प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा, केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला और सरकार के कई प्रमुख अधिकारी सोमवार को उत्तराखंड के सिल्कयारा सुरंग पर पहुंचे। उत्तराखंड के मुख्य सचिव एसएस संधू भी मौके पर मौजूद हैं। केंद्रीय मंत्री वीके सिंह सोमवार को दोबारा यहां पहुंचे। इन सभी की मौजूदगी का उद्देश्य पिछले 15 दिनों से सिल्कयारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों के लिए चल रहे बचाव प्रयासों की प्रगति का आकलन करना बताया गया है।
मौसम विभाग ने उत्तरकाशी में बारिश का अलर्ट जारी किया है, जिससे सुरंग ढहने वाली जगह पर मैन्युअल ड्रिलिंग शुरू होने में देरी हो सकती है। विशेषज्ञ भी बारिश को बचाव कार्य में बड़ी बाधा मान रहे हैं।
सुरंग हादसे मामले में पीएमओ का अब सीधा दखल हो गया है। हालांकि इससे पहले भी था लेकिन पीएमओ के अधिकारी पहली बार यहां सोमवार को पहुंचे हैं। पीएम मोदी के प्रधान सचिव डॉ. पीके मिश्रा ने सिल्कयारा सुरंग का दौरा सोमवार को किया और वहां फंसे श्रमिकों से बातचीत की। उन्होंने फंसे हुए श्रमिकों के परिवारों से भी बात की। उन्होंने श्रमिकों को भेजी जा रही खाद्य सामग्री की भी रिपोर्ट ली। एनएनआई ने उनका वीडियो भी जारी किया है।
उत्तरकाशी में बचाव और राहत का सोमवार को 16वां दिन है। सिल्क्यारा में पहाड़ी की वर्टिकल ड्रिलिंग रविवार दोपहर को शुरू हुई थी, जिसमें फंसे हुए श्रमिकों को बचाने के लिए लगभग 110 मीटर पहाड़ी को खोदा जाना है। मशीन पहले ही पहाड़ी में 20 मीटर तक ड्रिल कर चुकी है, जबकि लगभग 86 मीटर अभी भी बाकी है। सुरंग की ड्रिलिंग में अमेरिकी बरमा मशीन के असफल होने के बाद वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन लाई गई और अंततः ऑपरेशन के बीच में एक मेटल में फंस गई थी।
अभी दो तरह से ड्रिलिंग हो रही है। वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन पहाड़ी की चोटी से तेजी से आगे बढ़ रही है, जबकि हैदराबाद से आई प्लाज्मा मशीन सुरंग के किनारे पाइप से बरमा मशीन को काट रही है। एक बार वर्टिकल ड्रिलिंग पूरी हो जाने पर फंसे हुए 41 श्रमिकों को एक हेलिकॉप्टर और हार्नेस रस्सी का इस्तेमाल करके ढही हुई सुरंग से बाहर निकाला जाएगा। हालांकि इस काम में कितने दिन लगेंगे, विशेषज्ञ कुछ भी बताने से कतरा रहे हैं। पहले चार दिन की बात कही जा रही थी लेकिन अब उस पर सभी मौन हैं।
पूरे ऑपरेशन के दौरान अगर वर्टिकल ड्रिलिंग नाकाम होती है तो बचाव मिशन पर मौजूद एजेंसियों ने 6 योजनाएं बना रखी हैं। इन योजनाओं के जरिए श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए साइडवे ड्रिलिंग या बहाव तकनीक का सहारा लिया जाएगा। कुल मिलाकर मैन्युअल ड्रिलिंग ही आखिरी उम्मीद है।