लगातार दूसरी बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि उनकी सरकार जल्द ही यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता का क़ानून बनाएगी। धामी ने राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले इस बारे में एलान किया था कि अगर बीजेपी सत्ता में वापस आती है तो उनकी सरकार इस क़ानून को बनाएगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार इस बारे में विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाएगी जो इस क़ानून को बनाने से जुड़ा ड्राफ्ट बनाएगी। इस कमेटी में न्यायिक विशेषज्ञों, रिटायर्ड अफसरों, बुद्धिजीवियों को शामिल किया जाएगा।
धामी ने कहा कि यह कमेटी ड्राफ्ट को तैयार करने से पहले बड़े स्तर पर रायशुमारी करेगी।
धामी ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लोगों को शादी, तलाक, जमीन, संपत्ति और विरासत के लिए एक क़ानूनी फ्रेमवर्क देगा, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। उन्होंने कहा कि इससे सामाजिक सौहार्द्र बढ़ेगा, लिंग आधारित भेदभाव खत्म होगा और महिलाओं का सशक्तिकरण होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी समान नागरिक संहिता का क़ानून लाने का वादा किया था।
दूसरा राज्य बनेगा
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का क़ानून बनने के बाद यह दूसरा राज्य होगा जहां पर इस तरह का क़ानून बनाया जाएगा। अभी तक सिर्फ गोवा में ही यह क़ानून बनाया गया है। इससे पहले गोवा में 19वीं सदी का पुर्तगाली नागरिक संहिता का क़ानून था जिसे 1961 में गोवा के भारत में शामिल होने के बाद भी समाप्त नहीं किया गया था।
संविधान का अनुच्छेद 44
इस बारे में टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए एडवोकेट कार्तिकेय हरि गुप्ता ने कहा कि समान नागरिक संहिता की बात भारत के संविधान में कही गई है। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता को अनिवार्य करता है।
यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य भारत के सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुनिश्चित करेगा। यहां राज्य से मतलब भारत की सरकार, भारत की संसद और सभी राज्यों की सरकारों से है। इसका मतलब यह है कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही समान नागरिक संहिता का क़ानून ला सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2019 में केंद्र सरकार की यह कहकर आलोचना की थी कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के लागू होने के 63 साल बीत जाने के बाद भी संविधान के अनुच्छेद 44 की अनदेखी की गई है और समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश नहीं की गई है।
क्या है समान नागरिक संहिता?
समान नागरिक संहिता से मतलब है कि शादी, तलाक़, गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में देश के सभी लोगों के लिए एक समान क़ानून होंगे चाहे वे किसी भी धर्म के क्यों न हों। ताज़ा सूरत-ए-हाल यह है कि इन सभी मामलों के लिए अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग क़ानून हैं और समान नागरिक संहिता के बन जाने से ये सभी अलग-अलग पर्सनल लॉ ख़त्म हो जाएंगे।
इन पर्सनल लॉ में हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, भारतीय तलाक़ अधिनियम, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम शामिल हैं। मुसलिम पर्सनल लॉ को संहिताबद्ध नहीं किया गया है और यह उनके धार्मिक पुस्तकों पर आधारित है।