इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि मस्जिदों में लाउड स्पीकर का इस्तेमाल मौलिक अधिकार नहीं है। जस्टिस विवेक कुमार बिरला और जस्टिस विकास बधवार की बेंच ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका इरफान नाम के शख्स की ओर से दायर की गई थी।
इरफान ने याचिका में कहा था कि उत्तर प्रदेश में बदायूं जिले की बिसौली तहसील के एसडीएम ने बीते साल दिसंबर में धूरनपुर गांव की नूरी मस्जिद में अजान के वक्त लाउड स्पीकर या माइक के इस्तेमाल की इजाजत देने से मना कर दिया है और इस संबंध में आदेश भी जारी किया है।
इरफान ने अदालत से अपील की थी कि वह प्रशासन को मस्जिद में लाउड स्पीकर या माइक का इस्तेमाल करने का निर्देश दें।
इरफान ने याचिका में यह भी कहा था कि एसडीएम का आदेश पूरी तरह गैर कानूनी है और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
लेकिन हाई कोर्ट ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया।
साल 2020 में भी लॉकडाउन के दौरान लाउड स्पीकर के जरिए अजान के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक टिप्पणी की थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि कोई इंसान किसी एंप्लिफायर या उपकरण के बिना मस्जिद की मीनारों से आवाज लगाकर अज़ान दे सकता है और इससे कोरोना के लिए राज्य सरकार के द्वारा बनाई गई गाइडलाइंस का उल्लंघन नहीं होगा।
लाउड स्पीकर पर बवाल
बता दें कि इन दिनों मस्जिदों से लाउड स्पीकर हटाए जाने की मांग को लेकर कई राज्यों में सियासी बवाल भी चल रहा है। उत्तर प्रदेश में सभी धार्मिक स्थलों से हजारों की संख्या में लाउड स्पीकर हटा दिए गए हैं जबकि महाराष्ट्र में मस्जिदों से लाउड स्पीकर हटाने की मांग को लेकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ता प्रदर्शन कर रहे हैं।
दिल्ली में भी धार्मिक स्थलों से लाउड स्पीकर हटाए जाने की मांग उठी है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी है कि धार्मिक स्थलों पर लगे लाउड स्पीकर से तय डेसिबिल लिमिट से ज्यादा आवाज बाहर नहीं आनी चाहिए।