नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में उत्तर प्रदेश में हुए प्रदर्शनों के दौरान पुलिस को इनमें पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई) नाम के संगठन के शामिल होने के सबूत मिले हैं। पुलिस ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर ली है। उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर इस संगठन पर बैन लगाने की सिफ़ारिश की है। पुलिस का मानना है कि इस संगठन ने लोगों को हिंसा करने के लिए उकसाया है। पुलिस के मुताबिक़, यूपी में इस क़ानून के विरोध में हुई हिंसा में पकड़े गए कई लोग पीएफ़आई से जुड़े हुए हैं। राज्य के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी कहा है कि उत्तर प्रदेश में इस क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों में हिंसा फैलाने में पीएफ़आई का हाथ रहा है और सरकार इस संगठन पर बैन लगाएगी।
न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस के साथ बातचीत में डीजीपी ओपी सिंह ने कहा, ‘पुलिस ने हिंसाग्रस्त इलाक़ों से पीएफ़आई के 23 कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया है। यह साफ़ है कि ये लोग भीड़ को उकसाने वाले प्रमुख लोगों में से थे।’ डीजीपी ने कहा कि गिरफ़्तार किये गए कार्यकर्ताओं से पुलिस को कई सूचनाएं मिली हैं लेकिन वह इसे अभी नहीं बता सकते। उन्होंने कहा कि कुछ सूचनाएँ बेहद हैरान करने वाली हैं। डीजीपी ने कहा कि पुलिस के पास इस संगठन को बैन करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं।
लखनऊ में तीन कार्यकर्ता गिरफ़्तार
लखनऊ पुलिस ने भी नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान पीएफ़आई के तीन कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया था और दावा किया था कि राजधानी में हुए हिंसक प्रदर्शनों के पीछे इसी संगठन का हाथ था। गिरफ़्तार लोगों के नाम वसीम अहमद, नदीम और अश्फाक़ बताए गए हैं। लखनऊ पुलिस ने कहा था कि पीएफ़आई के कार्यकर्ताओं ने राजधानी में कई बैठकें भी की थीं।
मेरठ पुलिस ने दर्ज किए मुक़दमे
मेरठ पुलिस ने भी इस संगठन के ख़िलाफ़ दो मुक़दमे दर्ज किए हैं। पुलिस ने धार्मिक आधार पर भड़काऊ बयान देने के आरोप में ये मुक़दमे दर्ज किए हैं। पुलिस ने पीएफ़आई के ज़ोनल हेड मुफ़्ती शहज़ाद और उसके सहयोगी मुहम्मद वसीम को गिरफ़्तार किया था। वसीम को जमानत पर रिहा कर दिया गया है। पुलिस का कहना है कि संगठन की ओर से झारखंड में उन्मादी भीड़ के द्वारा मारे गए तबरेज़ अंसारी से लेकर बाबरी मसजिद विध्वंस को लेकर पैम्फ़लेट जारी किए गए थे। मेरठ पुलिस का कहना है कि संगठन की ओर से नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी के विरोध में लोगों से शुक्रवार की नमाज़ के बाद सड़कों को जाम करने की अपील की गई थी।
नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ लखनऊ और मेरठ में बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन हुए थे। मेरठ में इस क़ानून के विरोध के दौरान 6 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि लखनऊ, बिजनौर व अन्य कई इलाक़ों में भी लोगों की मौत हुई है।
पीएफ़आई 2006 में केरल में नेशनल डेवलपमेंट फ़्रंट (एनडीएफ़) के मुख्य संगठन के रूप में शुरू हुआ था। उत्तर प्रदेश पुलिस के द्वारा ख़ुफ़िया एजेंसियों और गृह मंत्रालय के साथ साझा की गई ताज़ा जानकारियों के मुताबिक़, यूपी में नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध के दौरान शामली, मुज़फ़्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, वाराणसी, आजमगढ़ और सीतापुर क्षेत्रों में यह संगठन सक्रिय रहा है।
जानकारी के मुताबिक़, पीएफ़आई ने एनडीएफ़, मनिथा नीति पसराई, कर्नाटक फ़ोरम फ़ॉर डिग्निटी और कई अन्य संगठनों के साथ मिलकर कई राज्यों में अपने संगठन का विस्तार किया और पिछले दो साल में उत्तर प्रदेश में भी इस संगठन ने अपने आधार को मजबूत किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तत्कालीन मायावती सरकार की ओर से कड़े क़दम उठाए जाने के बाद इस संगठन के सदस्यों को उत्तर प्रदेश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था लेकिन पिछले दो साल में संगठन ने फिर से प्रदेश में ख़ुद को खड़ा करना शुरू कर दिया।