भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार पर यादव और मुस्लिमों के प्रति पूर्वाग्रह का आरोप और भी गंभीर हो गया है। दैनिक भास्कर ने खबर दी है कि मुरादाबाद को छोड़कर बाकी उपचुनाव वाले इलाकों से यादव और मुस्लिम अफसरों को योगी सरकार हटा रही है। योगी सरकार का मानना है कि लोकसभा चुनाव में यादव और मुस्लिम अफसरों ने मिलकर भाजपा को हरा दिया है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बुधवार को इस खबर और इससे संबंधित वीडियो को एक्स पर शेयर करते हुए भाजपा और योगी पर जबरदस्त हमला बोला है।
'जनता भाजपा को हराने मैदान में उतरी'
अखिलेश यादव ने एक्स पर बुधवार को लिखा- जब उपचुनावों में भी भाजपा को हराने के लिए जनता फ़ील्ड में उतर चुकी है तो भाजपा कुछ अधिकारियों को हटाने का कितना भी शासकीय-प्रशासकीय नाटक कर ले, कोई उनको पराजय से रोक नहीं सकता। देखना ये भी है कि इनकी जगह जो अफ़सर आएंगे, उनकी निष्पक्षता पर मोहर कौन लगाएगा।अखिलेश ने आगे लिखा है- भाजपा उपचुनावों में अपनी 10/10 की हार के अपमान से बचने के बहाने ना ढूँढे। अगर भाजपा जन-विरोधी नहीं होती तो आज ये दिन नहीं देखने पड़ते। महँगाई, बेरोज़गारी, बेकारी, पुलिस भर्ती, नीट परीक्षा, महिला-सुरक्षा, संविधान और आरक्षण की रक्षा, नज़ूल भूमि जैसे मुद्दों से लड़ने के लिए भाजपा कब और किसे नियुक्त करेगी? कुछ विशेष अधिकारियों को चुनावी ज़िम्मेदारी से हटाने की बात कहकर, भाजपाइयों ने ये बात स्वीकार कर ली है कि उनकी सरकार में शायद कुछ चुनावी घपले अधिकारियों के स्तर पर होते हैं। ये भाजपा की अपनी सरकार के साथ-ही-साथ चुनाव आयोग के ऊपर भी… चुनाव आयोग स्वत: संज्ञान ले।
यूपी में 10 उपचुनाव को लेकर भाजपा के अंदर भी राजनीति गरमाई हुई है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की अगुआई में असंतुष्ट गुट ने लोकसभा चुनाव में राज्य में मिली करारी हार के लिए योगी को जिम्मेदार ठहराते हुए हटाने की मुहिम चल रही है। मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि भाजपा आलाकमान यानी मोदी-शाह ने असंतुष्टों को उपचुनाव के नतीजे आने तक रुकने को कहा है। इस बीच योगी ने अपनी राजनीति को आगे बढ़ाते हुए खुद को कट्टर हिन्दू नेता के रूप में स्थापित करने की मुहिम तेज कर दी है। हाल के उनके कई फैसले इस तरफ इशारा भी करते हैं।
योगी ने पिछले दिनों यूपी विधानसभा में मुस्लिमों पर अप्रत्यक्ष तंज करते हुए उन्हें सद्भावना वाले बताया था। उन्होंने कहा कि सद्भावना वालों के लिए वो बुलेट ट्रेन चलाएंगे। विधानसभा में उस समय लखनऊ के अकबरगंज में एक पूरी बस्ती को बुलडोजर से गिराने और नजूल भूमि पर बहस हो रही थी। योगी अपने मुस्लिम-यादव विरोधी बयानों के लिए जाने जाते हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद सिर्फ उनकी ही नहीं भाजपा की खीझ भी बढ़ गई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में 62 सीटें जीतने वाली भाजपा इस बार यूपी में महज 33 सीटें ही जीत सकी। इसका असर देश की राजनीति पर पड़ा। भाजपा केंद्र में अपने दम पर सरकार बनाने में नाकाम रही, तब उसने जेडीयू और टीडीपी की मदद से सरकार बनानी पड़ी। उसके बाद से मोदी सरकार को कई फैसले वापस लेने पड़े।
उपचुनाव कुरुक्षेत्र बनाः लोकसभा चुनाव के बाद खाली फूलपुर, गाजियाबाद, मझवां, खैर, मीरापुर, कुंदरकी, करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी और सीसामऊ सीटों पर उपचुनाव होना है। सपा के चार विधायकों के सांसद और एक विधायक के दोषी ठहराए जाने के कारण पांच सीटें खाली हुई हैं, जबकि भाजपा के कोटे से तीन विधायक सांसद बन गए हैं। इसके अलावा एक सीट आरएलडी विधायक के सांसद बनने और एक सीट निषाद पार्टी के विधायक के बीजेपी से सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई है। इस प्रकार, पांच सीटें सपा के कोटे की हैं, जबकि पांच सीटें भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि उपचुनाव को कितना महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
यूपी उपचुनाव की तैयारी के लिए सीएम योगी ने पहले अपने 30 मंत्रियों की अपनी कमेटी बनाई थी, लेकिन बाद में तय किया गया कि सरकार और संगठन के शीर्ष पांच नेता जिम्मेदारी संभालेंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ को अयोध्या और अंबेडकर नगर जिले में आने वाली कटेहरी और मिल्कीपुर विधानसभा सीट की जिम्मेदारी मिली है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को फूलपुर और मंझवा जबकि ब्रजेश पाठक को सीसामऊ और करहल सीट का प्रभार दिया गया है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी को कुंदरकी और मीरापुर की जिम्मेदारी दी गई है जबकि संगठन महासचिव धर्मपाल सिंह को गाजियाबाद और खैर सीट की जिम्मेदारी दी गई है।
सीएम योगी आदित्यनाथ को अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा और अंबेडकरनगर की कटेरी विधानसभा की जिम्मेदारी मिली है। 2022 में ये दोनों सीटें सपा ने जीती थीं। कठेरी से लालजी वर्मा विधायक चुने गए थे, जबकि मिल्कीपुर से अवधेश प्रसाद जीते थे, लेकिन अब दोनों सपा विधायक सांसद बन गए हैं। एसपी कोटे की इन दोनों सीटों पर कमल खिलाने की जिम्मेदारी सीएम योगी को सौंपी गई है। मिल्कीपुर सीट के राजनीतिक अस्तित्व में आने के बाद से भाजपा ने इस पर केवल दो बार जीत हासिल की है, एक बार 1991 में और फिर 2017 में। 1991 में भाजपा केवल एक बार कटेरी सीट जीतने में सफल रही।
ये दोनों सीटें योगी आदित्यनाथ ने चुनौती के तौर पर ली हैं। दरअसल, फैजाबाद लोकसभा सीट भाजपा अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने के बाद भी हार गई। लेकिन अयोध्या की हार के लिए सीधे मुख्यमंत्री को जिम्मेदार ठहराया गया। यही वजह है कि मिल्कीपुर यानी अयोध्या विधानसभा उपचुनाव में जीत दर्ज करवाकर योगी तमाम आरोपों का जवाब देना चाहते हैं, जो असंतुष्ट भाजपाई उनके ऊपर लगा रहे हैं। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक और कुछ विधायकों ने योगी के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है।
यूपी की राजनीति में इस घटनाक्रम से यह साफ हो गया है कि कुल मिलाकर योगी आदित्यनाथ अब अपनी कुर्सी के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। उपचुनाव होने तक योगी आदित्यनाथ की कुर्सी सलामत है। केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक उपचुनाव के नतीजों का इंतजार कर रहे हैं। योगी आदित्यनाथ अगर अयोध्या (मिल्कीपुर) और कटेहरी की बाजी हारते हैं तो इस्तीफा देने के अलावा उनके पास और क्या रास्ता होगा। यही वजह है कि उन्होंने खुद को आरएसएस की चाहत के अनुरूप कट्टर हिन्दू नेता के रूप में स्थापित करना शुरू कर दिया है। तमाम मीडिया रिपोर्टों में बार-बार कहा जा रहा है कि मोदी के हटने के बाद योगी आदित्यनाथ ही पीएम बनेंगे। क्योंकि वो संघ की पसंद हैं। योगी को यूपी का सीएम भी मोदी ने आरएसएस के दबाव में बनाया था।