वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी मसजिद में सर्वे को लेकर शुक्रवार को हंगामा हुआ। अदालत की ओर से नियुक्त कमिश्नर और वकीलों की टीम ज्ञानवापी मसजिद की पश्चिमी दीवार के पीछे स्थित श्रृंगार गौरी स्थल का सर्वे करने पहुंची। एक स्थानीय अदालत ने इसकी वीडियोग्राफी करने और उसकी रिपोर्ट सौंपे जाने का आदेश दिया था।
अदालत की ओर से नियुक्त किए गए कमिश्नर और उनके सहयोगियों के अलावा पांच वादी और उनके वकील, वीडियोग्राफर्स और मुस्लिम पक्ष के पांच लोग भी इस सर्वे टीम का हिस्सा हैं।
मसजिद के प्रबंधकों ने मसजिद के भीतर किसी भी तरह की वीडियोग्राफी होने को लेकर आपत्ति जताई और इसका विरोध किया। मसजिद के बगल में ही काशी विश्वनाथ मंदिर स्थित है।
हालांकि अदालत के आदेश में यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया है कि सर्वे के दौरान क्या ज्ञानवापी मसजिद के अंदर भी वीडियोग्राफी की जाएगी।
मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा है कि वह अदालत में याचिका दायर कर कमिश्नर को बदले जाने की मांग करेंगे। मुस्लिम पक्ष के वकील अभय नाथ यादव ने कहा कि स्थानीय मान्यताओं के मुताबिक श्रृंगार गौरी देवी की पूजा साल में एक बार नवरात्रि के दौरान की जाती है।
क्या है मामला?
बीते साल अप्रैल महीने में राखी सिंह और 4 अन्य लोगों ने बनारस की एक अदालत में याचिका दायर कर कहा था कि उन्हें श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और अन्य देवी-देवताओं की पूजा की इजाजत दी जानी चाहिए। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि मसजिद की पश्चिमी दीवार पर श्रृंगार गौरी की एक छवि थी। उन्होंने याचिका में मांग की थी कि मसजिद के प्रबंधकों को श्रृंगार गौरी की पूजा, दर्शन, आरती करने में किसी भी हस्तक्षेप से रोका जाए।
उन्होंने अपनी याचिका में किसी एडवोकेट को कमिश्नर के रूप में नियुक्त करने और इस जगह का निरीक्षण कराने की भी मांग की थी।
इसके बाद निचली अदालत ने सर्वे कराने का आदेश दिया था।
इस बारे में इलाहाबाद हाई कोर्ट में अंजुमन इंतजामिया मसजिद की ओर से दायर एक याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया था। मसजिद के प्रबंधकों ने निचली अदालत के द्वारा मसजिद का सर्वे किए जाने के लिए कमिश्नर को नियुक्त करने के आदेश को चुनौती दी थी।
शुक्रवार को जब टीम वहां पर पहुंची तो एक महिला ने काशी विश्वनाथ मंदिर के सामने नमाज भी पड़ी। 26 अप्रैल को सिविल जज ने आदेश दिया था कि सर्वे का काम ईद के बाद शुरू किया जाना चाहिए। अदालत कमिश्नर की रिपोर्ट पर इस मामले में 10 मई को फिर से सुनवाई करेगी।
एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि ज्ञानवापी मसजिद का सर्वे किया जाना 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का खुला उल्लंघन है।
पूजा स्थल अधिनियम, 1991
बता दें कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के अनुसार, किसी भी पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप 15 अगस्त 1947 को जैसा था, वैसा ही रहेगा और उसे बदला नहीं जा सकता है। इससे अयोध्या मामले को बाहर रखा गया था और बाकी सभी मुद्दों पर इस तरह की क़ानूनी प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई थी।
पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है।