बीएसपी की प्रमुख मायावती ने बुधवार को आगरा में पार्टी की पहली चुनावी जनसभा को वर्चुअली संबोधित किया। मायावती ने इस दौरान कांग्रेस, सपा और बीजेपी पर जमकर हमला बोला।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र की सत्ता में रहते हुए कांग्रेस ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू नहीं किया था और बीएसपी ने संघर्ष के बाद इसे वीपी सिंह की सरकार से लागू करवाया था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस जब सत्ता में होती है तब उसे दलित वर्ग का कोई ख्याल नहीं रहता।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि सपा और बीजेपी की सरकारों में भी उत्तर प्रदेश की जनता बहुत परेशान रही है।
मायावती ने कहा कि सपा की सरकार में उत्तर प्रदेश में गुंडों, बदमाशों, माफियाओं और अराजक तत्वों का राज रहा और सपा सरकार में ही मुजफ्फरनगर का कांड हुआ।
मायावती ने कहा कि बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार की नीतियां जातिवादी, पूंजीवादी और आरएसएस के एजेंडे को लागू करने पर ही केंद्रित रही हैं। उन्होंने कहा कि पिछले 5 साल में प्रदेश में अपराध बढ़े हैं और दलित व महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि बीजेपी की सरकार में प्रबुद्ध वर्ग भी खासा परेशान रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी को लेकर भी बीजेपी पर हमला बोला और लोगों को उत्तर प्रदेश से पलायन करना पड़ा है।
उन्होंने जनता से अपील की कि वह बीएसपी के उम्मीदवारों को जीत दिलाए। मायावती ने कहा कि बीएसपी की सरकार में बिना भेदभाव के समाज के सभी वर्गों का विकास किया गया था।
दलित समुदाय में पकड़
मायावती पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही आती हैं और यहां के दलित समुदाय में उनकी जबरदस्त पकड़ है। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का यह कोर वोटर कभी भी बहुत ज्यादा उन्हें छोड़कर नहीं गया है और बीएसपी को उम्मीद है कि इस बार भी पार्टी को दलित मतदाताओं के साथ ही सोशल इंजीनियरिंग के चलते बाकी जातियों के मतदाताओं का भी वोट मिलेगा।
लेकिन देखना होगा कि इस बार के चुनाव में क्या दलित मतदाता पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा-रालोद गठबंधन के साथ जाते हैं या फिर मायावती का ही साथ देते हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और मुसलमान मतदाताओं के बाद दलित मतदाता सबसे ज्यादा संख्या में हैं।
बीएसपी का बाकी दलों के मुकाबले सोशल मीडिया पर भी प्रचार कम है और इससे बीएसपी के समर्थक थोड़ा निराश दिखाई देते हैं। उत्तर प्रदेश की दलित आबादी में से 50 फीसद से ज्यादा मतदाता जाटव बिरादरी के हैं।
मायावती इसी बिरादरी से आती हैं और इस वर्ग के मतदाता मायावती को ही अपना नेता मानते हैं। लेकिन इस बार आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद भी चुनाव मैदान में हैं और वह भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही आते हैं और दलित समाज से हैं। ऐसा लगता है कि वह मायावती के दलित मतदाताओं में सेंध लगा सकते हैं।
अहम हैं दलित मतदाता
उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 84 सीटें दलित समुदाय के लिए आरक्षित हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इनमें से 70 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 2012 में जब समाजवादी पार्टी ने सरकार बनाई थी तो उसे इन 84 सीटों में से 58 सीटों पर कामयाबी मिली थी। इसी तरह 2007 में जब बीएसपी ने अपने दम पर सरकार बनाई थी तो वह इनमें से 62 सीटें जीतने में सफल रही थी।
इससे पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में दलित मतदाता जिस पार्टी का खुलकर साथ देते हैं वह राज्य में सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी जब बीएसपी को सिर्फ 19 सीटें मिली थीं, तब भी उसे 22% से ज्यादा वोट मिले थे, यानी उसके समर्थक उसके साथ खड़े रहे थे।
देखना होगा कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में अब तक शांत दिख रही बीएसपी क्या सोशल इंजीनियरिंग के जरिए कोई बड़ा उलटफेर कर पाएगी।