मोदी सरकार के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली के बॉर्डर्स पर बैठे किसानों ने बीते 84 दिनों में साफ कर दिया है कि वे ये आंदोलन अपनी मांगों के पूरे हुए बिना ख़त्म नहीं करेंगे। सरकार के साथ किसानों की कई दौर की बैठकें बेनतीजा हो चुकी हैं और 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड और लाल क़िले पर हुई हिंसा के बाद से बातचीत पूरी तरह बंद है। दूसरी ओर, महापंचायतों ने सरकार की नाक में दम कर रखा है।
ऐसे हालात में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मंगलवार शाम को किसान आंदोलन से प्रभावित राज्य हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के पार्टी नेताओं की बैठक बुलाई। बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर सहित इन प्रभावित इलाक़ों के बीजेपी विधायक और सांसद शामिल रहे। ख़ासकर जाट नेताओं को इस बैठक में बुलाया गया था।
ख़बरों के मुताबिक़, बीजेपी ने जाट नेताओं से कहा कि वे खाप पंचायतों के पास जाएं, उनसे बात करें और कृषि क़ानूनों को लेकर बने भ्रम को दूर करें। यह भी निर्देश दिया गया है कि किसानों और खापों के नेताओं को बताया जाए कि सरकार उनसे बातचीत के लिए तैयार है और ये क़ानून किसानों की मदद के लिए बने हैं।
बीजेपी का किसान मोर्चा अब जिलों और गांवों में बैठकें आयोजित करने की तैयारी में है। पश्चिमी उत्तरी प्रदेश के मुज़फ्फरनगर से आने वाले केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, बाग़पत के सांसद सत्यपाल सिंह, हरियाणा बीजेपी के अध्यक्ष ओपी धनखड़ सहित कई जाट नेताओं को मैदान में उतारा गया है।
जाट राजनीति में उबाल
किसानों के आंदोलन ने देश की जाट राजनीति में उबाल ला दिया है। बीजेपी जानती है कि इस आंदोलन में बड़ी तादाद जाट समुदाय की है और इस समुदाय की नाराज़गी का उसे खामियाजा उठाना पड़ सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिस तरह से राजनीतिक माहौल बदला है, वह उसकी चिंताएं बढ़ाने वाला है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली के बाहरी इलाक़ों, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के कुछ इलाक़ों तक इस समुदाय का खासा असर है। राकेश टिकैत के पक्ष में जिस तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा में लोग खड़े हुए हैं, उससे साफ पता चलता है कि उनके भावुक होने का असर भी जाटों के बीच हुआ है।
ख़तरे में हरियाणा सरकार
किसान आंदोलन के कारण हरियाणा की खट्टर सरकार ख़तरे में है। बीजेपी के साथ सरकार में शामिल होने के कारण दुष्यंत चौटाला लगातार किसानों के निशाने पर हैं। टिकरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में हरियाणा के और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट युवाओं की जबरदस्त सक्रियता है।
हरियाणा के बड़े जाट नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह किसानों के समर्थन में खुलकर आगे आए हैं। चौधरी ने बीजेपी को और मुसीबत में डाल दिया है।
किसान आंदोलन में जाट समुदाय की भागीदारी को देखने के बाद ही हनुमान बेनीवाल ने बीजेपी के साथ खड़े होना ख़तरे का सौदा समझा और एनडीए से बाहर निकल आए। इसके अलावा सिख जाटों की नाराज़गी को भांपते हुए ही अकाली दल ने भी एनडीए से नाता तोड़ लिया था।
बीजेपी के लिए ज्यादा चिंता पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भी है। यहां किसानों की महापंचायतों के अलावा राष्ट्रीय लोकदल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी महापंचायतों का आयोजन कर रही हैं। राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में किसान आंदोलन ने उसके हाथ-पैर ढीले कर दिए हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बाग़पत से लेकर बिजनौर तक जाट समुदाय की बड़ी आबादी है और इस इलाके की 80 विधानसभा सीटों पर इनका प्रभाव है। ऐसे में बीजेपी ने इस इलाक़े से आने वाले अपने जाट नेताओं केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, सांसद सत्यपाल सिंह, पश्चिमी यूपी में बीजेपी के अध्यक्ष मोहित बेनीवाल को काम पर लगा दिया है। संजीव बालियान ने बुधवार को जाट नेताओं के साथ बैठक कर उनका मन टटोलने की कोशिश की है।
राजनीतिक नुक़सान का ख़तरा
बीजेपी जानती है कि लगातार फैल रहा किसान आंदोलन उसके लिए मुसीबत बन सकता है। 26 जनवरी से पहले हरियाणा-पंजाब तक सीमित रहा किसान आंदोलन बहुत तेज़ी से पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड तक फैल चुका है। बीते दिनों में इन राज्यों में हुई किसान महापंचायतों में बड़ी संख्या में किसान उमड़े हैं और इनमें जाट समुदाय की बड़ी संख्या को देखते हुए बीजेपी ने अपने नेताओं को टास्क दिया है कि वे समुदाय के और खाप के नेताओं को मनाकर इस मसले को सुलझाएं वरना अगर यह आंदोलन लंबा चला तो पार्टी को राजनीतिक नुक़सान हो सकता है।