चुनाव का सामना करने जा रहे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेताओं के घर शनिवार सुबह आयकर विभाग ने छापे मारे। क्या ये छापे गलत समय पर मारे गए, इसे लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
इसे लेकर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन कई स्थानों पर शुरू हो गया है।
यूपी में ठोको राज चल रहा है। चुनाव से पहले छापे क्यों : अखिलेश यादव
अखिलेश के करीबी
आयकर विभाग ने ये छापे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के करीबी लोगों पर मारे।
इनमें पार्टी के प्रवक्ता राजीव राय के मऊ स्थित आवास और लखनऊ के जैनेंद्र जैन व मैनपुरी के मनोज यादव के आवास शामिल हैं।
छापे की कार्रवाई के दौरान मऊ के सहादतपुरा में राजीव राय के घर पर बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता पहुंच गए और उन्होंने प्रदर्शन शुरू कर दिया।
आयकर अधिकारियों ने फौरन पुलिस बुला ली। राजीव राय को एक अलग कमरे में बैठाया गया है।
राजीव राय के कर्नाटक में शिक्षण संस्थान चलते हैं। उसी सिलसिले में ये छापे मारे गए। हालांकि आयकर विभाग ने उनके पास कोई नोटिस वगैरह नहीं भेजा था।
अभी तो आयकर विभाग आया है। ईडी के छापे भी जल्द पड़ेंगे। दरअसल भाजपा भी कांग्रेस के रास्ते पर चल रही हैः अखिलेश यादव
छापे के विरोध में सपा कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन का कड़ाके की ढंग में प्रदर्शन उनका मनोबल बता रहा है।
सवाल तो बनता है
ये छापे ऐसे समय मारे गए हैं, जब उत्तर प्रदेश चुनाव का सामना करने जा रहा है। यूपी में भाजपा की असल प्रतिद्वंदी पार्टी सपा ही है। प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह यूपी का दौरा कर रहे हैं, उससे लगता है कि उन्हीं की साख इस विधानसभा चुनाव में दांव पर लगी हुई है।
आयकर विभाग सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में है। आयकर विभाग के अफसरों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे नीति निर्धारकों से पूछे बिना ही किसी नेता के घर छापा मार दें।
मेरा कोई आपराधिक रेकॉर्ड नहीं है। मैं लोगों की मदद करता हूं, इसलिए भाजपा नाराज हैः राजीव राय
आयकर विभाग के इन छापों का असर सपा के कोर वोटरों पर पड़ना तय है और उससे पार्टी को सहानुभूति भी मिलेगी। सपा इसे केंद्र की दमनकारी नीति के रूप में प्रचार करने से नहीं चुकेगी।
ये छापे बता रहे हैं कि सरकार सपा को लेकर चिंतित जरूर है।
जिस तरह अखिलेश की सभाओं में भीड़ जुट रही है, उससे भाजपा के लिए विधानसभा चुनाव की इम्तेहान कड़ा होता जा रहा है।
ये सवाल तो पूछा ही जाएगा कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद अचानक पांच साल बाद कैसे छापों की याद आई।