लखनऊ विश्वविद्यालय ने अपने एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रविकान्त को थप्पड़ मारने वाले छात्र के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है। विश्वविद्यालय ने इस मामले में छात्र कार्तिक पांडेय को तत्काल प्रभाव से निष्कासित कर दिया है। थप्पड़ मारने की घटना मई महीने में आई थी और अब इस मामले में अगस्त महीने में कार्रवाई की गई है।
इस कार्रवाई को लेकर लखनऊ विश्वविद्यालय ने एक बयान जारी किया है। उस बयान के अनुसार डॉ. रविकान्त को थप्पड़ मारने का आरोपी छात्र कार्तिक पांडेय एम ए प्रथम वर्ष द्वितीय सेमेस्टर (संस्कृत) की लखनऊ यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर रहा था।
लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलसचिव विद्यानंद त्रिपाठी ने एक आदेश जारी कर कहा है कि इस मामले में उच्च न्यायालय के आदेश के क्रम में कुलानुशासक मंडल की जाँच रिपोर्ट की संस्तुति पर कुलपति की स्वीकृति से बस्ती निवासी उस छात्र कार्तिक पांडेय पुत्र शिव कुमार पांडेय को तत्काल प्रभाव से निष्कासित किया जाता है। इसके साथ ही आदेश में यह भी साफ़ किया गया है कि भविष्य में कार्तिक पांडेय को विश्वविद्यालय व इससे जुड़े किसी महाविद्यालय में प्रवेश नहीं दिया जाएगा।
बता दें कि लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर और दलित चिंतक डॉ. रविकांत पर इसी साल 18 मई को हमला हुआ था। विश्वविद्यालय के ही छात्र नेता कार्तिक पांडे ने विश्वविद्यालय परिसर में उन्हें थप्पड़ मारा था। हमले के बाद प्रोफेसर रविकांत ने हसनगंज के थाना प्रभारी के सामने शिकायत दी थी।
उन्होंने शिकायत में यह भी लिखा था कि 10 मई को भी विश्वविद्यालय परिसर में एबीवीपी के कुछ छात्रों और अन्य बाहरी तत्वों द्वारा जातिगत टिप्पणियों के साथ जानलेवा हमला करने की कोशिश की गई थी और इसकी तहरीर भी उन्होंने उसी दिन शाम को हसनगंज थाने में दी थी।
पहले प्रोफेसर रविकांत के खिलाफ़ एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया था। प्रोफेसर रविकांत द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को लेकर सत्य हिंदी के एक कार्यक्रम में एक टिप्पणी की गई थी।
एबीवीपी के सदस्यों को उनकी टिप्पणी के उस हिस्से पर आपत्ति थी जिसमें उन्होंने पट्टाभि सीतारमैया की एक किताब 'फेदर्स एंड स्टोन्स' की एक कहानी का ज़िक्र किया था।
छात्रों के प्रदर्शन के बाद उन्होंने बयान जारी कर कहा था, 'मेरे वक्तव्य को, किताब और लेखक के रेफ़रेंस को काटकर मेरे ख़िलाफ दुष्प्रचारित किया गया कि मैं हिंदू धर्म की भावनाओं को भड़का रहा हूँ। मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। मैं तो सिर्फ़ उस घटना का ज़िक्र भर कर रहा था जो कहानी के रूप में है, वो तथ्यात्मक रूप में भी नहीं है। मैंने इसको भी कहा।'
देश भर के 500 से ज़्यादा शिक्षाविद और एक्टिविस्ट डॉ. रविकांत के समर्थन में आए थे। उन्होंने एक साझा बयान जारी कर मांग की थी कि डॉ. रविकांत के ख़िलाफ़ दर्ज की गई एफ़आईआर वापस ली जाए और उनपर हमले के लिए उकसाने वाले लोगों और एबीवीपी के कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए।