अमेरिकी चुनाव अब निर्णायक दौर में पंहुच गया है। डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन ने राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों पर मुहर लगा दी हैं। इस सम्मेलन में कमला हैरिस पर सबकी निगाहें थी। डेमोक्रेटिक पार्टी के तीन दिन तक चले वर्चुअल सम्मेलन की अंतिम रात जब कमला हैरिस ने पार्टी की उम्मीदवारी स्वीकार करते हुए अपना भाषण दिया, यह स्पष्ट हो गया कि वह परिपक्व, मंझी हुई कुशल राजनेता हैं जो जानती हैं कि अमेरिका जैसे बहु-नस्लीय समाज में क्या स्वीकार किया जाता है।
कोरोना बनेगा मुद्दा
कमला हैरिस ने कहा कि 'डोनल्ड ट्रंप ऐसे राष्ट्रपति हैं जो महामारी जैसी आपदा को राजनीतिक हथियार में तब्दील कर देते हैं।' अमेरिका में कोरोना से मरने वालों की तादाद 1,70,000 हो चुकी है। कमला हैरिस ने कहा, 'डोनल्ड ट्रंप के नेतृत्व की नाकामी से लोगों की जानें गई हैं और रोजी-रोटी का ज़रिया गया है।'लेकिन कमला हैरिस का हमला सिर्फ प्रशासन की नाकामी तक सीमित नहीं था, उन्होंने अमेरिकी समाज की दुखती रग पर हाथ रख कर नस्लीय भेदभाव की वजह से कोरोना के ज़्यादा बुरे प्रभाव की ओर लोगों का ध्यान खींचा। उन्होंने कहा,
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“अश्वेत, लैटिनो और अमेरिका के मूल निवासी समुदायों के लोगों की मौत अधिक हो रही है। और यह महज संयोग नहीं है, बल्कि यह अमेरिकी समाज में व्याप्त नस्लीय भेदभाव का नतीजा है।”
कमला हैरिस, उप राष्ट्रपति उम्मीदवार, अमेरिका
कमला हैरिस ने जो कुछ कहा, वह अमेरिका में लोग निजी तौर पर पहले से कहते आ रहे हैं, सार्वजनिक रूप से भले ही इस पर चुप्पी साधते रहे हों। कोरोना वायरस या इसके पहले के किसी महामारी की चपेट में अश्वेत, लैटिनो और मूल निवासी इसलिए आते हैं कि वे गरीब हैं। इन समुदायों के ज़्यादातर लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा नहीं होता, ये छोटे शहरों, दड़बों में रहते हैं, ब्लू कॉलर जॉब में हैं यानी छोट-मोटा काम करते हैं, कम पैसे कमाते हैं, कम शिक्षित हैं।
कोरोना
जिस देश में 30 लाख से ज़्यादा लोग कोरोना से प्रभावित हुए हों और 1,70,000 लोग मर गए हों, वहां प्रशासन का कोई आदमी या उनकी पार्टी का कोई स्टार प्रचारक राष्ट्रपति का ज़ोरदार बचाव नहीं कर पाएगा।डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन ने उसी कार्यक्रम में ट्रंप पर ज़ोरदार हमला करते हुए कहा कि वे लोगों को वेंटीलेटर और पीपीई किट जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं दे पाए।
इस वर्चुअल सम्मेलन में भाग लेते हुए एक दूसरे बड़े डेमोक्रेट नेता और दो बार प्राइमरी का चुनाव लड़ चुके बर्नी सैंडर्स ने भी ज़ोरदार हमला किया। उन्होंने कहा, 'यह वह प्रशासन है जो अपने स्वास्थ्यकर्मियों को पीपीई किट नहीं दे सका, रोगियों को वेंटीलेटर नहीं दे सका।'
स्वास्थ्य सेवा का मुद्दा
बता दें कि अमेरिका की स्वास्थ्य सेवा निजी हाथों में है, बग़ैर स्वास्थ्य बीमा कार्ड से सर्दी-खांसी तक का इलाज नहीं हो सकता, क्योंकि ये अस्पताल बहुत ही महंगे होते हैं। अमेरिका में लगभग 30 प्रतिशत लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा नहीं है। बराक ओबामा ने जब सस्ती बीमा स्कीम शुरू की थी तो रिपब्लिक पार्टी ने उसका जम कर विरोध इस आधार पर किया था कि इससे गंभीर रोग का इलाज नहीं हो सकता, क्योंकि बीमा की रकम कम है।ट्रंप और दूसरे रिपब्लिकन ने 'ओबामा केयर’ कह कर इसका मजाक उड़ाया था, अंत में यह बिल पारित नहीं हो सका। बराक ओबामा ने राष्ट्रपति के रूप में अपने अंतिम भाषण में इसे अपनी बड़ी नाकामी बताया था।
डोनल्ड ट्रंप एक बार फिर इस 'ओबामा केयर' का मजाक उड़ा रहे हैं, इसका विरोध कर रहे हैं। बर्नी सैंडर्स के 'सबके लिए स्वास्थ्य' के प्रस्ताव का सैंडर्स ने यह कह कर मखौल उड़ाया कि 'वह वामपंथी हैं और अमेरिका को वामपंथ की ओर ले जाएंगे', जिससे अमेरिका चौपट हो जाएगा।
रिपब्लिकन नेता छोड़ रहे हैं ट्रंप का साथ
ट्रंप भले ही मजाक उड़ाने की कोशिश करें, पर हकीकत यह है कि इस सम्मेलन में डेमोक्रेटिक पार्टी ने जो एकजुटता दिखाई है वह इस बात का सबूत है कि उसे लग गया है कि ट्रंप के बर्ताव को लेकर लोगों में ग़ुस्सा है। कई रिपब्लिकन नेता भी ट्रंप का साथ छोड़ रहे हैं और ट्रंप को हराया जा सकता है। यही कारण है कि ट्रंप की तुलना में बाइडन को एक गंभीर और सबको साथ लेकर चलने वाले नेता की तरह पेश किया जा रहा है। बाइडन ने कहा कि वो डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार है पर वह पूरे अमेरिका के राष्ट्रपति होंगे, उनके भी जो उन्हे वोट नहीं देंगे ।
डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ़ से ट्रंप को एक नाकाम राष्ट्रपति के रूप में चित्रित करने की कोशिश की जा रही है और उनके कामकाज का रिकॉर्ड उनके ख़िलाफ़ जाता है।
नाकाम राष्ट्रपति?
वर्चुअल सम्मेलन में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि डोनल्ड ट्रंप नाकाम राष्ट्रपति हैं, उन्होंने अमेरिका को संकट से बाहर ले जाने की कोई कोशिश नहीं की, इसके उलट अमेरिका के लिए मुसीबतें बढ़ाई हैं। अब समय आ गया है कि अमेरिकी नया राष्ट्रपति चुने और ट्रंप को दूसरा मौक न दें।राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के 'अमेरिका फर्स्ट' नारे में आर्थिक विकास की बात कम और आक्रामक राष्ट्रवाद की हनक अधिक है। ट्रंप ने इसी अमेरिका फर्स्ट के तहत चीन को ठीक करने की बात कही और भारत जैसे देशों पर भी दबाव बनाया।
पर अब उनसे पूछा जा रहा है कि चार साल के 'अमेरिका फर्स्ट' के बावजूद चीन से व्यापार असंतुलन घटने के बजाय बढ़ता क्यों जा रहा है। चीन को होने वाले सोयाबीन जैसे कृषि उत्पादों का निर्यात क्यों कम हो रहा है और क्यों चीनी सूअर का मांस अमेरिका में महंगा बिक रहा है, ट्रंप को इन बहुत ही छोटे और बुनियादी सवालों का जवाब देना पड़ेगा। इन सवालों के जवाब कठिन हैं।