मथुरा की जिला अदालत ने कहा है कि कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मामले में 1991 में बना पूजा स्थल अधिनियम लागू नहीं होता है। बता दें कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 के अंतर्गत 1947 में तमाम धर्मस्थलों की जो स्थिति थी उससे छेड़छाड़ नहीं किए जाने की बात कही गई है।
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी धार्मिक स्थल के चरित्र का पता लगाने पर कोई रोक नहीं है और धार्मिक चरित्र का पता लगाना पूजा स्थल अधिनियम के नियम तीन या चार का उल्लंघन भी नहीं है।
अदालत ने उस याचिका को भी सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था जिसमें शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि शाही ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि पर बनी है। यह याचिका लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री की ओर से दायर की गई थी।
विश्व हिंदू परिषद ने कहा है कि अदालत का यह फैसला इस मामले में मथुरा और काशी के मंदिरों पर उसके दावों को सही ठहराता है। जबकि शाही ईदगाह मस्जिद के वकीलों ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को 1991 के कानून को लेकर अपना स्टैंड क्लियर करना चाहिए वरना निचली अदालतें मनमाने ढंग से इसकी व्याख्या करती रहेंगी।
मथुरा की जिला अदालत में याचिकाकर्ता रंजना अग्निहोत्री की ओर से कहा गया है कि 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान नाम की सोसाइटी और शाही ईदगाह ट्रस्ट के बीच हुए समझौते में धोखाधड़ी हुई थी और इसी की वजह से 1974 में समझौता हुआ था। उन्होंने अपनी दलील में कहा है कि सोसाइटी को इस तरह का समझौता करने का कोई हक नहीं है और यह समझौता पूरी तरह अवैध है। जबकि शाही ईदगाह ट्रस्ट की ओर से पेश हुए वकीलों ने कहा कि यह दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते को तब रजिस्टर भी करवाया गया था।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि 1991 का कानून बनने से पहले ही इस मामले में डिक्री तैयार कर ली गई थी और इसलिए 1991 का अधिनियम इस विवाद पर लागू नहीं होता है।
अदालत ने यह भी कहा कि ईश्वर के अगले मित्र के रुप में रंजना अग्निहोत्री धार्मिक अधिकारों की बहाली और उसकी फिर से स्थापना करने के लिए मुकदमा दायर कर सकती हैं। याचिकाकर्ता के वकील गोपाल खंडेलवाल ने कहा कि भगवान कृष्ण के उपासक के रूप में हमें उनकी संपत्ति की बहाली की मांग करने का हक है।
इस मामले में सितंबर 2020 में एक निचली अदालत के द्वारा मुकदमा दर्ज करने की याचिका को खारिज कर दिया था खारिज कर दिया गया था। अदालत ने इस फैसले को भी पलट दिया।
मथुरा और वाराणसी मामलों में याचिकाकर्ताओं के वकील हरिशंकर जैन ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है जबकि शाही ईदगाह ट्रस्ट की ओर से पेश हुए एडवोकेट तनवीर अहमद ने 1991 के अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट से अपना स्टैंड क्लियर करने की मांग की।
कुछ दिन पहले दायर की गई एक याचिका में शाही ईदगाह मस्जिद को सील करने और वहां सुरक्षा तैनात करने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि यह सुनिश्चित किया जाए कि मस्जिद के अंदर प्राचीन हिंदू अवशेषों को कोई नुकसान न हो। याचिका एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह की ओर से दायर की गई थी।
हाई कोर्ट का फैसला
कुछ दिन पहले ही इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा की एक अदालत से कहा है कि इस मामले में 4 महीने के भीतर सभी अर्जियों का निस्तारण कर दिया जाए। जस्टिस सलिल कुमार राय की एक सदस्य वाली बेंच ने यह आदेश मनीष यादव की ओर से दायर याचिका पर दिया था।