उत्तराखंड: रावत पर हाईकमान ने जताया 'भरोसा', नई कमेटी घोषित

10:31 am Jul 23, 2021 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

पंजाब के बाद उत्तराखंड कांग्रेस के मसलों को सुलझाने का काम भी कांग्रेस हाईकमान ने कर लिया है। हाईकमान ने गुरूवार रात को उत्तराखंड कांग्रेस की नई कमेटी का एलान तो किया ही, इसके साथ ही चुनाव से जुड़ी कई और कमेटियों को भी मंजूरी दी है। राज्य में 7 महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। बीते एक महीने से नई कमेटी का एलान रुका हुआ था लेकिन अब हाईकमान की मंजूरी के बाद कांग्रेस संगठन बिना उहापोह के जनता के बीच पहुंच सकेगा। 

नई कांग्रेस कमेटी में गढ़वाल से आने वाले पूर्व विधायक गणेश गोदियाल को अध्यक्ष बनाया गया है जबकि अब तक अध्यक्ष रहे प्रीतम सिंह को विधायक दल के नेता की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को चुनाव प्रचार कमेटी की कमान सौंपी गई है। 

चार कार्यकारी अध्यक्ष

राज्य कांग्रेस में गुटबाज़ी इस कदर थी कि महज सवा करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में भी पार्टी ने पंजाब की तर्ज पर चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए हैं। इन अध्यक्षों की नियुक्ति में जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों का ध्यान रखा गया है। 

नई कमेटी के एलान को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने पिछले एक महीने से दिल्ली में डेरा डाला हुआ था। विपक्ष की नेता रहीं इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद यह पद खाली चल रहा था और हरीश रावत कैंप ने चेहरा घोषित करने को लेकर पूरा जोर लगा दिया था। 

हरीश रावत प्रमुख चेहरा! 

लड़ाई इस बात की थी कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत चाहते हैं कि कांग्रेस किसी चेहरे के साथ चुनाव में जाए जबकि पार्टी के निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह चाहते हैं कि चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाना चाहिए। लेकिन चुनाव प्रचार कमेटी के अध्यक्ष के रूप में हरीश रावत को एक तरह से एक बार फिर पार्टी ने प्रमुख चेहरे के रूप में पेश किया है। 

रावत की पसंद को तरजीह 

कांग्रेस हाईकमान ने एक बार फिर हरीश रावत पर भरोसा तो जताया ही है, उनकी पसंद को भी तरजीह दी है। प्रीतम सिंह प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री भुवन कापड़ी को प्रदेश अध्यक्ष के पद पर देखना चाहते थे और उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए यही शर्त भी रखी थी कि उनके क़रीबी शख़्स को ही संगठन की कमान सौंपी जाएगी। जबकि हरीश रावत ने गणेश गोदियाल का नाम आगे बढ़ाया था। 

ऐसे में हाईकमान ने रावत की पसंद गोदियाल को अध्यक्ष बनाया है जबकि कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति में प्रीतम सिंह के कैंप को तरजीह दी गई है। जो चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं, उनमें भुवन कापड़ी, रंजीत रावत, प्रोफ़ेसर जीतराम और तिलकराज बेहड़ का नाम शामिल है। 

भुवन कापड़ी, रंजीत रावत और तिलकराज बेहड़ कुमाऊं से आते हैं जबकि प्रोफ़ेसर जीतराम गढ़वाल से। भुवन कापड़ी और रंजीत रावत को प्रीतम सिंह के कैंप का नेता माना जाता है। 

प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता का चयन गढ़वाल मंडल से करके पार्टी ने इस क्षेत्र को अहमियत दी है और कुमाऊं के लोगों में इससे नाराज़गी न पैदा हो इसलिए हरीश रावत को बेहद अहम चुनाव प्रचार कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है।

इसके अलावा भी चुनाव से संबंधित कई कमेटियों में हरीश रावत के समर्थकों का दबदबा दिखाई देता है। जैसे चुनाव प्रचार कमेटी के उपाध्यक्ष और संयोजक दोनों ही उनके कैंप के हैं। 

रावत के सामने चुनौतियों का अंबार

हालांकि हरीश रावत अपनी बात मनवाने में कामयाब रहे हैं लेकिन उनके लिए 2022 का चुनाव आसान नहीं है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वह 3 लाख से ज़्यादा वोटों से चुनाव हारे हैं। 2017 के चुनाव में पार्टी ने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा था तो उसे सिर्फ़ 11 सीटों पर जीत मिली थी और रावत ख़ुद दोनों सीटों से चुनाव हार गए थे। 

लेकिन तब कांग्रेस के इस ख़राब प्रदर्शन के पीछे विधायकों की टूट भी बड़ा कारण थी। सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत और यशपाल आर्य जैसे दिग्गज कांग्रेसियों ने बीजेपी का हाथ थाम लिया था। इसके अलावा भी कई विधायक पार्टी छोड़कर चले गए थे। लेकिन चुनाव चूंकि रावत के चेहरे पर लड़ा गया था इसलिए हार का जिम्मेदार उन्हें ही माना गया। 

करो या मरो वाला चुनाव 

73 साल के हो चुके हरीश रावत के लिए यह चुनाव करो या मरो वाला है। राज्य में उनके समर्थकों की एक लंबी कतार है, जो उनके फिर से मुख्यमंत्री बनने पर ही अपनी राजनीति को जिंदा रख सकती है। रावत ने बीते एक साल में सक्रियता को बढ़ाया है लेकिन पंजाब कांग्रेस के झगड़ों के कारण इसमें खलल पड़ा है। 

बताया गया है कि उन्होंने हाईकमान से उन्हें पंजाब कांग्रेस के प्रभारी के पद से विदाई देने का अनुरोध किया है, जिससे वे उत्तराखंड में पार्टी के लिए काम कर सकें। दिल्ली कांग्रेस के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष देवेंद्र यादव उत्तराखंड कांग्रेस के प्रभारी हैं और उन्होंने भी राज्य में कांग्रेस की नई टीम के एलान के लिए खासी दिमागी कसरत की है। 

दूसरी ओर, बीजेपी उत्तराखंड को लेकर कई प्रयोग कर चुकी है और चार महीने में ही उसने तीन मुख्यमंत्री दिए हैं।