जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने मंगलवार को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की एक टिप्पणी पर आपत्ति जताई और उन्हें नसीहत भी दे दी। उन्होंने कहा है कि जजों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे किसी मामले में निर्णय देते समय केवल इसलिए पूर्व न्यायाधीशों को दोषी न ठहराएं क्योंकि वे किसी अलग नतीजे पर पहुंचे थे। जस्टिस नागरत्ना ने यह टिप्पणी तब की जब सीजेआई के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच निजी संपत्ति मामले में फ़ैसला दे रही थी। जस्टिस नागरत्ना भी उस बेंच में शामिल थीं।
जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में सीजेआई चंद्रचूड़ की उस टिप्पणी पर टिप्पणी की जिसमें उन्होंने 46 साल पहले इस मसले पर अपनी राय रखने वाले एक न्यायमूर्ति वीआर कृष्ण अय्यर के फ़ैसले का ज़िक्र किया था। जस्टिस अय्यर ने तब क्या कहा था और सीजेआई चंद्रचूड़ ने अब क्या कहा है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर किस मामले में सीजेआई ने यह टिप्पणी की है।
सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि हर निजी संपत्ति का सरकार अधिग्रहण नहीं कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ' संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं कह सकते। कुछ खास संसाधनों को ही सरकार सामुदायिक संसाधन मानकर इनका इस्तेमाल आम लोगों के हित में कर सकती है।' 9 जजों की संविधान पीठ ने 1978 से लेकर अभी तक के सुप्रीम कोर्ट के कई फ़ैसले पलट दिये हैं।
मंगलवार के फैसले में पिछले फैसलों में से जिस एक का प्रमुखता से उल्लेख किया गया, वह था कर्नाटक राज्य बनाम रंगनाथ रेड्डी मामले में 1977 का फैसला। यह मामला तब सामने आया था जब तत्कालीन कर्नाटक सरकार ने निजी बस सेवाओं के राष्ट्रीयकरण के लिए एक कानून बनाया था। तब सात न्यायाधीशों की पीठ ने 4-3 बहुमत से फैसला सुनाया था कि सभी निजी संपत्ति समुदाय के भौतिक संसाधनों के दायरे में नहीं आती है। अल्पमत में शामिल न्यायाधीशों में से एक न्यायमूर्ति वीआर कृष्ण अय्यर ने तर्क दिया था कि सार्वजनिक और निजी दोनों संसाधन संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत समुदाय के भौतिक संसाधनों के दायरे में आते हैं।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार तब जस्टिस अय्यर ने कहा था कि हम इस विचार के पक्षधर हैं कि संकीर्ण धारणाओं से उत्पन्न कानून और सार्वजनिक ज़रूरतों के बीच बहुत बड़े अंतर को उभरते कल्याणकारी राज्य की बदलती सामाजिक चेतना के अनुरूप पाटा जाना चाहिए। जब निजी संपत्ति को सार्वजनिक भलाई के लिए लिया जाता है, तो संस्थागत संकटों और टकरावों को प्रगतिशील व्याख्या से टाला जा सकता है और टाला जाना चाहिए...।'
मंगलवार को फ़ैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'यह न्यायालय रंगनाथ रेड्डी केस में न्यायमूर्ति अय्यर के अल्पसंख्यक दृष्टिकोण से सहमत नहीं है। हमारा मानना है कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति वाले हर संसाधन को समुदाय का भौतिक संसाधन नहीं माना जा सकता है, क्योंकि वह भौतिक ज़रूरतों की योग्यता को पूरा करता है।' मुख्य न्यायाधीश ने यह भी बताया कि जस्टिस अय्यर ने अपने फैसले में कार्ल मार्क्स का उल्लेख किया है।
सीजेआई ने कहा, 'यह फैसला आर्थिक विचारधारा पर आधारित है कि निजी संपत्ति का इस्तेमाल राज्य द्वारा लोगों के कल्याण के लिए किया जा सकता है। इस न्यायालय की भूमिका आर्थिक नीति निर्धारित करना नहीं है, बल्कि आर्थिक लोकतंत्र स्थापित करने में सहायता करना है।' उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था समाजवादी दृष्टिकोण से उदार आर्थिक व्यवस्था में बदल गई है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'कृष्णा अय्यर के दृष्टिकोण में सैद्धांतिक त्रुटि यह थी कि उन्होंने एक कठोर आर्थिक सिद्धांत की स्थापना की, जो संवैधानिक शासन के लिए विशेष आधार के रूप में निजी संसाधनों पर राज्य के अधिक नियंत्रण की वकालत करता है।'
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि सामुदायिक संसाधनों पर न्यायमूर्ति अय्यर का निर्णय एक संवैधानिक और आर्थिक ढाँचे की पृष्ठभूमि में आया था, जिसने व्यापक रूप से राज्य को प्राथमिकता दी थी।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा, 'क्या भारत में वर्ष 1991 से अपनाए गए उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के सिद्धांत, अर्थव्यवस्था में सुधार और पिछले तीन दशकों में लाए गए ढांचागत बदलाव और भारत की आज़ादी पाने के तुरंत बाद के दशकों में अपनाई गई सामाजिक-आर्थिक नीतियों की तुलना हो सकती है? परिणामस्वरूप, क्या इस न्यायालय के निर्णय, जिन्होंने संविधान की व्याख्या राज्य की नीतियों के अनुरूप की थी, को लिखने वालों की आलोचना की जा रही है?'
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने न्यायमूर्ति अय्यर के फैसले पर मुख्य न्यायाधीश की कुछ टिप्पणियों पर सवाल उठाया और कहा कि वे 'अनुचित' हैं।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई ऐसी टिप्पणियां पहले के फ़ैसले और उनके लिखने वालों पर यह अस्पष्टता पैदा करती हैं कि वे भारत के संविधान के प्रति सम्मान नहीं करते होंगे और इस तरह यह संकेत देते हैं कि वे भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपने पद की शपथ के प्रति सच्चे नहीं रहे होंगे। हालांकि, न्यायमूर्ति नागरत्ना बहुमत के फैसले से सहमत थीं और उन्होंने कहा कि समय के साथ संविधान की 'लचीली व्याख्या' की ज़रूरत है।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि भारतीय न्यायपालिका का दायित्व है कि वह पूर्व के ज्ञान के केवल उस हिस्से को चुनकर नई चुनौतियों का सामना करे जो पिछले न्यायाधीशों की निंदा किए बिना वर्तमान के लिए सही है। उन्होंने कहा, 'मैं ऐसा इसलिए कह रही हूं, ताकि भावी पीढ़ी के न्यायाधीशों को भी यही व्यवहार न अपनाना पड़े।'