समाजवादी पार्टी ने यूपी में पिछली कई चुनावी असफलताओं का सामना करने के बाद, बीजेपी स्टाइल में लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी शुरू कर दी है। बीजेपी स्टाइल तैयारी का मतलब है बूथ स्तर तक नेताओं की जिम्मेदारी सौंपना, क्षेत्रों को बांटकर पदाधिकारियों को काम सौंपना। यह अलग बात है कि कई बार बीजेपी स्टाइल वाले पन्ना प्रमुखों की सारी कवायद धरी रह जाती है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में तो बीजेपी ने हजारों बीजेपी नेताओं की ड्यूटी कर्नाटक में बूथ के हिसाब से लगाई थी, लेकिन मतदान वाले दिन 10 मई को बीजेपी का बस्ता संभालने वाले भी नहीं मिल रहे थे।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि सपा एक नए, समर्पित संगठनात्मक ढांचे के साथ खुद को ढालने की कोशिश कर रही है। पार्टी ने अपनी विचारधारा फैलाने के लिए राज्यभर के विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों में अपने कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने और उन्हें भाजपा का मुकाबला करने के लिए तर्कों से लैस करने का भी फैसला किया है।
पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं को उनके लोकसभा क्षेत्रों में बूथ समितियों के पुनर्गठन के लिए नए कार्यकर्ताओं को शामिल करने का काम सौंपा है। सपा के बहुत सारे कार्यकर्ता निष्क्रिय हो गए हैं या अन्य दलों में चले गए हैं।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इन प्रभारियों को हर जोन के लिए एक प्रभारी के साथ जोनल इकाइयों का नया संगठनात्मक ढांचा तैयार करने का निर्देश दिया गया है। हर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम छह जोन होंगे, हर जोन को छह सेक्टरों में विभाजित किया जाएगा। हर सेक्टर इकाई 10-12 बूथ इकाइयों की देखरेख करेगी। फील्ड वर्क के दौरान इन लोकसभा प्रभारियों को गांवों और शहरी इलाकों में कार्यकर्ताओं और जनता से भी संवाद करना होगा।
प्रभारियों को 5 जून तक अपना काम पूरा करना है, ताकि प्रशिक्षण शिविर शुरू हो सके। शिविरों का आयोजन दो-दो निर्वाचन क्षेत्रों के युवा कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं के समूहों में किया जाएगा। पार्टी के एक नेता ने कहा- "अखिलेश यादव और अन्य वरिष्ठ नेता कार्यकर्ताओं को पार्टी की विचारधारा, शासन में भाजपा सरकार की विफलता आदि के बारे में बताएंगे।"
नए सांगठनिक ढांचे को विकसित करने के फैसले पर पूर्व मंत्री और कैराना लोकसभा प्रभारी सुधीर पंवार ने कहा, 'सपा जन आधारित पार्टी है। लेकिन मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में, राजनीतिक मामलों पर अपनी विचारधारा और राय को फैलाने और चुनौतियों के बारे में लोगों की जागरूकता बढ़ाने के लिए इसे एक ढांचे की आवश्यकता है। इसलिए, बूथ समितियों के निर्माण और जोनल इलाकों के गठन के लिए निर्वाचन क्षेत्र के प्रभारियों को तैनात किया गया है।”
सपा के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि हमारी पार्टी जन-आधारित पार्टी है जो मतदाताओं के बीच कोई अंतर नहीं करती है। जिस तरह भाजपा जैसी पार्टी धर्म, जाति, लिंग और आर्थिक स्थिति के हिसाब से पदाधिकारियों से लेकर मतदाताओं तक में भेदभाव करती है, सपा में उस तरह का कुछ नहीं है। मीडिया द्वारा कुछ राजनीतिक दलों का प्रचार, राजनीति में धर्म का खुला और ज़बरदस्त उपयोग, संवैधानिक संस्थाओं का भगवाकरण, ने सपा जैसी जन-आधारित पार्टी के लिए चुनौती जरूर पेश की है। यूपी के बदले राजनीतिक माहौल में हमें संगठनात्मक ढांचे की आवश्यकता है, और सपा इस पर काम कर रही है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकसभा क्षेत्रों में जहां ऐसे प्रभारी नियुक्त किए गए हैं, उनमें अमेठी और रायबरेली शामिल हैं, जहां सपा ने पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को "वॉकओवर" दिया था। विधायक इंद्रजीत सरोज रायबरेली के साथ-साथ कौशांबी और प्रतापगढ़ के प्रभारी हैं। अमेठी में पार्टी ने पूर्व एमएलसी सुनील साजन और आनंद भदौरिया और पूर्व विधायक अरुण वर्मा को तैनात किया है।
पार्टी के वरिष्ठ विधायक और दलित चेहरा अवधेश प्रसाद अयोध्या के प्रभारी हैं, जबकि विधायक लालजी वर्मा को आजमगढ़ सहित चार निर्वाचन क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी गई है, जहां से अखिलेश यादव 2019 में चुने गए थे, लेकिन पिछले उपचुनाव में पार्टी भाजपा से हार गई थी। मिश्रिख और हरदोई लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी आरके चौधरी हैं।
पार्टी उत्तराखंड की हरिद्वार लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है, जहां पूर्व विधायक किरण पाल कश्यप को प्रभारी बनाया गया है।
सपा नेता और एक पूर्व मंत्री ने कहा, “संगठनात्मक इकाइयों के गठन के अलावा, हम नए कार्यकर्ताओं से भी मिल रहे हैं, उनके घरों पर पार्टी के झंडे लगा रहे हैं और उनके साथ तस्वीरें खिंचवा रहे हैं, ताकि उनका मनोबल बढ़ाया जा सके और संगठनात्मक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके।
पार्टी के एक और नेता ने गुमनाम रहने की शर्त पर कहा कि कैडर आधारित पार्टी की तर्ज पर बूथ स्तर तक संगठन को और अधिक गहराई देने के लिए लोकसभा प्रभारियों की नियुक्ति की गई है। हम अपने जन-आधारित चरित्र को बनाए रखेंगे, लेकिन एक कैडर-आधारित पार्टी की तरह एक संगठनात्मक ढांचा भी होगा, जो सपा को कुछ हद तक एक हाइब्रिड पार्टी बना देगी जो विचारधारा और दर्शन में जन-आधारित है, लेकिन अब उसे एक कैडर आधारित पार्टी बनाने की कोशिश चल रही है।
पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा, एक जन-आधारित पार्टी के रूप में, सपा की ताकत कुछ अन्य ओबीसी जातियां और मुसलमान मतदाताओं के अलावा समर्पित यादव वोट बैंक है। ये लोग समाजवादी विचारधारा और उसके शीर्ष नेतृत्व पर भरोसा करके सपा को वोट देते हैं। लेकिन भाजपा और बसपा के पास बूथ से लेकर राज्य तक विभिन्न स्तरों पर संगठनात्मक ढांचे हैं, जो उन्हें हर मतदाता तक पार्टी के संदेश को बेहतर ढंग से पहुंचाने में मदद करते हैं। बीजेपी इस ढांचे का इस्तेमाल एंटी-इनकंबेंसी की भरपाई के लिए बी करती है। इसलिए सपा ने भी भाजपा के खिलाफ अपनी लड़ाई में इसका इस्तेमाल करने के लिए इस तरह के ढांचे की जरूरत महसूस की।