जेल से परोल पर बाहर आए बाहुबली धनंजय सिंह रविवार रात को अपनी पत्नी और बसपा प्रत्याशी श्रीकला रेड्डी सिंह के लिए जौनपुर में वोट मांग रहे थे। उसी दौरान जौनपुर के बसपा नेता श्याम सिंह यादव का मोबाइल बज उठा और लाइन पर खुद बसपा प्रमुख मायावती थीं। मायावती ने श्याम सिंह यादव से कहा कि कल यानी सोमवार 6 मई को जाकर बसपा सिंबल पर नामांकन करो। इस एक फोन ने जौनपुर का पूरा चुनावी माहौल और समीकरण ही बदल दिया। भाजपा ने जौनपुर से महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री कृपाशंकर सिंह को उतारा है। जो पूर्वांचल के ही रहने वाले हैं। भाजपा में जाने से पहले वे कांग्रेसी थे। सपा ने बाबू सिंह कुशवाहा को यहां से उतारा है।
यूपी का पूर्वांचल इलाका कुछ बाहुबलियों की वजह से काफी कुख्यात रहा है। जिसमें मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद की मौत हो चुकी है। लेकिन बाहुबलियों की सूची में धनंजय सिंह का भी नाम है। पूर्व सांसद धनंजय सिंह को अपहरण के एक पुराने मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट ने 6 मार्च 2024 को 7 साल की सजा सुनाई थी। उसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया। लेकिन 27 अप्रैल को धनंजय सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। हालांकि इस जघन्य कांड में जमानत मिलना आसान नहीं था। लेकिन धनंजय को जमानत मिली। वो बाहर आ गए। उधर, उनकी पत्नी श्रीकला रेड्डी सिंह को बसपा ने अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था।
धनंजय सिंह के जेल से बाहर आते ही यह चर्चा शुरू हो गई कि जौनपुर से नामांकन वापस लेने की तारीख खत्म होने के बाद बतौर बसपा प्रत्याशी श्रीकला रेड्डी सिंह अपना नाम वापस ले लेंगी। यानी जौनपुर में बसपा प्रत्याशी रहेगा ही नहीं। सूत्रों का कहना है कि इसकी सूचना मायावती को अपने विश्वस्त लोगों से मिल रही थी। जौनपुर में नामांकन का आखिरी दिन 6 मई है। मायावती ने 5 मई की रात को श्याम सिंह यादव को चुनाव लड़ने का आदेश दिया।
सारे मामले में भाजपा की भूमिका क्या हैः जौनपुर में बसपा के सूत्रों का कहना है कि जिस तरह इंदौर और सूरत में हुआ, उसी योजना के तहत जौनपुर में कृपाशंकर सिंह को जिताने के लिए बसपा को मैदान से हटाने के लिए श्रीकला रेड्डी सिंह को हटाने की तैयारी थी। जेल से बाहर आने के बाद और अपनी पत्नी के लिए प्रचार कर रहे धनंजय सिंह ने भाजपा की और उसकी नीतियों की एक बार भी आलोचना नहीं की। बसपा नेताओं का कहना है कि अगर धनंजय वाकई भाजपा को हराना चाहते हैं तो अब अपनी पत्नी को निर्दलीय लड़ाकर देख लें।
धनंजय सिंह अगर अपनी पत्नी को निर्दलीय लड़ाते हैं तो जौनपुर सीट पर मुकाबला वाकई चार कोणीय हो जाएगा। भाजपा के कृपाशंकर सिंह के सामने सिर्फ सपा और बसपा की ही चुनौती नहीं होगी, बल्कि धनंजय सिंह की पत्नी की चुनौती भी होगी। धनंजय सिंह यहां से दो बार विधायक और एक बार सांसद रहे। उनकी पत्नी के चुनाव लड़ने से जौनपुर में 13.30 फीसदी राजपूत मतदाता बंट सकते हैं। अब तक हुए 17 चुनावों में 11 बार राजपूत ही जीता है। यहां से चार बार यादव और दो बार ब्राह्मण भी जीते हैं। कुल मिलाकर जातीय समीकरण की ही इस सीट पर बड़ी भूमिका रहती है।
मायावती ने गलती सुधारीः जौनपुर सीट पर पिछला चुनाव 2019 में श्याम सिंह यादव ने बसपा टिकट पर जीता था। लेकिन मायावती ने उनका टिकट काटकर धनंजय सिंह की पत्नी को दिया था। बहरहाल, मायावती ने गलती सुधार ली है और फिर से श्याम सिंह यादव को उतार दिया है। 2014 में इस सीट पर भाजपा जीती थी लेकिन 2019 में सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। जिसमें बसपा जीती। इस बार सपा और कांग्रेस का समझौता है।
सपा प्रत्याशी की स्थिति मजबूत कैसे
जौनपुर में अब समीकरण बदल गए हैं। हालांकि इसमें बदलाव की आखिरी गुंजाइश अभी भी है। सपा प्रत्याशी बाबू सिंह कुशवाहा के पास सपा का सॉलिड यादव और मुस्लिम वोट है। खुद वो अति पिछड़े में आते ही हैं। अब बसपा ने चूंकि यादव प्रत्याशी उतारा है तो सपा के कुछ वोट कट सकते हैं लेकिन उसकी भरपाई के लिए बाबू सिंह कुशवाहा के पास कुशवाहा-मौर्य-कश्यप वोटों का भंडार है। भाजपा के कृपाशंकर की स्थिति में तभी सुधार हो सकता है जब धनंजय अपनी पत्नी को चुनाव मैदान से हटा लें। लेकिन ऐसे में उन चर्चाओं की पुष्टि हो जाएगी कि धनंजय सिंह ने भाजपा से डील की थी। शायद धनंजय अपनी राजनीति को महत्वपूर्ण बनाए रखने के लिए पत्नी को न हटाएं। अगर श्रीकला मैदान में रहती हैं तो कृपाशंकर सिंह की मुश्किल बढ़ेगी। नामांकन वापसी के बाद ही श्रीकला का स्टेटस स्पष्ट होगा।जौनपुर लोकसभा सीट की खास बातें
- जौनपुर सीट में बदलापुर, शाहगंज, जौनपुर, मल्हनी और मुंगराबादशाहपुर सहित 5 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं।
- 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के श्याम सिंह यादव ने 80,936 वोटों के अंतर से सीट जीती। श्याम सिंह यादव को 50.00 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 521,128 वोट मिले और उन्होंने भाजपा के कृष्ण प्रताप सिंह केपी को हराया, जिन्हें 440,192 वोट (42.25 प्रतिशत) मिले।
- 2014 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा के कृष्ण प्रताप केपी ने सीट जीती और उन्हें 36.45 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 367,149 वोट मिले। बसपा उम्मीदवार सुभाष पांडे को 220839 वोट (21.93 प्रतिशत) मिले और वह उपविजेता रहे। कृष्ण प्रताप केपी ने सुभाष पांडे को 146310 वोटों से हराया था।
इस आंकड़े से पता चलता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर बढ़ा लेकिन वो सीट हार गई। जबकि भाजपा 2019 में चरमोत्कर्ष पर थी। 2019 में बसपा को सपा के वोट ट्रांसफर हुए थे, इस वजह से बसपा को 50 फीसदी वोट हासिल हुआ था। 2014 में इसी बसपा ने जब सोशल इंजीनियरिंग के तहत सुभाष पांडे को यहां से उतारा था तो उन्हें 21.93 फीसदी वोट मिले थे। यानी यह बसपा का अपना वोट बैंक था जो उसे मिला। इस बार बसपा ने यादव प्रत्याशी उतारा है। उसे लगता है कि सपा के यादव उसे वोट देंगे। लेकिन ग्राउंड लेवल पर ऐसा नहीं है।