उत्तर प्रदेश में किसी भी क़ीमत पर फिर से अपनी सरकार बनाने की तैयारियों में जुटी बीजेपी ओबीसी और दलित जातियों को जोड़ने के काम में जुटी है। लगभग 50 फ़ीसदी ओबीसी और 22 फ़ीसदी दलित आबादी वाले उत्तर प्रदेश में इन दोनों समुदायों के मज़बूत समर्थन के बिना सरकार बना पाना संभव नहीं है।
बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में रविवार से सामाजिक प्रतिनिधि सम्मेलनों की शुरुआत की है। इसके तहत पहले दिन प्रजापति समाज का सम्मेलन किया गया।
इस तरह के जातीय सम्मेलन की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहले दिन इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित तमाम बड़े नेता शामिल हुए। इनमें से अधिकतर नेता ओबीसी वर्ग के थे।
बीजेपी नेताओं ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि पार्टी 31 अक्टूबर तक पूरे राज्य भर में ऐसे 27 सम्मेलन करेगी। पार्टी नेताओं का कहना है कि ये सम्मेलन कश्यप, राजभर, पाल, जोगी, तेली, यादव, गुर्जर, सैनी, चौरसिया, कुर्मी और जाट जातियों के बीच किए जाएंगे।
ओबीसी रैलियां होंगी
इसके अलावा पूरे प्रदेश में हर दो विधानसभा क्षेत्र में एक रैली की जाएगी। इस तरह कुल 202 ओबीसी रैलियां की जाएंगी। यह साफ है कि इस दौरान बीजेपी मोदी सरकार की ओर से ओबीसी समुदाय के लिए किए गए कामों को गिनाएगी।
बीजेपी एससी मोर्चा के अध्यक्ष रामचंद्र कनौजिया ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा कि 19 अक्टूबर से दलित जातियों के बीच भी इस तरह के सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि पासी, कनौजिया, वाल्मीकि, कोरी, कठेरिया, सोनकर और जाटव जातियों के बीच ये सम्मेलन होंगे। उन्होंने कहा कि अन्य जातियों के लोगों को भी इन सम्मेलनों में बुलाया जाएगा।
बीजेपी जानती है कि किसान आंदोलन को लेकर जिस तरह के हालात प्रदेश में बने हैं, ऐसे में मज़बूत जातियों का समर्थन ज़रूरी है, वरना सत्ता से उसकी विदाई हो सकती है।
दलित-ओबीसी को अहमियत
बीजेपी का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी इसी तरह के सम्मेलन आयोजित किए गए थे। बीजेपी ने केंद्रीय कैबिनेट से लेकर योगी कैबिनेट के विस्तार में भी दलित और ओबीसी जातियों को अच्छी-खासी जगह दी थी।
योगी कैबिनेट के विस्तार में जो सात मंत्री बनाए गए थे, उनमें से दलित समुदाय से तीन, ओबीसी से तीन और एक मंत्री सामान्य वर्ग से था।
केंद्रीय कैबिनेट के विस्तार में उत्तर प्रदेश से सात मंत्री बनाए गए थे। इनमें से भी दलित समुदाय से तीन, ओबीसी से तीन और एक सामान्य वर्ग से था।
बन चुका है चुनावी माहौल
हिंदुस्तान की सियासी तकदीर तय करने वाले उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल बन चुका है। पूर्व मुख्यमंत्री और एसपी मुखिया अखिलेश यादव ‘समाजवादी विजय यात्रा’ निकाल रहे हैं तो उनके चाचा और पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव ‘सामाजिक परिवर्तन रथ यात्रा’ निकाल रहे हैं।
बीएसपी प्रमुख मायावती ब्राह्मण सम्मेलन करा चुकी हैं और कांग्रेस ने भी लखीमपुर खीरी की घटना को जोर-शोर से उठाकर अपने सियासी रणबांकुरों को मैदान में उतार दिया है।
बैकफुट पर योगी सरकार
भागीदारी संकल्प मोर्चा में शामिल तमाम दल, एआईएमआईएम, आम आदमी पार्टी ने भी चुनावी तैयारियों को धार देना शुरू कर दिया है। किसानों ने भी रेल रोको आंदोलन से लेकर मुज़फ्फरनगर की महापंचायत जैसे कार्यक्रम कर बीजेपी और योगी सरकार को बैकफ़ुट पर धकेल रखा है।
लेकिन बीजेपी इन तमाम मुश्किलों से जूझते हुए पार्टी संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने पर फ़ोकस कर रही है।