विकास दुबे कांड पर यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार : क़ानून से ही चलेगा देश

06:55 pm Jul 20, 2020 | कुमार तथागत - सत्य हिन्दी

कानपुर के बिकरू गाँव में हुई 8 पुलिस वालों की हत्या और अभियुक्त विकास दुबे सहित छह लोगों के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को फटकार लगायी है। सुप्रीम कोर्ट ने मुठभेड़ पर दाखिल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को कहा कि विकास दुबे पर मुकदमा चलना चाहिए था और उसे न्यायिक प्रक्रिया के तहत सजा दी जानी चाहिए थी। 

सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पैरवी करने के लिए दिग्गज वकील हरीश साल्वे और तुषार मेहता खड़े हुए थे। याचिका सुप्रीम कोर्ट के ही अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय ने दायर की थी।

विकास दुबे कांड

बिकरू कांड के बाद मुख्य अभियुक्त विकास दुबे ने उज्जैन के महाकाल मंदिर में आत्मसमर्पण कर दिया था। उज्जैन से कानपुर लाते समय यूपी पुलिस और एसटीएफ ने विकास को मुठभेड़ में मार दिया था। पुलिस ने कहा था कि कानपुर लाते समय विकास दुबे ने हथियार छीन कर भागने की कोशिश की और मुडभेड़ में मारा गया।

नाबालिग प्रभात मिश्रा समेत विकास दुबे के 5 साथियों को उत्तर प्रदेश पुलिस ने मुठभेड़ में मार दिया था। इतना ही नहीं विकास दुबे के बिकरू गाँव वाले घर को भी गिरा दिया गया था।

वारदात में विकास के साथ रहे और दाहिना हाथ बताए जाने वाले अमर दुबे को भी मुडभेड़ में मार दिया गया था और उसकी नौ दिन की ब्याहता पत्नी को जेल भेज दिया गया था। इन्ही मुडभेड़ों पर सवाल खड़े करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गयी थी।

कोर्ट : देश कानून से ही चलेगा

उच्चतम न्यायालय में याचिका की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने हरीश साल्वे और तुषार मेहता की दलीलों को कोई तवज्जो न देते हुए कहा कि देश ‘रूल ऑफ़ लॉ’ से ही चलेगा। 

हरीश साल्वे ने तर्क दिया कि जाँच से पुलिस का मनोबल टूटेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि क़ानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है। मुख्य न्यायाधीश ने जाँच आयोग के गठन पर भी सवाल खड़े किए।

जाँच आयोग के पुनर्गठन पर रोक

इससे पहले याचिकाकर्त्ता ने आयोग के गठन के पहले विधानसभा या राज्यपाल की मंजूरी न लेने का सवाल उठाया था। याचिकाकर्त्ता का कहना था कि जाँच आयोग के अध्यक्ष जस्टिस शशिकांत रिटायर्ड जज नहीं हैं, बल्कि उन्होंने नौकरी से इस्तीफ़ा दिया था। 

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को जाँच आयोग के पुनर्गठन की अधिसूचना जारी करने से भी रोक दिया है। कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि पहले हमें नाम बताइए कि आयोग में कौन होगा फिर हम विचार करेंगे।

‘हमें न बताइए विकास दुबे कौन था’

सुनवाई के दौरान यूपी पुलिस का पक्ष रख रहे तुषार मेहता ने विकास दुबे उसके आपराधिक इतिहास के बारे में बताना शुरू किया तो उन्हें झिड़की मिली। अदालत ने कहा, हमें न बताइए कि विकास दुबे कौन था। 

अदालत ने पूछा कि जिसके ख़िलाफ़ इतने मामले थे वह जमानत पर कैसे बाहर था यह सीधे सीधे सिस्टम की विफलता है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि विकास दुबे केस का ट्रायल होना चाहिए थे।

उन्होंने कहा कि यह मामला हैदराबाद एनकाउंटर से किस तरह से अलग है। यहाँ भी सिस्टम ही फेल दिखता है।

जाँच कमेटी

न्यायालय में सोमवार को हुयी सुनवाई में  यह साफ़ हो गया कि विकास दुबे कांड की जाँच कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और रिटायर्ड डीजीपी शामिल होंगे। आयोग के ये दोनों सदस्य कौन होंगे, यह सुप्रीम कोर्ट तय करेगा।

सुनवाई के दौरान ही न्यायाधीशों ने प्रदेश सरकार से पूछा कि क्या जाँच कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज या रिटायर्ड पुलिस अफ़सर को शामिल करेंगे यूपी सरकार के इस पर सहमति जताने पर अदालत ने कमेटी के पुनर्गठन की अधिसूचना जारी करने से योगी सरकार को रोका और कहा- आप हमें नाम बताएं, हम विचार करेंगे। 

इस रुख के बाद यह उम्मीद है कि अब इस कांड की आगे की जाँच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो सकती है। विकास दुबे कांड के मामले में दाखिल इस केस की अगली सुनवाई अब 22 जुलाई को होगी।

बता दें कि कानपुर के बिकरू कांड के बाद यूपी सरकार ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी संजय भूसरेड्डी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय एसआईटी की गठन किया था, जबकि पूर्व न्यायाधीश शशिकांत अग्रवाल की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग का गठन किया था। दोनों आयोगों ने अपना काम भी शुरू कर दिया था।