सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अनूठा फ़ॉर्मूला लाए हैं। भागीदारी संकल्प मोर्चा के जरिये दस छोटे-छोटे दलों का गठबंधन बनाने वाले राजभर का कहना है कि प्रदेश में अगर उनके मोर्चे की सरकार बनी तो पांच साल में प्रदेश में पांच मुख्यमंत्री और हर साल चार उप मुख्यमंत्री यानी कि पांच साल में 20 उप मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे।
राजभर के इस बयान को सुनकर किसी की भी आह निकल जाए। सालों से उत्तर प्रदेश में मंत्री पद पाने की ख़्वाहिश पाले लोगों को यह फ़ॉर्मूला नायाब लग सकता है और उत्तर प्रदेश के ज़मीनी हालात की समझ रखने वालों को ख़्याली पुलाव पकाने जैसा भी।
ये भी हो सकता है कि राजभर अपने इस फ़ॉर्मूले से उत्तर प्रदेश के चुनाव में क़ामयाबी हासिल कर लें।
सत्ता में हिस्सेदारी की ख़्वाहिश
24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में न चाहते हुए भी जाति और धर्म की राजनीति करनी ही पड़ती है। क्योंकि ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ वाले फ़ॉर्मूले के आधार पर दलितों-पिछड़ों, अति पिछड़ों सहित मुसलिम और सवर्ण समाज के लोगों के साथ ही जो बाक़ी धार्मिक अल्पसंख्यक हैं, वे भी सत्ता में हिस्सेदारी चाहते हैं।
इसलिए उत्तर प्रदेश की राजनीति जटिल है और सियासत का यह एक ऐसा वक़्त है, जब सत्ता सुख से वंचित रही जातियां इंतजार करने के लिए तैयार नहीं हैं और उनकी दिली चाहत है कि 2022 के चुनाव में लखनऊ में उनका प्रतिनिधित्व हो। राज्य में चुनाव होने में 8 महीने का वक़्त बचा है।
इसी को ध्यान में रखते हुए शायद ओम प्रकाश राजभर यह फ़ॉर्मूला लाए हैं।
ये बात सही है कि उत्तर प्रदेश में मुसलिमों के अलावा, दलितों, पिछड़ों-अति पिछड़ों में से छोटी जातियां सत्ता में भागीदारी चाहती हैं। इन जातियों के लोग ‘अपने’ किसी नेता को सूबे का सीएम या डिप्टी सीएम देखने की ख़्वाहिश रखते हैं लेकिन ऐसा होना क्या इतना आसान है।
ख़ैर, राजभर ने एएनआई के साथ बातचीत में बताया कि 5 साल में कौन-कौन से समुदाय से मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे। पूर्व कैबिनेट मंत्री राजभर ने कहा कि एक साल मुसलमान, एक साल राजभर, एक साल चौहान, एक साल पटेल और एक साल कुशवाहा समाज के नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा।
राजभर ने दूसरी जातियों की सियासी ख़्वाहिशों को उड़ान देते हुए कहा कि कुशवाहा समाज के लोग आज भी ताक रहे हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री का पद कब मिलेगा और इसीलिए हमने सोचा है कि हम सब ख़ुद ही इस काम को कर लें। उन्होंने कहा कि सभी पार्टियां जातीय आधार पर टिकट बांटती हैं, मंत्री बनाती हैं और थानों में पोस्टिंग देती हैं।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 403 सीटें हैं। राजभर ने दम भरा कि उनका मोर्चा सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगा और 300 से ज़्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर राज्य में सरकार बनाएगा।
राजभर ने कुछ दिन पहले कहा था कि बीजेपी डूबती हुई नाव है और वे इस पर सवार नहीं होंगे। उन्होंने कहा था कि जो भी राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश में बीजेपी को हराना चाहते हैं, हम उनसे गठबंधन करने के लिए तैयार हैं।
राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चा में पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी, कृष्णा पटेल का अपना दल, ओवैसी की एआईएमआईएम सहित कुछ और दल शामिल हैं। इसके अलावा वह आम आदमी पार्टी और शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) को भी इसमें शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
बीजेपी का जवाब
राजभर के इस फ़ॉर्मूले पर बीजेपी की ओर से भी जवाब आया है। उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने ‘आज तक’ से कहा है कि बीजेपी के ख़िलाफ़ एसपी-कांग्रेस, एसपी-बीएसपी-आरएलडी मिलकर चुनाव लड़ चुके हैं और हार भी चुके हैं। उन्होंने कहा कि बीजेपी 2017 में मिली 300 से ज़्यादा सीटों के प्रदर्शन को दोहराएगी।
अखिलेश यादव भी जुटे
एसपी मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी उत्तर प्रदेश के चुनावों को नज़दीक आते देख एक बार फिर से गठबंधन की दिशा में क़दम बढ़ाया है। आरएलडी के साथ चल रहे अपने गठबंधन में उन्होंने आज़ाद समाज पार्टी के अलावा कुछ और छोटे राजनीतिक दलों को जोड़ने की कवायद शुरू की है।
अखिलेश जानते हैं कि बीजेपी को हराने के लिए वोटों के बंटवारे को रोकना बेहद ज़रूरी है और यह काम गठबंधन ही कर सकता है। अखिलेश इससे पहले बीएसपी और कांग्रेस के साथ भी गठबंधन कर चुके हैं।
जबकि बीएसपी मुखिया मायावती कह चुकी हैं कि वे अकेले चुनाव मैदान में उतरेंगी और कांग्रेस के पास कोई सियासी हमसफ़र हो, ऐसा नहीं दिखता। बीजेपी और इन भारी-भरकम विपक्षी दलों के सामने ओमप्रकाश राजभर का भागीदारी संकल्प मोर्चा कितनी क़ामयाबी हासिल कर पाएगा, इसका जवाब चुनाव नतीजे आने पर ही मिलेगा।