उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में ज़मीन घोटाला और ग़ैरक़ानूनी तरीके से दलितों की ज़मीन की खरीद और उसके बँदरबाँट के मामले की जाँच के लिए एक कमेटी का गठन कर दिया है।
अपर मुख्य सचिव राजस्व मनोज कुमार सिंह ने जाँच कमेटी के गठन का एलान करते हुए कहा है कि विशेष सचिव राजस्व ज़मीन खरीद मामले को लेकर जाँच करेंगे और एक हफ्ते में रिपोर्ट सौंपेंगे।
क्या है मामला?
बता दें कि 'इंडियन एक्सप्रेस' ने बुधवार के संस्करण में एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें कहा गया था कि नवंबर 2019 में बाबरी मसजिद- राम जन्मभूमि मंदिर विवाद पर फ़ैसला आते ही अयोध्या में ज़मीन खरीदने की होड़ लग गई।
अख़बार के मुताबिक़, महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट (एमआरवीटी) ने राम मंदिर से सिर्फ पाँच किलोमीटर की दूरी पर 21 बीघा यानी लगभग 52 हज़ार वर्ग मीटर ज़मीन नियमों का उल्लंघन कर दलितों से खरीदी।
उत्तर प्रदेश रेवेन्यू कोड रूल्स के अनुसार कोई भी ग़ैर-दलित ज़िला मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति के बगैर किसी दलित से ज़मीन नहीं खरीद सकता। लेकिन एमआरवीटी ने लगभग एक दर्जन दलितों से यह ज़मीन खरीदी। उसके बाद उसने यह जमीन बेच दी।
ट्रस्ट से जमीन खरीदने वालों में विधायक, रेवेन्यू विभाग के लोग, पूर्व आईएएस अफ़सर, ज़िला मजिस्ट्रेट के रिश्तेदार थे।
कांग्रेस का हमला
उत्तर प्रदेश सरकार ने जमीन घोटाले का आदेश इसलिए दिया कि इस मुद्दे पर राजनीति शुरू हो चुकी है और राजनीतिक दल मैदान में कूद प़ड़े हैं।
कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि बीजेपी के कई नेताओं और उत्तर प्रदेश शासन के कुछ अधिकारियों ने अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर के आसपास की जमीनों को औने-पौने दाम पर खरीदा है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर बीजेपी पर तंज और कहा, ''हिंदू सत्य के रास्ते पर चलता है। हिंदुत्ववादी धर्म की आड़ में लूटता है।''
वहीं पार्टी महासचिव और मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'चंदे की लूट' और 'जमीन की लूट' पर जवाब देना चाहिए व पूरे प्रकरण की जाँच करानी चाहिए।
कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार को ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद नेताओं और अधिकारियों की ओर से ज़मीन की खरीददारी का मुद्दा राज्यसभा में उठाने की कोशिश की, लेकिन सभापति एम वेंकैया नायडू ने उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी।