यूपी में पूर्वांचल के दो प्रमुख नेता ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में लौट आए हैं। इनके भाजपा से हाथ मिलाने के बाद पूर्वांचल के राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं। क्योंकि दोनों ही नेताओं की अपने वोट बैंक पर अच्छी पकड़ है। भाजपा ने जैसे ही एनडीए को खड़ा करने की कोशिश शुरू की, उसमें हाशिए पर पड़े तमाम छोटे दलों के नेताओं के दिन लौट आए। लेकिन इनका आना इतना सामान्य नहीं है। दरअसल, इनको वापस लाना भाजपा की मजबूरी भी बताता है, जिसकी नजर लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी की उन सीटों पर है, जहां वो हार गई थी या पिछड़ गई थी।
दारा सिंह चौहान यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले योगी मंत्रिमंडल से मंत्री पद से इस्तीफा देकर सपा में शामिल हुए थे। वो मऊ जिले की घोसी विधानसभा से आते हैं। दारा अब भाजपा में लौट आए हैं।
पूर्वांचल का गणित समझिए बीजेपी की रणनीति ओमप्रकाश राजभर की वापसी के जरिए पूर्वांचल में अपनी जमीन मजबूत करना है। पीएम मोदी का वाराणसी लोकसभा क्षेत्र हो या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गोरखपुर हो, दोनों ही पूर्वांचल के महत्वपूर्ण इलाके हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्वांचल की 26 में से 6 सीटों पर हार मिली थी। 2019 में भाजपा पूर्वांचल के अंबेडकरनगर, आज़मगढ़, घोसी, ग़ाज़ीपुर, लालगंज और जौनपुर सीटों पर हार गई थी।
चिन्ता क्यों बढ़ी
यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव नतीजों ने पार्टी की चिंता बढ़ा दी है। बीजेपी ने 2017 के चुनाव के मुकाबले ज्यादा सीटें तो जीतीं लेकिन गाजीपुर, बलिया, आज़मगढ़ जैसे जिलों में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा। ऐसे में 2024 चुनाव से पहले बीजेपी का पूरा फोकस पूर्वांचल में संगठन की कमियों को दूर करने के साथ-साथ जातीय समीकरण साधने पर भी है। वो यूपी की 80 में से 80 लोकसभा सीटें जीतने के मिशन पर काम कर रही है।
राजभर की उपयोगिता सुहेलदेव पार्टी के ओमप्रकाश राजभर पूर्वांचल में जातीय समीकरण साधने की रणनीति में फिट बैठते रहे हैं। चाहे वो अखिलेश की सपा हो या फिर मोदी-अमित शाह की भाजपा हो। ओमप्रकाश राजभर अपनी जाति का वोट आसानी से उस दल को ट्रांसफर करा ले जाते हैं, जिस दल से उनका समझौता होता है। उत्तर प्रदेश में राजभर आबादी करीब चार फीसदी है। पूर्वांचल के 25 में से 18 जिलों में राजभर मतदाता अच्छी संख्या में हैं. गाजीपुर, बलिया, सलेमपुर, जौनपुर, आजमगढ़, मऊ समेत करीब एक दर्जन सीटों पर राजभर मतदाता जीत-हार तय करने की स्थिति में हैं।
ओमप्रकाश राजभर जब एनडीए से अलग हुए थे तो बीजेपी ने अनिल राजभर को राजभर के चेहरे के तौर पर पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अनिल राजभर भी सक्रिय दिखे। राजभर ने घर-घर जाकर समाज के लोगों से मुलाकात भी की, लेकिन बीजेपी के अनिल राजभर वोटों में सेंध लगाने में नाकाम रहे। वहां अभी भी पकड़ ओमप्रकाश राजभर की ही है।
2022 का नुकसान
यूपी चुनाव 2022 में बीजेपी गाजीपुर जिले में अपना खाता भी नहीं खोल पाई, जबकि बलिया में एक सीट पर ही सिमट कर रह गई। विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी 18 सीटों पर चुनाव लड़ी। छह सीटों पर उसके उम्मीदवार जीते। पूर्वांचल की कई सीटों पर बीजेपी की हार के पीछे मुख्य कारण राजभर वोट थे। राजभर मतदाताओं की अच्छी संख्या वाले बलिया, गाज़ीपुर और आज़मगढ़ में भाजपा के गढ़ दरकने से भी राजभर वोट पर ओमप्रकाश की पकड़ ढीली नहीं हुई है। अनिल राजभर का चेहरा आगे कर सुभासपा के वोटों में सेंध लगाने की रणनीति फेल हो गई। ओमप्रकाश ने सपा गठबंधन से बाहर आने का ऐलान पिछले दिनों किया था।उसके बाज ओमप्रकाश राजभर ने योगी आदित्यानाथ से मुलाकात की। लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद कयास लगाए जा रहे थे कि वो फिर से बीजेपी के साथ जाएंगे। अमित शाह जैसे पारखी की नजर राजभर पर पहले से ही थी। अमित शाह ने उन्हें बुलाया, सीधे एनडीए में एंट्री दे दी। ओमप्रकाश राजभर की एनडीए में वापस पर भाजपा के यूपी नेतृत्व से कुछ भी नहीं पूछा गया।
मऊ 2022 रैलीः जब राजभर सपा प्रमुख अखिलेश के साथ थे
यहां यह बताना जरूरी है कि ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से जेल में बंद अब्बास अंसारी विधायक हैं। अब्बास के पिता मुख्तार अंसारी यूपी के बाहुबली नेता हैं और इस समय वो भी जेल में हैं। केंद्रीय एजेंसी ईडी भी अंसारी परिवार के खिलाफ पसंद नहीं करती है। समझा जाता है कि मुख्तार अंसारी प्रकरण के कारण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओमप्रकाश राजभर की एनडीए में वापसी को पसंद नहीं किया है।
दारा सिंह चौहान की वापसी का मतलब
ओमप्रकाश राजभर की एनडीए में वापसी तो राजभर वोटों के मद्देनजर हुई, जबकि दारा सिंह चौहान की वापसी नोनिया वोटों को भाजपा में लाने की खातिर हुई। बलिया, सलेमपुर, घोसी, ग़ाज़ीपुर जैसी पूर्वांचल की सीटों पर नोनिया समुदाय के मतदाता ऐसी स्थिति में हैं कि वे जिस भी खेमे में जाते हैं, उनकी जीत की संभावना बढ़ जाती है। दारा सिंह चौहान ने 2022 यूपी चुनाव से पहले योगी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था और सपा में शामिल हो गए। दारा घोसी सीट से सपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे थे।
टोपी बदलीः 2022 में दारा सिंह चौहान ने सपा की टोपी पहनी थी। अब वापस भाजपा में।
बीजेपी के कद्दावर चौहान चेहरे फागू चौहान ने अब खुद को मुख्यधारा की राजनीति से अलग कर लिया है। फागू चौहान को बिहार का राज्यपाल बनाया गया जहाँ से उन्हें मणिपुर भेज दिया गया। फागू चौहान मेघालय के भी राज्यपाल हैं। फागू चौहान के मुख्यधारा की राजनीति से दूर जाने के बाद जब दारा सिंह भी सपा में शामिल हो गए तो भाजपा के पास नोनिया जाति में पकड़ रखने वाले नेता की कमी हो गई। मऊ के साथ-साथ बलिया और आज़मगढ़ के नोनिया मतदाताओं पर भी दारा सिंह चौहान का अच्छा प्रभाव है।
पिछले लोकसभा चुनाव में घोसी और गाजीपुर में बीजेपी को बीएसपी से हार मिली थी। यहां तक कि मनोज सिन्हा जैसे कद्दावर नेता को भी ग़ाज़ीपुर में हार का सामना करना पड़ा था। बीजेपी बमुश्किल बलिया और मछलीशहर सीट जीत सकी। ऐसे में पार्टी अब ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा और दारा सिंह चौहान जैसे नेताओं के सहारे राजभर और नोनिया वोटों को जोड़कर जीत की पटकथा लिखना चाहती है।
...तो ग़ाज़ीपुर लोकसभा सीट से कौन
क्या ओमप्रकाश राजभर एनडीए में और दारा सिंह चौहान भाजपा में किसी डील या समझौते के तहत आए हैं? इस बारे में दोनों नेताओं में से किसी की ओर से कुछ नहीं कहा गया है। लेकिन राजभर की एनडीए में वापसी तय होने के साथ ही यह चर्चा भी तेज हो गई है कि उन्हें योगी कैबिनेट में शामिल करने के साथ ही बीजेपी उप चुनाव में गाज़ीपुर लोकसभा सीट सुभासपा को दे सकती है। हालाँकि, ग़ाज़ीपुर में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बेटे अनुभव सिन्हा भी जनसंपर्क में लगे हुए हैं। वहीं दूसरी ओर सपा के पूर्व मंत्री ओमप्रकाश सिंह के भी चुनाव मैदान में उतरने की चर्चा है। वहीं दारा सिंह चौहान को लेकर कहा जा रहा है कि उन्हें योगी कैबिनेट में शामिल किया जा सकता है। बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव में चौहान को घोसी सीट से उम्मीदवार भी बना सकती है।यूपी में बीजेपी की ओबीसी पहुंच अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी के साथ गठबंधन के साथ शुरू हुई थी। दोनों पूर्वी और मध्य यूपी में मजबूत ओबीसी मतदाता आधार वाली पार्टियां हैं।