+
एनईपी 'सरकारी शिक्षा प्रणाली के नरसंहार' का प्रतीक: सोनिया 

एनईपी 'सरकारी शिक्षा प्रणाली के नरसंहार' का प्रतीक: सोनिया 

कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने NEP 2020 पर गंभीर सवाल उठाए, इसे केंद्रीकरण, व्यवसायीकरण और सांप्रदायीकरण का एजेंडा बताया। जानें उनकी पूरी आलोचना और इसके निहितार्थ।

क्या मोदी सरकार की एनईपी देश की सरकारी शिक्षा प्रणाली को ख़त्म कर रही है? कम से कम सोनिया गांधी ने तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति यानी एनईपी 2020 को लेकर ऐसी ही तीखी आलोचना की है। उन्होंने केंद्र की बीजेपी सरकार पर आरोप लगाया कि वह इस नीति का इस्तेमाल शिक्षा क्षेत्र में 'सत्ता के केंद्रीकरण, व्यावसायीकरण और सांप्रदायीकरण' के लिए कर रही है। द हिंदू अख़बार में प्रकाशित अपने लेख में उन्होंने दावा किया कि यह नीति सरकार की भारत के युवाओं और बच्चों की शिक्षा के प्रति 'गहरी उदासीनता' को छुपाती है। 

सोनिया गांधी ने लिखा कि पिछले 11 वर्षों से केंद्र सरकार का 'अनियंत्रित केंद्रीकरण' उसकी कार्यशैली का पहचान बन गया है, और इसका सबसे नुक़सानदायक असर शिक्षा क्षेत्र में देखने को मिला है। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकारों को महत्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रिया से बाहर रखा गया है। केंद्र और राज्यों के मंत्री वाले केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड सितंबर 2019 के बाद से आयोजित नहीं किया गया। इसके अलावा, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की 2025 की नई मसौदा गाइडलाइंस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि यह राज्य सरकारों की विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्त करने की भूमिका को कम करती है। उनके मुताबिक, राज्यपालों के जरिए केंद्र ने कुलपति चयन में 'लगभग एकाधिकार' हासिल कर लिया है, जो संघवाद के लिए 'गंभीर ख़तरा' है।

यह आरोप मौजूदा राजनीतिक संदर्भ में अहम है, क्योंकि केंद्र और राज्यों के बीच शिक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर तनाव पहले से ही मौजूद है। कई गैर-भाजपा शासित राज्य एनईपी को लागू करने में हिचक दिखा रहे हैं, और सोनिया का यह बयान उस असंतोष को और हवा दे सकता है।

सोनिया गांधी ने एनईपी पर शिक्षा के 'अनियंत्रित निजीकरण' को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया। उनके अनुसार, 2014 से अब तक लगभग 90,000 सरकारी स्कूल बंद हो चुके हैं, जबकि निजी स्कूलों की संख्या बढ़ी है। इसके साथ ही, उच्च शिक्षा में फंडिंग के लिए ब्लॉक ग्रांट की जगह हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी पर जोर दिया जा रहा है, इसके तहत विश्वविद्यालयों को कर्ज लेना पड़ता है। उन्होंने दावा किया कि इन कर्जों का 78% से 100% हिस्सा छात्रों की बढ़ी हुई फीस से चुकाया जा रहा है, जिससे शिक्षा की लागत आम परिवारों पर बोझ बन रही है।

यह आलोचना शिक्षा तक पहुंच के सवाल को उठाती है। अगर सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं और निजी संस्थानों का दबदबा बढ़ रहा है, तो गरीब और मध्यम वर्ग के छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल करना मुश्किल हो सकता है। हालांकि, सरकार का तर्क हो सकता है कि निजी भागीदारी से शिक्षा की गुणवत्ता और बुनियादी ढांचा बेहतर होगा। 

सोनिया गांधी ने सरकार पर शिक्षा के ज़रिए नफ़रत और कट्टरता फैलाने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में संशोधन का ज़िक्र किया, जिसमें महात्मा गांधी की हत्या और मुगल इतिहास से संबंधित हिस्सों को हटाया गया।

साथ ही, उन्होंने दावा किया कि प्रोफेसरों और कुलपतियों की नियुक्ति में शैक्षणिक योग्यता के बजाय वैचारिक निष्ठा को तरजीह दी जा रही है। उनके शब्दों में, 'प्रमुख संस्थानों में नेतृत्व के पद आज्ञाकारी विचारकों के लिए आरक्षित हो गए हैं।'

यह आरोप भारत में शिक्षा के सांस्कृतिक और वैचारिक आयाम को लेकर चल रही बहस को तेज करता है। विपक्ष लंबे समय से सरकार पर इतिहास को 'संशोधित' करने और अपने एजेंडे को थोपने का आरोप लगाता रहा है, जबकि सरकार इसे 'औपनिवेशिक मानसिकता' से मुक्ति का प्रयास बताती है। इस मुद्दे पर समाज और शिक्षाविदों के बीच ध्रुवीकरण साफ़ दिखता है।

सोनिया ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने समग्र शिक्षा अभियान के लिए राज्यों को देय फंड रोककर उन्हें पीएम-श्री योजना लागू करने के लिए मजबूर किया है। उनके मुताबिक, ये फंड आरटीई एक्ट को लागू करने के लिए जरूरी थे और संसद की स्थायी समिति ने भी इनको बिना शर्त जारी करने की मांग की थी। यह दावा केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों में तनाव को उजागर करता है, जो शिक्षा जैसे संवैधानिक रूप से साझा क्षेत्र में और जटिल हो जाता है।

सोनिया गांधी का यह लेख न केवल एनईपी 2020 की आलोचना है, बल्कि भाजपा सरकार की शिक्षा नीति को व्यापक राजनीतिक और वैचारिक हमले का हिस्सा भी बनाता है। उन्होंने इसे 'सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली के नरसंहार' का प्रतीक बताया और नीति में सुधार की मांग की। सरकार के लिए यह चुनौती होगी कि वह इन आरोपों का जवाब तथ्यों और ठोस क़दमों के साथ दे।

(रिपोर्ट का संपादन: अमित कुमार सिंह)

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें