यूपी: हापुड़ में 6 साल की बच्ची से दरिंदगी, अपराधी 4 दिन बाद भी पकड़ से बाहर 

08:42 pm Aug 10, 2020 | हरि शंकर जोशी - सत्य हिन्दी

हापुड़ में 6 साल की मासूम के साथ हुई दरिंदगी की वजह से उत्तर प्रदेश एक बार फिर सुर्खियों में है। लेकिन दिल दहला देने वाली यह घटना सूबे की अकेली घटना नहीं है। मीडिया में हर रोज दरिंदगी की घटनाओं का विवरण आता है लेकिन मेनस्ट्रीम मीडिया में यह किसी कोने में दुबकी हुई होती हैं। 

अब निर्भया कांड पर कोई आंदोलन नहीं होता बल्कि 'गुड वर्क' के प्रशस्तिगान होते हैं। मीडिया का बड़ा हिस्सा रामराज्य या कानून के राज की छवि बनाने में लीन रहता है तो विपक्ष अपनी दुम दबाए दड़बों में बंद नज़र आता है। हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं और खाकी ने एनकाउंटर इंडस्ट्री खोल दी है। 

क्या हुआ रामराज्य का

अबला की इज्जत की कीमत खुलेआम लगाई जा रही है और पुलिस मौन धारण कर समझौतानामा आने का इंतज़ार करती है। हत्या के बाद लाश के टुकड़े-टुकड़े कर बोरवेल में डाल दिए जाते हैं और शव के अवशेषों की बरामदगी के लिए पीड़ितों को धरना देने के लिए विवश होना पड़ता है लेकिन परिणाम शून्य। यह नए तरीके का रामराज्य है जिसने पिछली सरकारों के जंगलराज को भी धता बता दिया है।

घर के बाहर से अपहरण

अगर आपको हापुड़ में एक मासूम के साथ हुई दरिंदगी के बारे में नहीं मालूम तो हम आपको बताते हैं। बीती 6 अगस्त को हापुड़ जिले के गढ़मुक्तेश्वर में शाम के समय घर के बाहर खेलती हुई 6 साल की एक मासूम को कोई बाइक सवार उठा ले गया। अपहरण की सूचना पुलिस को दी गई लेकिन पुलिस ने अपने अंदाज में तलाश शुरू की और बच्ची के घर वाले भी उसकी तलाश में भटकते रहे। 

उन्हें जो मिला, उससे पूछा। अगले दिन सुबह उन्हें नजदीक के जंगल में बच्ची के लहूलुहान पड़े होने की सूचना मिली लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही पुलिस बच्ची को स्थानीय अस्पताल लेकर जा चुकी थी। बच्ची की गंभीर हालत देखकर उसे मेरठ के मेडिकल कॉलेज शिफ्ट कर दिया गया, जहां उसकी हालत गंभीर बनी हुई है। 

बच्ची का इलाज कर रहे चिकित्सकों का कहना है कि बच्ची के गुप्तांगों पर जख्मों को गिनना भी बेहद मुश्किल है। डॉक्टर्स के मुताबिक़, किसी नुकीली और भारी चीज से उसे चोटें पहुंचाई गई हैं।  दरिंदगी की इससे अधिक जानकारी देना मुनासिब नहीं है। 

मासूम का एक ऑपरेशन हो चुका है जबकि दूसरा उसके स्थिर हालत में आने के बाद होगा। चिकित्सकों के मुताबिक़ अगले 72 घंटे उसका जीवन बचाने के लिए बहुत अहम हैं।

सरकारी तंत्र भले ही ऐसी घटनाओं पर बयानवीर बनकर कहे कि कठोर कार्रवाई होगी लेकिन हकीकत यह है कि पुलिस अपनी गति और अपने स्टाइल से चलती है। यह सिस्टम दरिंदगी का शिकार होकर मौत से लड़ रही अबोध बच्ची के घरवालों से स्ट्रेचर खिंचवाता है और इतने गंभीर और संवेदनशील मसले पर भी संजीदा नहीं होता। 

जब इस मामले में कांग्रेस के एक-दो स्थानीय नेताओं ने बच्ची के अभिभावकों को सांत्वना देते हुए न्याय दिलाने के लिए आंदोलन की बात कही तो सत्तासीन अमला भी एक्टिव हो गया और पुलिस ने अपराधियों के संभावित रेखाचित्र भी जारी कर दिए। 

उत्तर प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष विमला बाथम ने गढ़मुक्तेश्वर की घटना की निंदा करते हुए कहा कि यह समाज को शर्मसार करने वाला वीभत्स अपराध है। उन्होंने कहा कि पीड़ित के इलाज और पीड़ित परिवार की पूरी मदद की जाएगी। 

रामराज्य का वादा कर बीजेपी सत्ता में आई थी।

क्यों चुप बैठा है विपक्ष

सवाल उठता है कि निर्भया कांड के समय या अखिलेश सरकार में बुलंदशहर में हुई सामूहिक दुष्कर्म की निर्मम घटना के बाद बीजेपी ने जिस तरह का तूफान खड़ा किया था, क्या आज सत्ता ने उसका चरित्र बदल दिया है। यदि वह चरित्र विपक्ष का था तो आज एसपी और बीएसपी के नेता बिलों में क्यों दुबके बैठे हैं! आखिर उनकी क्या मजबूरी है कि वे फ्रंटफुट पर आकर ऐसे निर्मम कांड का विरोध नहीं करते! क्यों नहीं वे आत्ममुग्ध सत्ताधीशों को झकझोरते और क्यों पीड़ित को इंसाफ दिलाने के लिए सड़कों पर नहीं उतरते क्यों आज कांग्रेस अकेली विपक्ष में खड़ी नजर आती है, भले ही उसकी दशा जीर्ण-शीर्ण है।

उत्तर प्रदेश में कानून का राज स्थापित करने के नाम पर रोज अपराधियों से पुलिस की कथित मुठभेड़ों की शौर्य गाथाएं सुनने को मिल रही हैं।

आए दिन फ़ेक एनकाउंटर

उत्तर प्रदेश में कानून का राज स्थापित करने के नाम पर रोज अपराधियों से पुलिस की कथित मुठभेड़ों की शौर्य गाथाएं सुनने को मिल रही हैं। रोज एक जैसी स्क्रिप्ट पर बदमाशों को गोलियां लग रहीं हैं लेकिन इतने इनामी बदमाशों को मुठभेड़ में धराशायी करने के बाद भी अपराधों की बाढ़ क्यों नहीं थम रही! सोचने की बात है कि क्या उत्तर प्रदेश में अपराधी बहुमत में हैं या रक्तबीज जैसे हैं, जो नियंत्रण में ही नहीं आ रहे या फिर उत्तर प्रदेश पुलिस कार्रवाई नहीं नाटक कर रही है

हापुड़ में दरिंदगी का शिकार हुई 6 साल की मासूम सूबे में अकेली नहीं है बल्कि हर रोज अलग-अलग जगहों पर कई मासूम दरिंदों का शिकार होती हैं और ऐसे ज्यादातर मामले फाइलों में चढ़ने के बाद या फिर पहले ही दफन कर दिए जाते हैं।

पुलिस का नकारापन

आज उत्तर प्रदेश में गज़ब का लाठीतंत्र है। वैसे यह तंत्र कोई नया भी नहीं है। बस, चेहरे बदल गए हैं। लाठियों वाले हाथ भी वही हैं लेकिन कुछ ने वेशभूषा बदल ली है और बड़ी संख्या में वे हैं जिन्हें पूर्व में खुल कर लाठियां भांजने का अवसर नहीं मिला। आज जिसे रामराज्य का तमगा दिया जा रहा है, हकीकत में वह कबीलाई परम्परा से भी बदतर है। अब पंचायतों में स्त्री की अस्मिता की कीमत लगाई जा रही है और खाकी भी अपनी कुर्सी के लिए बगुला भगत बन चुकी है। ऐसे वर्दी वाले सभी नहीं लेकिन बहुत हैं जो अपने नए आकाओं की वजह से पदासीन हैं।

इज्जत की क़ीमत 3 लाख रुपये

उदाहरण के लिए अभी हाल में सामने आई मेरठ की दो घटनाओं पर गौर कीजिए। मेरठ के सरूरपुर में एक नाबालिग से दुराचार होने के बाद पंचायत ने उसकी इज्जत की कीमत लगाई महज 3 लाख रुपये। यह पंचायत हुई बीती शनिवार को और पुलिस अपनी इंद्रियों को अचेतन कर बैठी रही। 

यह मामला करीब 15 दिन पहले का है, जब एक नाबालिग किशोरी अपना मोबाइल रिचार्ज कराने गई तो दुकानदार ने रिचार्ज के लिए युवती को अपने घर बुला लिया और तमंचे से डराकर उसके साथ बलात्कार किया। मामला थाने पहुंचा तो असरदारों के दबाव में थानेदार ने किशोरी का मेडिकल कराकर घर भेज दिया और शांत होकर बैठ गया। इसके बाद गांव में असरदारों ने पंचायत बुलाई और दुराचारी पर 3 लाख रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में देने का फ़ैसला सुना दिया। यानी एक अबला की इज्जत की कीमत 3 लाख रुपये! अब समझौते के लिए पीड़ित पक्ष पर दबाव बनाया जा रहा है और पुलिस गूंगी-बहरी बनी बैठी है।

बलात्कार मामले में समझौता 

ऐसा ही एक और मामला मेरठ के मवाना का है जहां बीती शनिवार की सुबह एक बिरादरी की पंचायत ने बलात्कारी पर 95 हजार का मुआवजा लगाकर मामले में समझौता कराने की खबरें हैं। यह मामला भी पुलिस के पास पहुंचा था लेकिन कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई और न पुलिस ने मेडिकल कराया लेकिन दो आरोपियों को थाने में बिठा लिया। यानी मामला पंचायत में निपट जाए तो ठीक और न निपटे तो...!

ऐसे में हापुड़ की निर्भया के असली गुनहगार सलाखों के पीछे जा पाएंगे! यह कोई नहीं कह सकता। आज सूबे में कानून व्यवस्था पर टिप्पणी करना भी गुस्ताख़ी है। ऐसे में विपक्षी दलों का मेमना बन जाना न केवल दुःखद बल्कि निंदनीय भी है।