असम में गोमांस खाने पर पूरी तरह रोक, क्या राजनीति है सरमा की

08:42 am Dec 05, 2024 | सत्य ब्यूरो

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य भर के होटलों, रेस्तरां और सार्वजनिक स्थानों पर गोमांस परोसने और खाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरमा ने कहा कि नए नियमों को शामिल करने के लिए गोमांस की खपत पर मौजूदा कानून में संशोधन करने के लिए राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में निर्णय लिया गया है।

मुख्यमंत्री ने कहा- "असम में, हमने फैसला किया है कि किसी भी रेस्तरां या होटल में गोमांस नहीं परोसा जाएगा और किसी भी सार्वजनिक समारोह या सार्वजनिक स्थान पर भी इसे नहीं परोसा जाएगा। इसलिए आज से हमने होटलों, रेस्तरांओं में गोमांस की खपत को पूरी तरह से बंद करने का फैसला किया है।" 

सरमा ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि पहले मंदिरों के 5 किमी के दायरे में गोमांस परोसने या सेवन न करने का प्रावधान था। बीजेपी नेता ने कहा, ''लेकिन अब हमने इसका विस्तार पूरे राज्य में कर दिया है कि आप इसे किसी भी सामुदायिक स्थान, सार्वजनिक स्थान, होटल या रेस्तरां में नहीं खा पाएंगे।''

राजनीतिक कारणः हाल ही में कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि भाजपा ने सामागुरी के मुस्लिम बहुल इलाके में चुनाव जीतने के लिए गोमांस बांटा था। इस आरोप के बाद भाजपा बचाव में उतर पड़ी। उसे बयानों के जरिये तमाम सफाइयां देना पड़ीं। अभी तक चुनाव में शराब बांटने के आरोप लगते रहे हैं लेकिन गोमांस बांटने का आरोप पहली बार लगा था। अब मुख्यमंत्री ने जवाब में ​​कहा कि अगर राज्य कांग्रेस प्रमुख भूपेन कुमार बोरा उन्हें पत्र लिखकर मांग करें तो वह असम में गोमांस पर प्रतिबंध लगाने के लिए तैयार हैं। यानी सरमा ने बीफ पर अब जो बैन लगाया है, अप्रत्यक्ष रूप से उसके लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है।

असम में गोमांस का सेवन अवैध नहीं है, लेकिन असम पशु संरक्षण अधिनियम 2021 उन क्षेत्रों में पशु वध और गोमांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाता है जहां हिंदू, जैन और सिख बहुसंख्यक रहते हैं। इसी तरह मंदिर और मठ के पांच किलोमीटर के दायरे में इसे बेचने पर रोक है।लेकिन अब यह प्रतिबंध अब पूरे राज्य में होटल, रेस्तरां और सार्वजनिक स्थानों पर लगाया गया है।

उत्तर पूर्व (नॉर्थ ईस्ट) राज्यों में गोमांस बड़े पैमाने पर खाया जाता है। नागालैंड, मणिपुर आदि में गोमांस मुख्य भोजन में शामिल रहता है। बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि- इतिहास बताता है कि प्राचीन भारत से लेकर सिंधु घाटी सभ्यता तक में गोमांस और जंगली सूअर का व्यापक रूप से सेवन किया जाता था। 1500 और 500 ईसा पूर्व के बीच वैदिक युग में पशु और गाय की बलि आम थी - मांस देवताओं को चढ़ाया जाता था और फिर दावतों में खाया जाता था।

बीजेपी शासित राज्यों में खासतौर पर भाजपा-आरएसएस गोमांस पर प्रतिबंध की मांग मुस्लिमों को टारगेट करके करते हैं। असम में ताजा प्रतिबंध भी मुस्लिमों को टारगेट करके ही किया गया है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक मुगलकाल में मुस्लिम राजा या हमलावर सेनाएं नहीं थे जो भारत में मांस-भक्षण लेकर आए। हालांकि दक्षिणपंथी अक्सर यही बात कहते हैं कि मुगल मांस भक्षण लेकर आए। ब्राह्मणों और कुछ अन्य उच्च जातियों के आहार से गोमांस गायब रहता है। इसके कारण अलग-अलग हैं लेकिन धर्म ही इसका एकमात्र कारण नहीं है। ऐसा होता तो वैदिक युग में या वेदों में इसका जिक्र क्यों मिलता है।

पियू रिसर्च में कहा गया है कि भारत में सिर्फ 39 फीसदी लोग शाकाहार यानी वेजिटेरियन हैं। करीब 81 फीसदी लोगों ने कहा कि वे मांसाहारी यानी नॉन वेजिटेरियन हैं। ये अलग बात है कि सारे मांसाहारी अलग-अलग तरह का मीट (मांस) खाना पसंद करते हैं। कश्मीर, उत्तराखंड में तो ब्राह्मण भी मांसाहारी हैं।


भारत में मांस खाने की आदत का अंदाजा भारतीय फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी स्विगी के आंकड़े से लगाया जा सकता है। स्विगी का डेटा बताता है कि मांस की खपत भारत में बढ़ रही है। पिछले साल भारतीय स्विगी पर सबसे ज्यादा ऑर्डर किया जाने वाला खाना चिकन बिरयानी थी। भारत में हर सेकंड दो प्लेट चिकन बिरयानी का ऑर्डर स्विगी को मिला था। लेकिन मांस को अब हिन्दू-मुस्लिम खाई को और बढ़ाने के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।