लखनऊ के लुलु मॉल में नमाज अदा करने का मामला पुलिस को बड़ी साजिश का हिस्सा लग रहा है। पुलिस अब उन लोगों को तलाश रही है, जिन लोगों ने मॉल के अंदर जाकर नमाज पढ़ी, उसका वीडियो बनाया और उसे सोशल मीडिया पर वायरल किया। पुलिस को नमाज पढ़ने वाले नमाजी भी नहीं लग रहे हैं।
यह बात पुलिस को अब इसलिए समझ में आई कि लुलु प्रबंधन ने उस दिन का पूरा वीडियो फुटेज सार्वजनिक रूप से रिलीज कर दिया है। पुलिस ने उसका विश्लेषण किया है।
अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) राजेश कुमार श्रीवास्तव ने स्वीकार किया कि फुटेज से यह स्पष्ट हो गया है कि मॉल में नमाज पढ़ने वाले उन पुरुषों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि नमाज कैसे अदा की जाती है। पुलिस अधिकारी ने उम्मीद जताई है कि कि जल्द ही बदमाशों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
'नमाज़' को पूरा करने में सात से आठ मिनट लगते हैं, इन लोगों ने जल्दबाजी में इसे एक मिनट से भी कम समय में पूरा कर लिया। हकीकत ये है उन्होंने उस मॉल में 18 सेकंड के पूरी नमाज पढ़ ली। ऐसा लग रहा था वो लोग बहुत जल्दी में थे। लखनऊ के तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिक संगठनों ने इसे साजिश बताया था। लखनऊ की प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता ताहिरा हसन, ने तो शुरुआत में इसे गहरी साजिश करार दिया था। ताहिरा हसन का कहना है कि मॉल में नमाज पढ़ने वाले वो पुरुष स्पष्ट रूप से इस बात से अनभिज्ञ थे कि नमाज़ हमेशा काबा रुख का सामना करते हुए पढ़ी जाती है, जो उत्तर भारत में लगभग पश्चिम दिशा में है। जबकि उन सभी का मुख भिन्न दिशा में है।
वीडियो फुटेज से पता चलता है कि वो लोग आनन-फानन में नमाज पढ़ने और वीडियो रिकॉर्ड करने के बाद मॉल से बाहर निकल गए। उन्होंने मॉल में रुकने और कुछ भी देखने की कोई कोशिश नहीं की। आमतौर पर लोग मॉल में जाने पर दुकानों में जाते हैं, सेल्फी लेते हैं या किसी न किसी गतिविधि को करते हैं लेकिन नमाज पढ़ने वाले मॉल में एकसाथ घुसते हैं और चंद सेकंड में नमाज पढ़ने के बाद वहां से गायब हो जाते हैं। यह तथ्य अपने आप में यह बताने के लिए काफी है जो मॉल में सिर्फ नमाज पढ़ने के इरादे से घुसा हो, उसका मकसद क्या था।
वीडियो सोशल मीडिया पर आने के बाद की घटनाओं पर भी गौर करना जरूरी है। वीडियो वायरल होने के बाद तमाम हिन्दू संगठनों के बयान आने लगते हैं। हिंदू संगठन वीडियो पर आपत्ति जताने लगते हैं और बयान देने लगते हैं कि अगर मुसलमानों को मॉल में नमाज की अनुमति दी जाती है, तो उन्हें भी वहां हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करने का अधिकार होना चाहिए।
उसके बाद एक हिन्दू संगठन ने मॉल में रामायण का सुंदर कांड पढ़ने की अनुमति दी जाए। हिन्दू संगठनों ने यह भी आरोप लगाया था कि मॉल में काम करने वाले 80% पुरुष मुस्लिम थे लेकिन महिलाएं सभी हिंदू थीं। उन्होंने इसे लव जिहाद का हिस्सा बताया था।
एशिया के इस सबसे बड़ा मॉल को लखनऊ में सोमवार को औपचारिक रूप से खोला गया था, जिसका उद्घाटन पिछले रविवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया था। विवादित वीडियो बुधवार को सोशल मीडिया पर साझा किया गया था। मॉल प्रबंधन ने एफआईआर दर्ज कराई और पुलिस जांच शुरू हुई। मॉल प्रबंधन ने सभी आरोपों का खंडन किया और अपने कर्मचारियों का विवरण पुलिस और उग्र हिंदू संगठनों के साथ साझा किया ताकि उन्हें संतुष्ट किया जा सके।
सीसीटीवी फुटेज अब इस संदेह की पुष्टि कर रहे हैं, यह मॉल को बदनाम करने और दो समुदायों के बीच दुश्मनी और नफरत पैदा करने के लिए एक जानबूझकर की गई शरारत थी।
मॉल द्वारा साझा किए गए सीसीटीवी फुटेज में आठ लोगों को एक साथ मॉल में प्रवेश करते दिखाया गया है। उनमें से कोई भी मॉल के चारों ओर देखने या किसी शोरूम में जाने का कोई प्रयास नहीं करता है। उन्होंने न तो कुछ खरीदा और न ही मॉल में सेल्फी लेने में उनकी दिलचस्पी थी।
वे जल्दबाजी में बैठकर नमाज पढ़ने के लिए जगह तलाशने लगते हैं। उन्होंने पहले बेसमेंट, उसके बाद ग्राउंड फ्लोर और पहली मंजिल पर कोशिश की। जहां सुरक्षा गार्डों ने उन्हें रोक दिया। फिर वे दूसरी मंजिल पर चले गए, जहां अपेक्षाकृत कम भीड़ थी। छह लोग नमाज पढ़ने के लिए तुरंत बैठ गए, जबकि बाकी दो लोग वीडियो रिकॉर्ड करने और तस्वीरें लेने में व्यस्त हो गए।
शनिवार की देर शाम, विवाद की शुरुआत में सीसीटीवी फुटेज को स्कैन करने में विफलता के लिए डीसीपी (दक्षिण) और सुशांत गोल्फ सिटी इंस्पेक्टर को बदल दिया गया। मॉल प्रबंधन ने फुटेज को स्कैन करने के लिए समय मांगा था और आपत्तिजनक फुटेज को पुलिस के साथ साझा किया था।
जहां लखनऊ सांप्रदायिक सौहार्द और गंगा-जमुनी संस्कृति का केंद्र रहा है, वहीं सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए जानबूझकर की गई यह शरारत व्यापक चिंता का विषय बनी हुई है।