पीएम केयर्स फ़ंड से ख़रीदे हुए वेंटिलेटर्स का बुरा हाल है। कुछ राज्यों में इनका इस्तेमाल ही नहीं हो रहा है तो कुछ राज्यों में ये ढंग से काम ही नहीं करते। यानी कि इनमें तकनीकी गड़बड़ी है, ऐसे में इनका इस्तेमाल करना किसी मरीज की जान को मुसीबत में डालने जैसा है।
बात शुरू करते हैं पंजाब से। पंजाब के फरीदकोट में स्थित गुरू गोबिंद सिंह मेडिकल कॉलेज और अस्पताल को 80 वेंटिलेटर्स की सप्लाई की गई थी। लेकिन इनमें से 71 ख़राब हैं। इंडिया टुडे के मुताबिक़, मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर्स का कहना है कि ये वेंटिलेटर काम के नहीं हैं और इस्तेमाल करने के 1 से 2 घंटे के भीतर बंद हो जाते हैं। उनका कहना है कि इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि ये इस्तेमाल करते वक़्त अचानक रूक जाते हैं।
फरीदकोट की बाबा फ़रीद यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. राज बहादुर कहते हैं कि इन वेंटिलेटर्स की क्वालिटी भी ख़राब किस्म की है। पंजाब सरकार इन वेंटिलेटर्स की तकनीकी गड़बड़ियों को दूर करने के लिए इंजीनियर्स और तकनीशियनों को भेज रही है।
बिहार: वेंटिलेटर्स चलाने वाले लोग ही नहीं
अब आते हैं बिहार की ओर। बिहार के अररिया के जिला अस्पताल में छह वेंटिलेटर्स बेकार पड़े हुए हैं। ये वेंटिलेटर्स भी पीएम केयर्स फ़ंड से 8 महीने पहले मिले थे। इंडिया टुडे की टीम जब वहां पहुंची और इन वेंटिलेटर्स के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि इन्हें चलाने वाले लोग ही नहीं हैं, इसलिए इनका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। ऐसा ही कुछ सुपौल के सरकारी अस्पताल में हुआ था।
यह हद दर्जे की लापरवाही है क्योंकि जब सारा देश कोरोना महामारी की दूसरी लहर में ऑक्सीजन, आईसीयू बेड्स के साथ ही वेटिंलेटर्स की कमी से जूझ रहा है तो यहां 8 महीने पुराने वेंटिलेटर्स सिर्फ़ धूल फांक रहे हैं। आख़िर क्यों नहीं इन्हें चलाने वाले लोगों को नियुक्त किया गया।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़
अब आते हैं मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की ओर। यहां पीएम केयर्स फंड से मिले वेंटिलेटर्स में गड़बड़ियां हैं और कुछ दूसरे उपकरणों का इस्तेमाल नहीं हो रहा है क्योंकि इन्हें चलाने के लिए लोग नहीं हैं।
एनडीटीवी के मुताबिक़, भोपाल के सबसे बड़े हमीदिया अस्पताल के डॉक्टर्स की ओर से चिकित्सा अधीक्षक को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि ये वेंटिलेटर्स ढंग से काम नहीं कर रहे हैं। डॉक्टर्स ने लिखा है कि ये वेंटिलेटर्स अचानक बंद हो जाते हैं और ऐसे में मरीजों के लिए ख़तरा पैदा हो जाता है और डॉक्टर्स के लिए उनकी जान बचाना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा है कि इन्हें बदल दिया जाए। जबकि राज्य सरकार का कहना है कि इनमें कोई दिक्कत नहीं है।
भोपाल के अलावा सागर के बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में 72 वेंटिलेटर्स पीएम केयर्स फंड से भेजे गए लेकिन इनमें से सिर्फ़ 5 का इस्तेमाल कोरोना के दौरान आईसीयू में किया जा रहा है। शहडोल के मेडिकल कॉलेज को 24 वेंटिलेटर्स मिले लेकिन अस्पताल के डॉक्टर मिलिंद शिरालकर के मुताबिक़, इनमें कुछ दिक्कतें हैं और इस बारे में इन्हें बनाने वाली कंपनी को बता दिया गया है।
एनडीटीवी के मुताबिक़, छत्तीसगढ़ को पीएम केयर्स फ़ंड से 230 वेंटिलेटर्स मिले थे लेकिन इसमें से 58 काम नहीं कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में हालात ख़राब
वेंटिलेटर्स को लेकर उत्तर प्रदेश की स्थिति बेहद ख़राब है। परेशानी यहां भी वही है कि एक तो वेंटिलेटर्स चलाने के लिए कुशल लोग मौजूद नहीं हैं और कई जगहों पर ऑक्सीजन का दबाव सही नहीं मिल पाता है। हालांकि यहां बात पीएम केयर्स फ़ंड के वेंटिलेटर्स की नहीं बल्कि राज्य सरकार की ओर से लगाए गए वेंटिलेटर्स की हो रही है।
इंडिया टुडे के मुताबिक़, कानपुर के जाने-माने हैलेट अस्पताल में राज्य सरकार ने 150 वेंटिलेटर बेड लगाने के लिए 25 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। दिसंबर, 2020 में 120 वेंटिलेटर अस्पताल में पहुंच गए। लेकिन इनमें से सिर्फ़ 86 ही काम कर रहे हैं और बाक़ियों में वही तकनीकी गड़बड़ी वाला मामला है। जो 86 वेंटिलेटर काम कर रहे हैं, इसमें से भी दो दर्जन ऐसे हैं जो बीच-बीच में ख़राब हो जाते हैं।
हैलेट के अलावा कानपुर के उर्सुला अस्पताल में रखे चार वेंटिलेटर ऑक्सीजन का सही प्रेशर न मिलने के कारण काम नहीं कर रहे हैं और छह वेंटिलेटर ऐसे हैं जिनमें पहले ही कुछ गड़बड़ियां चल रही हैं।
इंडिया टुडे के मुताबिक़, लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल में 28 वेंटिलेटर का कोई इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। कारण इसका ये बताया गया है कि ऑक्सीजन की उपलब्धता की कमी है। इसी तरह, लखनऊ के लोकबंधु अस्पताल में रखे 18 वेंटिलेटर का कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है। इसके पीछे कारण बताया गया है कि इन वेंटिलेटर्स को चलाने वाले स्टाफ़ की कमी है।
बाक़ी जगह भी यही हालात
इसी तरह झांकी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज को दिए गए 70 में 10 वेंटिलटर्स बेकार पड़े हैं। इंडिया टुडे के मुताबिक़, अलीगढ़ के दीन दयाल कोविड केयर सेंटर में 44 वेंटिलेटर हैं, जिसमें से सिर्फ़ 10 काम कर रहे हैं। रामपुर के जिला अस्पताल को राज्य सरकार ने 14 वेंटिलेटर दिए थे लेकिन इनमें से सब काम नहीं कर रहे हैं। गोंडा के जिला अस्पताल में 17 वेंटिलेटर बेड्स खाली हैं क्योंकि इन्हें चलाने के लिए ऑपरेटर नहीं हैं।
पीएम केयर्स फ़ंड में आम लोगों ने अपनी खून-पसीने की कमाई इसलिए दी थी कि सरकार को कोरोना से लड़ाई में मदद मिलेगी। लेकिन सरकार ने इतने घटिया वेंटिलेटर बनाने वालों के ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई की, कुछ पता नहीं।
तय हो जवाबदेही
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय कह रहा है कि देश भर में 2 लाख मरीज वेंटिलेटर पर हैं, ऐसे हालात में अगर ये वेंटिलेटर सही ढंग से काम नहीं करेंगे तो मरीज की जान पर बन आएगी। बड़ा सवाल यही है कि आख़िर इतनी घटिया क्वालिटी के वेंटिलेटर जिस कंपनी ने बनाए, उसे अभी तक ब्लैक लिस्ट क्यों नहीं किया गया है। उसकी कोई जवाबदेही क्यों नहीं तय की गई है।
जिन जगहों पर ऑक्सीजन प्रेशर की कमी है, वहां पर इसे ठीक कर बाक़ी वेंटिलेटर्स को क्यों नहीं चालू किया जा रहा है। कंपनी अपने ख़राब वेंटिलेटर्स को रिपेयर क्यों नहीं करती और नए क्यों नहीं देती क्योंकि ये तो लोगों के पैसे से ख़रीदे गए हैं। इसी तरह के बहुत सारे सवाल हैं लेकिन इनका जवाब कौन देगा, इसका कोई पता नहीं है।