क्या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का रुख तालिबान के प्रति नरम हो रहा है? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि एक बेहद अहम और दिलचस्प घटनाक्रम में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अपने एक बयान से 'तालिबान' शब्द हटा दिया है।
शुक्रवार यानी 27अगस्त को जारी एक बयान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अफ़ग़ानिस्तान की जनता से अपील की है कि वे 'अपने देश या किसी दूसरे देश में आतंकवादियों के कामकाज का समर्थन न करें।'
सुरक्षा परिषद के इसके पहले 16 अगस्त को जारी बयान में 'तालिबान' शब्द का इस्तेमाल किया गया था। उसमें अफ़ग़ानिस्तान की जनता से अपील की गई थी कि वे 'तालिबान या किसी दूसरे अफ़ग़ान गुट या व्यक्ति के अपने देश या किसी दूसरे देश में आतंकवादी कामकाज का समर्थन न करें।'
यानी नए बयान में 'तालिबान' शब्द को हटा दिया गया है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरउद्दीन ने इसकी पुष्टि की है। उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि 'टी' शब्द गायब हो चुका है। उन्होंने इसके साथ ही वह बयान भी इस ट्वीट में अटैच किया है।
क्या है बयान में?
तालिबान के काबुल पर नियंत्रण के एक दिन बाद 16 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से बयान जारी करते हुए कहा था, "सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवाद से लड़ने के महत्व की पुष्टि की है और यह भी माना है कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अफ़ग़ानिस्तान के किसी भी क्षेत्र को किसी भी देश को धमकाने या उस पर हमले के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। यहाँ तक कि तालिबान या किसी भी अफ़ग़ान समूह या किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य देश में सक्रिय आतंकी का समर्थन नहीं करना चाहिए।"
काबुल एयरपोर्ट पर बम धमाकों में 150 से अधिक लोगों के मारे जाने के बाद तिरुमूर्ति ने परिषद की ओर से बयान जारी किया और इसमें हमले की निंदा की थी। इस बयान में 16 अगस्त वाले बयान का भी ज़िक्र था लेकिन उसमें 'तालिबान' का कहीं कोई ज़िक्र नहीं था।
इसमें लिखा था, "सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवाद का मुक़ाबला करने के महत्व को दोहराया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अफ़ग़ानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकी देने या हमला करने के लिए न हो, और किसी भी अफ़ग़ान समूह या व्यक्ति को किसी भी देश के क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का समर्थन नहीं करना चाहिए।"
तालिबान से नरमी का संकेत?
तालिबान को संदर्भ के तौर पर हटाना दिखाता है कि भारत समेत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य तालिबान को एक 'स्टेट एक्टर' के रूप में देख रहे हैं।
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष पद एक महीने का होता है। भारत को अगस्त महीने की अध्यक्षता मिली है।
इससे यह साफ होता है कि भारत का रवैया तालिबान के प्रति नरम हो रहा है, क्योंकि बयान में उसका नाम नहीं है। भले ही यह बहुपक्षीय मामला हो, लेकिन भारत के रवैए में बदलाव के रूप में देखा जा रहा है।
क्या कहना है भारत का?
भारत उन देशों में से है, जिसने अब तक अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण पर अपना स्टैंड साफ नहीं किया है।
पाकिस्तान, चीन और रूस ने जहाँ तालिबान के प्रति दोस्ताना रिश्ते रखने की बात कही है, वही ब्रिटेन, जर्मनी और यूरोपीय संघ ने कहा है कि तालिबान से बात की जा सकती है।
भारत अब तक चुप है। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान से अपने नागरिकों के अलावा कुछ अफ़ग़ान नागरिकों को भी बाहर निकाला है और अपने यहां शरण दी है।
भारत का दूतावास अस्थायी तौर पर बंद है।