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गले लगाकर कहो- ईद है, मुबारक हो!

गले लगाकर कहो- ईद है, मुबारक हो!

ईद का त्योहार पूरी दुनिया में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। खुशियां बांटें, गले लगें और कहें- ईद मुबारक! जानें इस खास मौके की अहमियत और परंपराएं।

ख़ुशी एक शाश्वत भाव है। मानवता का जो मूल बिन्दु है, वो ख़ुशी ही है। ख़ुश होना, ख़ुश करना, ख़ुशी देना। त्योहार, पर्व, दान, अभिवादन, सहायता, सृजन सब इसी के इर्द-गिर्द हैं। ऐसी ही ख़ुशी की एक सामूहिक पहचान का पर्व है ईद। ईद यानी गले मिलें, दान करें, ख़ुशियाँ बाँटें, भेद से निकलें, अन्तर से निकलें, अलगाव से निकलें, दूसरा होने की पहचान से निकलें, शिकवों-शिकायतों से निकलें, बीती ख़राब स्मृतियों से निकलें और गले मिलें। दुआ दें, इज़्ज़त दें, मिठास दें।

ईद और ख़ुशी तो एकदम एक से हैं। यह अनायास ही नहीं है कि लोग ख़ुशियों को ईद से जोड़ते हैं। मसलन, आपने लोगों को कहते सुना होगा कि बस बेटा अच्छे नम्बरों से पास हो जाए तो हमारी ईद हो जाए। शायरों ने कहा है- हमारा यार मिल जाए, हमारी ईद हो जाए। ऐसा ही एक शेर देखें-

ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम

रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है। 

चाँद वही है। उसी की गति से ईद भी तय होती है और करवाचौथ भी। फिर काहे का रगड़ा। ईद न केवल इबादत और शुक्राने का दिन है, बल्कि भाईचारे, मोहब्बत और ख़ुशियों को बाँटने का भी मौक़ा है। तो आज ख़ुद ख़ुश रहें, दूसरों को भी ख़ुश रखें। बच्चों को ईदी दें। पात्र कुपात्र न छाँटें।

ईद समाजवादी त्योहार है। अमीर-ग़रीब सब एक साथ मस्जिद में इबादत करते है। वर्गीय चरित्र मिट जाता है। ‘ईद’ के मायने ही ख़ुशी है। और ‘फ़ित्र’ के मायने हैं धर्मार्थ उपहार (Charitable Gift)। इस्लाम में चैरिटी यानी फ़ित्रा देना ईद का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है। ईद की नमाज़ से पहले हर सम्पन्न मुसलमान को फ़ित्रा देना ज़रूरी है। यह फ़ित्रा ग़रीबों को दिया जाता है, जिससे वे भी अपनी ईद मना सकें और ख़ुशियों में शामिल हो सकें। 

ईद, रोज़ा, इफ़्तार, टोपी, सेवइयाँ और ईदी यही हमारे बचपन में ईद की छवि थी। जो मिला उससे गले मिल ईद की मुबारकबाद दे दी। ईद उल फ़ित्र इस्लामिक कैलेंडर के 10वें महीने, शव्वाल में मनाई जाती है। यह त्योहार रमज़ान के महीने से जुड़ा है। रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर का नौवाँ महीना है। इस्लाम में इस महीने का वैसा ही महत्व है जैसा हमारे यहाँ सावन का है। मानना है कि इसी महीने में इस्लाम की पवित्र किताब कुरआन की पहली आयत पैग़ंबर मोहम्मद साहब को नाज़िल (ऊपर से उतरी थी) हुई थी। ईद अरबी शब्द है। अरबी में ईद का मतलब होता है हर्ष, उल्लास, उत्सव, प्रसन्नता और ख़ुशी का दिन। अपनी ईद की पहली अवधारणा मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’ से बनी थी। मुंशी जी बनारस में मेरे घर से आठ किलोमीटर उत्तर लमही के रहने वाले थे। मेरे पड़ोस में रहने वाले अनवर भाई का बगीचा मेरे बचपन का वो आँगन था, जहाँ अपनी ईद, नमाज़ और रोज़े की समझ बनी।

रमज़ान का महीना चाँद की गति से तय होता है। भौगोलिक कारणों से बांग्लादेश में अरब देशों के एक दिन बाद चाँद दिखता है। अरब देशों में चाँद बांग्लादेश से पहले दिख जाता है। हालाँकि, बांग्लादेश से समय में आगे आने वाले मलेशिया और इंडोनेशिया, अरब दुनिया की तरह ही ईद मनाते हैं। अफ़्रीका के कुछ मुस्लिम देश भी ऐसा ही करते हैं। मुस्लिम रवायत के मुताबिक़, अगर कहीं किसी मुस्लिम देश में चाँद दिख जाता है तो ये सभी मुसलमानों पर लागू होगा। सभी इस बात पर सहमति जताते हैं कि हिजरी वर्ष का चन्द्र मास नंगी आँखों से चाँद दिखते ही शुरू हो जाता है। इसे चाँदरात भी कहते हैं। 

इसी वजह से कई इस्लामिक धर्मगुरु आज भी अपने-अपने देशों में नंगी आँखों से चाँद को देखने पर ही एतबार करते हैं। किसी दूरबीन या आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल नहीं होता है। चाँद दिखते ही दूसरे रोज़ ईद का एलान होता है।

बचपन में अपनी ज़िन्दगी में कहीं कोई किचाहिन नहीं था। ईद के दिन तपाक से गले मिलता था। सेवइयाँ खाता था। अनवर भाई के घर धमाल होता था। उदास होकर भी हम किसी से भी लिपटकर उसे अपना बना लेते। इससे बड़ा और कौन-सा दिन होगा जब हम दिल खोलकर सब को अपनाने का तरीक़ा तामीर करते थे। मक़सद यही था कि अनवर भाई से ईदी लेकर प्रेमचंद के हामिद को खिलौना ख़रीद दो। क्योंकि तब हामिद ने अपने ईदी के पैसे से दादी के लिए चिमटा ख़रीद लिया था। दादी की रसोई में चिमटा नहीं था। उनका हाथ तवे से जलता था। इसलिए हामिद ने अपने खिलौने पर दादी के चिमटे को तरजीह दी। ईद के बाज़ार से लाए गए चिमटे को देख दादी की रोती हुई आँखें ख़ुशी से लबालब थीं। बाल मनोविज्ञान की यह ताक़तवर कहानी मुंशी प्रेमचंद की थी। हमारे दिमाग़ पर उसका असर था। इसलिए तब हर हामिद के लिए खिलौना ख़रीदने का मन करता था। शायद इस ग़ैरबराबरी को मिटाने के लिए ही इस्लाम में फ़ित्रा और ज़कात का बन्दोबस्त है। 

इस्लाम में फ़ित्रा देना वाजिब है और ज़कात देना फ़र्ज़। ज़कात वो मुसलमान देता है जिसके पास इस्लाम के बताए गए नियमों के मुताबिक़ सोना, चाँदी, नक़दी और व्यापार हो। इसका सालाना 2.5 फ़ीसदी हिस्सा ज़कात के रूप में ग़रीब और जरूरतमंद लोगों को देना फ़र्ज़ यानी अनिवार्य है। ज़कात अपने ग़रीब रिश्तेदारों, पड़ोसियों, ग़रीब, असहाय को दिया जा सकता है। अधिकतर मुसलमान ईद से पहले ज़कात अदा करते हैं। ईद का एक मानवीय पहलू यह भी है। 

इस्लाम का संदेश दुनियाभर में फैलाने वाले पैग़ंबर मोहम्मद का जन्म अरब के मक्का शहर में 570 ईसवी में हुआ था। पैग़ंबर मोहम्मद ने इस्लाम धर्म का उपदेश देना सन् 610 ईसवी में शुरू किया, लेकिन उस समय रमज़ान के महीने में रोज़े नहीं रखे जाते थे। पैग़ंबर मोहम्मद और उनके अनुयायी सन् 622 ईसवी में मक्का शहर छोड़कर मदीना चले आए। और इसी साल उन्होंने ईद उल फ़ित्र (ईद) और ईद उल अजहा (बकरीद) त्योहार मनाने का उपदेश दिया। मुसलमान मानते हैं कि मदीना आने के दो साल बाद सन् 624 ईसवी में ईश्वर की ओर से पैग़ंबर मोहम्मद को रमज़ान के पूरे महीने रोज़े रखने का आदेश हुआ।

इस्लामी इतिहास के अनुसार, इसी महीने में मुसलमानों ने पहला युद्ध लड़ा था, जो सऊदी अरब के मदीना प्रांत के बद्र शहर में हुआ था। इसलिए उस युद्ध को जंग-ए-बद्र भी कहा जाता है। ईद मनाने की दो बड़ी वजहें हैं। पहली जंग-ए-बद्र में जीत हासिल करना। यह जंग 02 हिजरी 17 रमज़ान के दिन हुई थी। यह इस्लाम की पहली जंग थी। इस लड़ाई में एक तरफ़ 313 निहत्थे मुसलमान थे। वहीं, दूसरी ओर तलवारों और अन्य हथियारों से लैस दुश्मन की एक हज़ार से ज़्यादा की फ़ौज़ थी। 

इस जंग में पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद की अगुआई में मुसलमान बहुत बहादुरी से लड़े और जीत हासिल की। इस जीत की ख़ुशी में मिठाई बाँटी गई और एक-दूसरे से गले मिलकर मुबारकबाद दी गई। इसी ख़ुशी में ईद मनाए जाने की बात कही जाती है।

ईद में गले मिलते हैं। आलिंगन और कण्ठालिंगन हमारी शाश्वत परम्परा है। इसका इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं। इस सरल ढंग से कोई भी आदम जात प्यार, ख़ुशी और भावनाओं को व्यक्त कर सकता है। मनोवैज्ञानिक रूप से, गले लगाने से ऑक्सीटोसिन रिलीज़ होता है, जिसे अक्सर "लव हार्मोन" कहा जाता है, जो तनाव को कम करने, रक्तचाप को कम करने और आराम और ख़ुशी की भावनाओं को बढ़ावा देने में मदद करता है। प्यार की झप्पी से गहरे तक धँसे गिले-शिकवे पिघल जाते हैं। एक अध्ययन से पता चला है कि जो लोग ज़्यादा झप्पियाँ पाते हैं, वो बहुत कम बीमार होते हैं। झप्पी का सकारात्मक असर पड़ता है। बीमारियों से दूर रखने के साथ ख़ुश रहने के लिए झप्पी शानदार चीज़ है। हाथ जोड़, झुककर प्रणाम का भी अपना शास्त्र है। इसकी भी सनातन परम्परा है। इससे अहं और स्व का तिरोधान होता है। आपकी हथेलियों में बहुत सारे तंत्रिका तंत्र होते हैं - जिसे आज चिकित्सा विज्ञान ने भी खोजा है। दरअसल, आपकी जीभ और आवाज़ से ज़्यादा आपके हाथ बोलते हैं। योग में मुद्राओं का एक पूरा विज्ञान है। जिस क्षण आप अपने हाथ एक साथ रखते हैं, आपके द्वंद्व, आपकी पसंद-नापसंद, आपकी लालसा और घृणा, सभी समतल हो जाते हैं। नमस्कार सिर्फ़ एक सांस्कृतिक पहलू नहीं है। इसके पीछे एक विज्ञान है। यदि आप अपनी साधना कर रहे हैं, तो हर बार जब आप अपनी हथेलियाँ एक साथ लाते हैं, तो ऊर्जा की एक ध्वनि उत्पन्न होती है।

नमस्कार करते समय इड़ा और पिंगला नाड़ी आपस में मिलती हैं और सिर श्रद्धा भाव से झुक जाता है। इससे शरीर का आध्यात्मिक विकास भी होता है। बाबा रामदेव अपनी योग क्रिया में लोगों से ताली बजवाते हैं। जब एक व्यक्ति दोनों हाथों को आपस में जोड़ता है तो उसकी हथेलियों में कुछ ऐसे बिन्दु होते हैं, जिन पर दबाव पड़ता है। इन बिन्दुओं से आँख, नाक, कान, हृदय आदि शरीर के विभिन्न अंगों का सीधा सम्बन्ध है। ऐसे में हाथ जोड़कर नमस्कार करने से इन बिन्दुओं पर दबाव पड़ता है और इससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और व्यक्ति कई प्रकार की बीमारियों से बचा रहता है। वैज्ञानिक तौर पर इसे एक्यूप्रेशर कहा जाता है, इससे ब्लड सर्कुलेशन सही रहता है जिसका चलन हाल के दिनों में बहुत बढ़ा है। 

 - Satya Hindi

ईद चाँद की गति से होती है। अलग-अलग मुल्कों में अलग-अलग वक़्त पर चाँद दिखता है। उसी के मुताबिक़ ईद मनायी जाती है। कुछ बरस पहले इस्तांबुल में एक अंतरराष्ट्रीय जमावड़ा हुआ। तुर्की, क़तर, जॉर्डन, सऊदी अरब, मलेशिया, यूएई, मोरक्को समेत 50 देश के इस्लामिक स्कॉलर वहाँ जुटे। इस कॉन्फ्रेंस को इंटरनेशनल हिजरी कैलेंडर यूनियन कांग्रेस के नाम से जाना जाता है। इस कॉन्फ्रेंस में हिजरी कैलेंडर को लेकर दुनियाभर में अलग-अलग मुस्लिमों के बीच जो मतभेद हैं, उसपर चर्चा हुई। ज़्यादातर लोगों का कहना था कि दुनिया के सभी मुसलमानों को एक कैलेंडर मानना चाहिए और अगर ऐसा होता है तो पूरी मुस्लिम दुनिया में एक ही दिन ईद और रोज़े की शुरुआत की जा सकेगी। लेकिन नतीजा कोई ठोस नहीं निकला। वही ढाक के तीन पात। 

यही विविधता है। वैसे भी दुनिया के अलग-अलग देशों में ईद मनाने के अलग-अलग तरीक़े हैं। तुर्की में, ईद के जश्न को सेकर बेरामी के नाम से जाना जाता है, जिसका मतलब "चीनी दावत" है। यह तीन दिनों तक चलता है। इस दिन, तुर्की के लोग नहा-धोकर और नए कपड़े पहनकर अपने बड़ों के पास जाकर उनका आशीर्वाद लेते और क्षमा माँगते हैं। बच्चों को अपने बड़ों से मिठाइयाँ और पैसे मिलते हैं। ईद के दौरान हमेशा ओउ डे कोलोन से स्वागत किया जाता है, जो तुर्किये में मेहमानों का स्वागत करने का एक नियमित रिवाज है। तुर्की में ईद का उत्सव इस्लामी परम्पराओं और अनातोलियन संस्कृति का एक संयोजन है। परिवार अपने प्रियजनों की क़ब्रों पर जाते हैं, अपने पड़ोसियों के साथ भोजन करते हैं और "बकलावा" और "लोकम" जैसी मिठाइयाँ बाँटते हैं। इराक़ और सऊदी अरब में खजूर खाना रमज़ान और ईद दोनों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि वहाँ उस वक्त सिर्फ़ खजूर ही पैदा होता था। यमन में बिन्त अल साहन पसंदीदा यमनी मिठाई है। अंग्रेजी में इसे कभी-कभी हनी केक भी कहा जाता है।

मांटी ईद पर खाने के लिए एक लोकप्रिय चीज है। वे आमतौर पर किसी प्रकार के मसालेदार मांस से भरे होते हैं। बांग्लादेश में, कोरमा पारम्परिक रूप से खाया जाता है। आइसलैंड में रमज़ान दुनिया में कहीं और जैसा नहीं है, और ईद का जश्न भी उतना ही अनोखा है। देश में आधी रात के सूरज की घटना का मतलब है कि रमज़ान के दौरान, कई मुसलमान दिन में 22 घंटे तक उपवास करते हैं। उनके पास निकटतम देश या सऊदी अरब से सूर्योदय और सूर्यास्त के समय के आधार पर अपना उपवास तोड़ने का विकल्प होता है। हालाँकि कई लोग आइसलैंडिक क्षितिज के ऊपर सूरज उगने पर उपवास करना जारी रखते हैं। लम्बे उपवास के घंटों का मतलब है कि जब ईद-उल-फ़ित्र आता है, तो उत्सव जादुई होता है। रेक्याविक की कुछ मस्जिदों में से एक में आनन्ददायक मौज-मस्ती होती है और मेहमान इस पवित्र दिन का जश्न मनाने के लिए इंडोनेशियाई, मिस्री और इरिट्रियाई व्यंजनों से प्रेरित भोजन लेकर आते हैं। दुनिया भर में अनोखी ईद परम्पराएं इससे बेहतर नहीं हो सकतीं।

इंडोनेशिया में, ईद की परम्पराएँ परिवार और प्रियजनों के इर्द-गिर्द घूमती हैं। उपासक अपने परिवारों के साथ लेबरन (ईद-उल-फ़ित्र) मनाने के लिए बड़े शहरों को छोड़कर अपने पारिवारिक घरों में वापस आ जाते हैं। इंडोनेशियाई कैलेंडर में सबसे महत्वपूर्ण छुट्टी के रूप में, परिवार बाहर जाते हैं। परिवार प्रियजनों की क़ब्रों पर जाते हैं।

ईद रमज़ान के अन्त का जश्न मनाने का त्योहार है, जो उपवास, प्रार्थना और चिन्तन का पवित्र महीना है। अमेरिकी मुसलमान दिन के दौरान परिवार और दोस्तों के साथ भोजन साझा करके ईद-उल-फ़ित्र मनाते हैं।

अमेरिका में ईद इस्लामिक कैलेंडर में सबसे प्रतीक्षित त्योहारों में से एक है। अमेरिका में ईद-उल-फ़ित्र ख़ुशी, कृतज्ञता और आध्यात्मिक नवीनीकरण का समय है।

हमारे देश की ईद का अपना जलवा है। क़रीब 12 तरीक़े की सेवइयाँ, दही की फुलकियाँ और दही बड़े, पकौड़े, फेनी, हलवे, फल, बाज क़िस्म के शरबत, खुरचन वाली मिठाइयाँ और कितनी ही तरह की क्षेत्रीय मिठाइयाँ। इसके बाद का सिलसिला कबाब, बिरयानी, कोफ़्तों और कोरमों का है। मुसल्लम और ज़र्दा जैसे ख़ास व्यंजन भी और बेहिसाब अवधी, मुग़लिया, दक्कनी व्यंजन भारत की ईद को और लज़ीज़ बनाते हैं। आजकल विदेशी व्यंजनों का चलन भी बढ़ा है। बकलावा, अरबी खाने और ईरानी मिठाइयों की बिक्री और उनको त्योहारों में खाना-बाँटना इस विविधता को और बढ़ाता है।

दरअसल, भारत की ईद का एक भारतीय चरित्र है। और ये चरित्र भारतीय विविधताओं का चरित्र है। विविधतायें ही भारत को बरगद बनाती हैं। ईद मनाने वाले जो भारत में हैं, उन्हें भी इस विविधता ने सींचा और सँवारा है। हरियाणा में जब कोई गली से गुज़रता हुआ कहता है कि ईद की राम राम ताऊ तो उसका कोई साम्प्रदायिक या धार्मिक कारण नहीं होता। वो दरअसल हमारी विविधता में सींचा अभिवादन है जो सहज रहकर पहुँचना चाहता है। दूसरों को अपने त्योहारों में शामिल करना, दूसरों के त्योहारों में शामिल होना भारत के समाज की वो बुनावट है जो विविध रंगों वाली चादर बनकर हमें एक अलग पहचान देती है। राजनीति और भाषणबाज़ियों से परे समाज अपने तरीक़े से जीता चलता है। इसमें परस्पर सहयोग, समझ और सहभागिता का बुनियादी तत्व रहता है। ये वैविध्य का सामंजस्य ही हमारी सामाजिकता, अर्थव्यवस्था और मानवीयता को मज़बूत करता है। 

कई देशों में ईद की शुभकामनाएँ भी अलग-अलग हैं। नाइजीरिया में, लोग "बल्ला दा सल्लाह" कहते हैं, जो ईद की ख़ुशी का हौसा है। मलेशिया में, ईद को हरि राया कहा जाता है, इसलिए किसी को ईद की शुभकामना देने के लिए, आप कहेंगे "सेलामत हरि राया"।

ईद मुबारक। 

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