स्वामी प्रसाद मौर्य ने छोड़ी समाजवादी पार्टी; अब क्या करेंगे?

08:58 pm Feb 20, 2024 | सत्य ब्यूरो

स्वामी प्रसाद मौर्य ने आख़िरकार समाजवादी पार्टी छोड़ दी। उन्होंने खुद मंगलवार को इसकी घोषणा की। पिछले कुछ हफ्तों से मौर्य की समाजवादी पार्टी नेतृत्व से खटपट की ख़बरें आ रही थीं। मौर्य के बयान में तो तल्खी देखी ही जा रही थी, सपा नेताओं ने दो टूक मौर्य के ख़िलाफ़ बोलना शुरू कर दिया था। इन घटनाक्रमों को लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि वह अब कभी भी अलग हो सकते हैं। 

मौर्य ने मंगलवार को खुद के साथ कथित भेदभाव और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव पर पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक यानी पीडीए की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी। उन्होंने क़रीब एक हफ्ते पहले पार्टी के पद से इस्तीफा दे दिया था। 

स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा है कि 13 फरवरी को त्यागपत्र देने के बाद सपा की ओर से बातचीत की कोई पहल नहीं की गई इसलिए पार्टी से भी इस्तीफा दे रहे हैं। उन्होंने एक पत्र विधान परिषद सभापति को भेजा, जिसमें उन्होंने कहा कि सपा की प्राथमिक सदस्यता छोड़ने के कारण नैतिक आधार पर विधान परिषद की सदस्यता से भी त्यागपत्र दे रहा हूँ। विधान परिषद के सभापति ने स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। 

स्वामी प्रसाद ने सपा के महासचिव पद से इस्तीफा देते हुए लिखा था, 'मैं नहीं समझ पाया कि मैं एक राष्ट्रीय महासचिव हूं, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव व नेता ऐसे भी हैं, जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है।' उन्होंने सवाल उठाया था कि एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है, यह समझ के परे है।

मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि वह 22 फरवरी को नई दिल्ली में अपना संगठन बना सकते हैं। उन्होंने 2016 में बसपा छोड़ने के बाद भी एक नया संगठन बनाया था। लेकिन बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए थे। उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक प्रमुख गैर-यादव ओबीसी चेहरा मौर्य ने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल छोड़ दिया था और सपा में शामिल हो गए थे। वह लगभग दो दशकों तक सपा के विरोधी रहे थे। 

पार्टी छोड़ने के बाद मौर्य ने कहा है कि सपा को बर्बाद करने के लिए उसके प्रमुख महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ही काफी हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति में उन्हें शिवपाल से सीख लेनी चाहिए।

स्वामी प्रसाद मौर्य पिछले साल रामचरितमानस के कुछ छंदों को हटाने का आह्वान करने के कारण सुर्खियों में आए थे क्योंकि उनपर आपत्तिजनक भाषा इस्तेमाल करने का आरोप लगा था। बाद में उन पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मामला दर्ज किया गया।

एक समय बसपा प्रमुख मायावती के करीबी विश्वासपात्र और पार्टी का मुखर चेहरा रहे मौर्य को न केवल 1997, 2002 और 2007 में हर बसपा सरकार में मंत्री बनाया गया, बल्कि जब भी बसपा सत्ता से बाहर हुई तो वह विपक्ष के नेता भी रहे। वह प्रभावी रूप से पार्टी पदानुक्रम में मायावती के बाद नंबर 2 बन गए थे।

2016 में जब वह विपक्ष के नेता थे, मौर्य ने पार्टी के टिकटों की नीलामी का आरोप लगाते हुए बसपा छोड़ दी थी। इस आरोप का मायावती ने खंडन किया था। मायावती ने आरोप लगाया था कि मौर्य ने इसलिए पद छोड़ा क्योंकि उनके बेटे उत्कृष्ट और बेटी संघमित्रा को टिकट नहीं मिला। इसके बाद मौर्य ने अपनी पार्टी बनाई और उसका नाम लोकतांत्रिक बहुजन मंच रखा था।

मौर्य बाद में 2017 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले भाजपा में शामिल हो गए थे। उन्होंने दावा किया था कि वह समाज के कमजोर वर्गों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए कार्यों से प्रभावित हैं।