उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जैसे ही 80 और 20 फ़ीसदी की बात कही तो इसके तमाम सियासी मतलब राजनीतिक विश्लेषकों ने निकाले। एक अहम मतलब यह भी था कि भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह हिंदुत्व की पिच पर इस चुनाव को लड़ेगी।
इसे देखते हुए समाजवादी पार्टी इस बार मुसलिम समुदाय के कम लोगों को चुनाव मैदान में उतार सकती है।
2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने लगभग 60 सीटों पर मुसलिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था जबकि उसके साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी कांग्रेस ने 22 सीटों पर मुसलमानों को टिकट दिया था।
सपा के एक नेता ने न्यूज़ 18 को बताया कि पार्टी की कोशिश हिंदू बनाम मुसलिम की बहस से बचने की है और विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वह ऐसा करेगी। उन्होंने कहा कि पार्टी इस बार 2017 के मुकाबले कम सीटों पर मुसलिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारेगी।
बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद बड़े पैमाने पर हिंदू मतों का ध्रुवीकरण हुआ था और बीजेपी को लगातार जीत मिली थी।
बीजेपी ने बीते कुछ दिनों में विकास के तमाम बड़े प्रोजेक्ट्स के उद्घाटन और शिलान्यास के बीच मथुरा में कृष्ण मंदिर, कैराना पलायन का मुद्दा उठाने सहित हिंदुत्व की पिच पर आक्रामक ढंग से खेलने के संकेत वाले कई बयान दिए हैं।
सपा नहीं चाहती कि बीजेपी इस बात को मुद्दा बनाए कि उसने बड़ी संख्या में मुसलमानों को टिकट दिया है। ऐसे में ध्रुवीकरण होने से सपा को नुकसान हो सकता है और शायद इसीलिए पार्टी ख़ुद पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण करने वाली पार्टी का ठप्पा भी नहीं लगने देना चाहती।
अखिलेश यादव ने परशुराम का फरसा उठाने के साथ ही भगवान कृष्ण उनके सपने में आते हैं, ऐसा बयान देकर खुद को बीजेपी के हिंदू विरोधी प्रचार से बचाने की पूरी कोशिश की है।