकिन वे उसे बेच नहीं सकते।

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