कांग्रेस ने सभी अटकलों को खारिज करते हुए शुक्रवार को अमेठी सीट पर नाम की घोषणा कर दी। इसने राहुल गांधी की जगह पर किशोरी लाल शर्मा को मैदान में उतारा है। तो सवाल है कि आख़िर जो अमेठी सीट गांधी परिवार की गढ़ रही थी उसको किसी और को क्यों दे दिया? और यह किशोरी लाल शर्मा आख़िर कौन हैं जिनपर कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार ने इतना भरोसा जताया है?
किशोरी लाल शर्मा उर्फ केएल शर्मा को गांधी परिवार का ख़ास माना जाता है। वह गांधी परिवार के बेहद करीबी सहयोगी रहे हैं। वह चार दशकों से अधिक समय से पार्टी से जुड़े हुए हैं।
क़रीब 4 दशकों से ही शर्मा अमेठी से भी जुड़े रहे हैं। वैसे, वह मूल रूप से पंजाब के लुधियाना के रहने वाले हैं। किशोरी लाल शर्मा ने पहली बार 1983 में राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी के साथ रायबरेली और अमेठी में कदम रखा था। कहा जाता है कि वह राजीव गांधी के बेहद क़रीबी सहयोगी रहे।
समय बीतने के साथ उनके संबंध और प्रगाढ़ होते गए। मई 1991 में राजीव गांधी की मृत्यु के बाद गांधी परिवार के साथ उनके संबंध और अधिक पारिवारिक हो गए। कहा जाता है कि राजीव गांधी की अनुपस्थिति में वह उन चुनाव क्षेत्रों में काम करते रहे।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार केएल शर्मा ने 1999 में अमेठी से सोनिया गांधी की पहली जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब सोनिया गांधी ने राजनीति में प्रवेश किया और पहली बार इस निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया तो वे उनके साथ अमेठी भी गए थे।
सोनिया गांधी द्वारा राहुल के लिए सीट खाली किए जाने के बाद केएल शर्मा अमेठी और रायबरेली में पार्टी के मामलों को संभालते रहे। केएल शर्मा दोनों निर्वाचन क्षेत्रों का लगातार दौरा करते रहे।
सात चरण के आम चुनाव के पांचवें दौर में 20 मई को अमेठी और रायबरेली में मतदान होगा। अमेठी में अब केएल शर्मा के ख़िलाफ़ बीजेपी की ओर से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी होंगी। तो सवाल है कि आख़िर शर्मा ईरानी को कितनी टक्कर दे पाएँगे?
कहा जाता है कि चार दशकों से पार्टी के लिए अमेठी क्षेत्र को संभालने की वजह से उनकी वहाँ अच्छी पकड़ है। वह पूरे क्षेत्र को अच्छी तरह जानते हैं, और लोगों से उनके अच्छे संबंध हैं। उनको गांधी परिवार का नज़दीकी होने का भी फायदा मिलेगा।
स्मृति ईरानी कितनी मज़बूत?
लेकिन स्मृति ईरानी को भी कम नहीं आँका जा सकता है। कभी गांधी परिवार का गढ़ रही अमेठी सीट 2019 के चुनाव में बीजेपी ने जीत ली। स्मृति ईरानी क़रीब 50 हज़ार वोटों के अंतर से जीती थीं। स्मृति ईरानी को 49.71 फीसदी वोट मिले थे।
2019 में राहुल गांधी को वोट 2014 से ज़्यादा मिले थे, लेकिन वह हार गए थे। 2014 में जहाँ राहुल को 4 लाख आठ हज़ार वोट मिले थे, वहीं 2019 में उनको 4 लाख 13 हज़ार वोट मिले। 2014 के चुनाव में स्मृति ईरानी राहुल गांधी से एक लाख से अधिक वोटों से हार गई थीं।
इससे पहले 2009 के चुनाव में राहुल गांधी को 4 लाख 64 हज़ार से ज़्यादा वोट मिले थे। यह कुल वोटों का क़रीब 71.78 फ़ीसदी था। तब राहुल अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बीएसपी उम्मीदवार से 3 लाख 70 हज़ार वोटों के अंतर से जीते थे। 2004 में राहुल गांधी को 3 लाख 90 हज़ार वोट मिले थे और तब वह 2 लाख 90 हज़ार वोट के अंतर से जीते थे।