पत्रकारों की गिरफ़्तारी क्यों; क्या उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता गुनाह है?

08:08 am Sep 13, 2019 | कुमार तथागत - सत्य हिन्दी

उत्तर प्रदेश में बीते 15 दिनों के भीतर आधा दर्जन ज़िलों में दर्जन भर पत्रकारों पर पुलिस ने मुक़दमे दर्ज कर दिए हैं। कई ज़िलों में पत्रकारों को संगीन धाराओं में अभियुक्त बना दिया गया है तो कई जगहों पर आम लोगों के हित में और सरकारी गड़बड़ी के ख़िलाफ़ ख़बरें छापने-दिखाने पर मुक़दमे लाद दिए गए हैं। मेरठ, अलीगढ़, बिजनौर, मिर्ज़ापुर, आजमगढ़ से लेकर लखनऊ तक में पत्रकारों पर योगी सरकार के अधिकारियों का कहर टूट रहा है। पत्रकारों के उत्पीड़न को लेकर प्रदेश सरकार से लेकर ज़िला प्रशासन तक कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पत्रकार संगठन भी ज़्यादातर मामलों में चुप्पी साधे बैठे हैं। 

कुछ मामलों में पत्रकारों ने मोर्चा खोलने की कवायद भी की तो उन्हें आश्वासन देकर टरका दिया गया। मिर्ज़ापुर में जहाँ ख़ुद मुख्यमंत्री ने मिड-डे-मील में धांधली उजागर करने वाले पत्रकार की रिपोर्ट पर दोषियों को सस्पेंड करने की कार्रवाई की वहीं व्हिस्लब्लोअर को ही आपराधिक मुक़दमे में फँसा दिया गया। आजमगढ़ में पुलिस दारोगा के बिना नंबर की स्कॉर्पियो गाड़ी रखने की ख़बर दिखाने वाले पत्रकारों को दूसरे मामले में फँसाकर आरोपी बना दिया गया, वहीं बिजनौर में दलितों पर दबंगों के कहर की ख़बर चलाने वालों को अपराधी बना मुक़दमे लाद दिए गए हैं।

मुक़दमे पर सरकार ने साधी चुप्पी

मिर्ज़ापुर में मिड-डे-मील में बच्चों को नमक-रोटी परोसे जाने की ख़बरों ने देश भर का ध्यान अपनी ओर खींचा। मुख्यमंत्री ने मामले का संज्ञान लेते हुए जाँच करवाई और दोषी शिक्षकों व कर्मियों को दंडित किया। घटना के कुछ दिन बाद से ही मिर्ज़ापुर के ज़िलाधिकारी अनुराग पटेल ने धांधली उजागर करने वाले पत्रकार पवन जायसवाल को कथित तौर पर धमकाना शुरू किया और आख़िरकार उस पर षड्यंत्र रचने का मुक़दमा दर्ज कर दिया।

हैरत की बात है कि योगी सरकार बनने के बाद से सजातीय सांसद अनुप्रिया पटेल की सिफ़ारिश पर तैनात हुए ज़िलाधिकारी को इस मामले में ग़लत मानने के बाद भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी और अब इस मामले में एसआईटी जाँच के नाम पर उसे 'क्लीन चिट' देने की योगी सरकार तैयारी कर रही है। ख़ुद सरकार के दो वरिष्ठ मंत्रियों ने ‘सत्य हिन्दी’ से स्वीकार किया कि पत्रकार पर ग़लत मुक़दमा दर्ज हुआ है पर सरकार ज़िलाधिकारी पर कार्रवाई के मूड में नहीं है। 

ग़ौरतलब है कि मिर्ज़ापुर में तैनात ज़िलाधिकारी अनुराग पटेल प्रोन्नत आईएएस हैं और प्रदेश में काफ़ी लंबे समय से एक ही ज़िले में तैनात रहने का रिकॉर्ड बना चुके हैं।

मिर्ज़ापुर ज़िलाधिकारी ने पत्रकार पर मुक़दमे दर्ज कराने को लेकर हास्यास्पद बयान देते हुए यह भी कहा था कि अख़बार के पत्रकार ने मिड-डे-मील का वीडियो बनाकर ग़लत किया है।

कई ज़िलों में पत्रकारों पर मुक़दमा

मिर्ज़ापुर के मामले से इतर आजमगढ़ में एक दारोगा ने अपने ख़िलाफ़ ख़बर दिखाने वाले कुछ पत्रकारों के ख़िलाफ़ एक स्कूल में बच्चों के झाड़ू लगाने की ख़बर को लेकर पहले तो शिक्षकों को उनके ख़िलाफ़ खड़ा किया और बाद में उन पर मुक़दमा लिख लिया। हालाँकि आजमगढ़ में ज़िलाधिकारी के हस्तक्षेप के बाद मामले को ठंडा कर दिया गया। वहीं मेरठ में ‘अमर उजाला’ के पत्रकार मोहित कुमार के ख़िलाफ़ पुलिस ने थाने में तस्करा डाला यानी सूचना दर्ज की है। मेरठ में टोल प्लाजा पर बदमाशों ने लूट का प्रयास किया, इस ख़बर को लिखने पर घटना को ग़लत बताते हुए पुलिस ने पत्रकार के ख़िलाफ़ ही जाँच शुरू कर दी है। बिजनौर में दलित बिरादरी के लोगों का दबंगों द्वारा पानी बंद किए जाने की ख़बर लिखने पर ‘दैनिक जागरण’ व ‘न्यूज 18’ के पत्रकारों सहित पाँच पत्रकारों पर संगीन धाराओं में मुक़दमा दर्ज किया गया है। लखनऊ में पत्रकार असद रिज़वी को मुहर्रम से संबंधित ख़बर लिखने पर पुलिस ने कथित तौर पर घर पहुँच कर धमकाया और आगे से इस तरह की ख़बरें न लिखने की हिदायत दी।

पत्रकारों के विरोध का असर नहीं, सरकार अड़ी

प्रदेश भर में आए दिन पत्रकारों के उत्पीड़न और बदले की भावना से की जा रही कार्रवाइयों को लेकर राजधानी लखनऊ में कुछ पत्रकार संगठनों ने विरोध के स्वर भी बुलंद किए। इसी मंगलवार को कैबिनेट बैठक के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश राज्य मान्यता समिति के अध्यक्ष व इंडियन फ़ेडरेशन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट (आईएफ़डब्ल्यूजे) उपाध्यक्ष हेमंत तिवारी व यूपीडब्लूजेयू अध्यक्ष भास्कर दुबे ने योगी सरकार को ज्ञापन देकर दोषियों पर अविलंब कार्रवाई की माँग की। प्रदेश सरकार के प्रवक्ता और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा और कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह को सौंपै ज्ञापन में विभिन्न ज़िलों में पत्रकारों पर दर्ज मुक़दमे ख़त्म करने और उन्हें सुरक्षा देने की माँग की।

ज्ञापन में कहा गया कि पत्रकार संगठन इन सभी प्रकरणों को लेकर न केवल विरोध दर्ज करा चुके हैं बल्कि सक्षम अधिकारियों से वार्ता कर पत्रकारों का उत्पीड़न रोकने, उनके ख़िलाफ़ मुक़दमे वापस लेने व दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करने की माँग कर चुके हैं। अब तक कोई कार्रवाई दोषियों के ख़िलाफ़ नहीं हो पाई है। पत्रकार प्रतिनिधियों को सरकार के प्रतिनिधियों ने कार्रवाई का आश्वासन तो दिया पर अब तक कुछ भी ठोस नहीं किया गया। 

प्रदेश सरकार के एक उच्चाधिकारी ने बताया कि मिर्ज़ापुर प्रकरण में अब सरकार अपने क़दम वापस नहीं खींचेगी। उनका कहना है कि ज़िलाधिकारी पर कार्रवाई से पत्रकारों के हौसले बढ़ेंगे।

प्रेस काउंसिल, एडिटर्स गिल्ड ने विरोध जताया

मिर्ज़ापुर में मिड-डे-मील की धांधली उजागर करने वाले पत्रकार पवन जायसवाल पर मुक़दमा दर्ज कराने के मामले में जहाँ एडिटर्स गिल्ड ने विरोध जताते हुए इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया है वहीं प्रेस कांउसिल ऑफ़ इंडिया ने इस पूरे मामले पर एक टीम गठित कर रिपोर्ट देने को कहा है। प्रेस कांउसिल ने बुधवार को एक आदेश जारी कर अपने दो सदस्यों सैयद रज़ा रिज़वी और श्याम सिंह पंवार को मिर्ज़ापुर जाकर पूरे मामले की जाँच करते हुए रिपोर्ट देने को कहा है। प्रेस कांउसिल की यह फ़ैक्ट फाइंडिंग टीम अगले हफ़्ते मिर्ज़ापुर जा रही है। इस बीच प्रदेश के कई ज़िलों में पत्रकार संगठनों ने इस पूरे मामले में विरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया है। झांसी में पुतला फूँकने, मिर्ज़ापुर में धरना देने जैसे विरोध-प्रदर्शन किए गए हैं तो कई ज़िलों में ज्ञापन भी सौंपे गए हैं।

मीडिया संस्थानों की चुप्पी

उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर बढ़ते उत्पीड़न और उन पर एक के बाद एक दर्ज होते मुक़दमों को लेकर मीडिया संस्थानों की चुप्पी भी सरकार का हौसला बढ़ा रही है। अलग-अलग ज़िलों में जिन पत्रकारों पर मुक़दमे दर्ज किए गए हैं वे बड़े मीडिया घरानों से संबंध रखते हैं। हालाँकि अभी तक किसी भी मीडिया संस्थान ने इन मामलों को लेकर सरकार के सामने विरोध तक दर्ज नहीं कराया है। पत्रकार संगठनों में एक-दो को छोड़ दें तो ज़्यादातर सिर्फ़ उत्पीड़न की ख़बर लिखने वालों को बयान मात्र देकर ही खुश हैं। राजधानी के वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि पहली बार इतने बड़े पैमाने पर प्रदेश भर में पत्रकारों के उत्पीड़न के मामले हुए हैं लेकिन कोई भी इसके ख़िलाफ़ सड़कों पर नहीं उतर रहा है। उनका कहना है कि विपक्ष के नेता यहाँ तक कि प्रियंका गाँधी तक पत्रकारों के मामले में ट्वीट कर विरोध दर्ज करा रही हैं लेकिन पत्रकार संगठन और ख़ुद मीडिया घराने चुप्पी साधे हैं।