विधानसभा का चुनाव पांच प्रदेशों में है, और यदि समय से चुनाव कराने की मेहरबानी चुनाव आयोग ने की तो बहुत कम अंतराल में पांचों प्रदेशों के चुनाव होंगे। लेकिन क्या ऐसा नहीं लगता कि बीजेपी का सारा चुनावी जोर यूपी में ही है। बिल्कुल पश्चिम बंगाल जैसा। वहां ममता को हराने के लिए पूरी केंद्र सरकार ने पूरी ताक़त झोंक दी थी और यूपी में योगी सरकार बचाने के लिए पूरी ताक़त झोंक रही है। हाल यह है कि योगी की कुर्सी बचाने पीएम और गृहमंत्री यूपी में जूझ रहे हैं।
पिछले सात सालों में बेशक कुछ विकास के कार्य भी हुए हैं लेकिन बीजेपी इतनी डरी हुई है कि वह मंदिर-मसजिद-हिंदू-मुसलमान से आगे बढ़ ही नहीं पा रही। प्रचार के लिए लगे उसके होर्डिंग्स में अयोध्या ही दिख रहा है। काशी भी जल्द दिखने लगेगा। धूंआधार जनविश्वास यात्राओं में केंद्र से लेकर प्रदेश तक यूपी से जुड़े जितने बड़े नेता हैं, सबको झोंक दिया गया और ‘हिंदू ख़तरे हैं’ के नाम पर वोट मांग रहे हैं। बहुत आगे बढ़ पाए तो मुफ्त अनाज से लेकर आवास, शौचालय और किसान सम्मान निधि को वोट पाने का हथियार बना रहे हैं। हालाँकि जनविश्वास यात्राओं में आ रही भीड़ से इन्हें निराशा ही हो रही है।
बीजेपी के लोग अपने भाषणों में अभी सपा और अखिलेश पर निशाना साध रहे हैं। बसपा का तो नाम नहीं लेते जबकि कांग्रेस को मरा हुआ सांप बताते हैं। हकीकत इसके इतर है। कांग्रेस, खास तौर से प्रियंका की सभाओं में उमड़ी भीड़ बीजेपी को कम बेचैन नहीं कर रही। बीजेपी की बड़ी परेशानी कांग्रेस के 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने को लेकर भी है। कांग्रेस की यह घोषणा सचमुच हैरान करने वाली थी क्योंकि जिस प्रदेश में कांग्रेस के महिला संगठन का अता पता न हो वहां 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट?
लेकिन यूपी में प्रियंका की सभाओं में उमड़ रहा जनसैलाब और फिर लड़कियों के मैराथन दौड़ में भी लड़कियों के भारी उत्साह को देख यह भ्रम दूर हो गया। इधर यूपी कांग्रेस के एक बड़े पदाधिकारी ने बताया कि करीब पांच हजार महिलाओं ने टिकट के लिए आवेदन कर रखा है। 40 प्रतिशत के हिसाब से यूपी में 161 टिकट केवल महिलाओं को! कांग्रेस सूत्रों से पता चला है कि क़रीब 70 महिलाओं का टिकट पक्का भी है और इसकी सूची कभी भी जारी हो सकती है। शेष सीटों के लिए स्क्रीनिंग का काम तेजी से चल रहा है।
चुनाव परिणाम पर तो कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी लेकिन कांग्रेस की घोषणाएँ भी बीजेपी की परेशानी का सबब है। कुछ अजीब सा ज़रूर लगता है, महिला घोषणा पत्र! लेकिन आज की राजनीति का जो चलन है, इसमें प्रियंका गांधी के इस चुनावी स्ट्रेटजी को मास्टर स्ट्रोक क्यों न कहा जाए?
महिला घोषणा पत्र निसंदेह यूपी विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस कर मैदान में उतरी प्रियंका गांधी के 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने की रणनीति का हिस्सा है।
पिछले दिनों लखनऊ में प्रियंका गांधी ने महिलाओं के लिए खास तौर पर अलग घोषणा पत्र जारी किया है। इसे महिलाओं को सशक्त बनाने संबंधी 6 भागों में वर्गीकृत किया गया है। सबके अलग-अलग मायने हैं। मुमकिन है कि बीजेपी सहित अन्य राजनीतिक दलों के लिए प्रियंका का यह खास घोषणा पत्र उपहास जैसा हो लेकिन चुनाव के ऐन पहले जब प्रधानमंत्री महिलाओं की अलग सभा बुलाते हों, उनसे अलग से बात करते हों, सीएम योगी अपने शहर गोरखपुर में ई-बस की लड़की ड्राइवर के साथ फोटो खिंचवा रहे हों तो बीजेपी की यह रणनीति कहीं न कहीं कांग्रेस के महिला घोषणा पत्र से जुड़ा हुआ ज़रूर लगता है।
वैसे भी बाक़ी राजनीतिक दल वोट के लिए जब जातियों का बँटवारा करते हैं, उनके अलग-अलग सम्मेलन करते हैं और जन आर्शीवाद यात्राएं निकालते हैं, ऐसे में प्रियंका यदि महिलाओं को लामबंद कर रही हैं तो बुरा क्या है? प्रियंका गांधी जब महिलाओं की बात करती हैं तो उसमें कम से कम जातिय विभेद तो नहीं होता।
अफसोस! प्रियंका गांधी के इस क़दम पर सवाल खड़े करने वाले वे लोग हैं जो महिलाओं के लिए दावे बड़े बड़े करते हैं लेकिन जब उनकी भागीदारी की बात होती है तब बगले झाँकने लगते हैं। सोचिए बसपा सुप्रीमो मायावती तक ने महिला होकर भी महिलाओं के बारे में कितना सोचा? 2017 के विधानसभा चुनाव में सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली बसपा ने कितनी महिलाओं को टिकट दिया था? मात्र 21! इसमें से जीत कितनी पाईं, मात्र दो।
महिला होकर भी जब एक सशक्त नेता मायावती ने महिलाओं के बारे में कुछ नहीं सोचा तो बाकी दलों की बात ही और है।
इसी 2017 के विधानसभा चुनाव में 384 सीटों पर चुनाव लड़ी बीजेपी ने 46 महिलाओं को टिकट दिया था जिसमें से 36 महिलायें जीतकर विधानसभा में पंहुची थीं। इस हिसाब से बीजेपी ने 12 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया था। सपा ने 31 महिलाओं को टिकट दिया था और जीतकर विधानसभा तक केवल एक पहुंची। कांग्रेस जो सपा के साथ गठबंधन में 112 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, उसने 11 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया था और दो जीतकर विधानसभा पहुंची थीं।
संभवतः प्रियंका गांधी ने यूपी के आसन्न विधानसभा चुनाव में राजनीति की बहुत मज़बूत नब्ज पकड़ ली है। उन्होंने महिलाओं की ताक़त को शिद्दत से समझा है और जहाँ आज की राजनीति जातियों में विभक्त है वहीं उन्होंने हर जाति की महिलाओं के लिए राजनीति का दरवाजा खोलकर बड़ा दांव खेला है। महिलाओं के लिए ढेर सारे वादे भी उन्होंने किये हैं। छात्राओं को पढ़ाई के लिए स्मार्ट फोन और स्कूटी का वादा भी किया है। वादा ही नहीं, लड़कियों का मैराथन दौड़ कराकर इसे देना भी शुरू कर दिया।
विधानसभा चुनाव में प्रियंका के वादे कितने असरदार होंगे, इसका आकलन तो नहीं किया जा सकता है लेकिन एक बात साफ़ है वो यह कि वोट प्रतिशत के सर्वे में कांग्रेस कुछ न कुछ बढ़त हासिल करती हुई ही दिख रही है। 2017 के चुनाव में यूपी में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 6 प्रतिशत था, अभी कुछ चैनलों के सर्वे में भी इसके वोट प्रतिशत को 8 से 10 प्रतिशत तक बताया गया है। चुनाव आते आते इसमें और इजाफा ही होना है।