परमाणु सौदे के लिए ट्रंप का ईरान को ख़त; बातचीत होगी या टकराव बढ़ेगा?

08:55 pm Mar 07, 2025 | सत्य ब्यूरो

क्या फिर से अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु क़रार होगा? अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने परमाणु समझौते के लिए बातचीत की इच्छा जताई है। उन्होंने शुक्रवार को खुलासा किया है कि इसके लिए उन्होंने गुरुवार को ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई को एक पत्र भेजा है। शुक्रवार को फॉक्स बिजनेस नेटवर्क के साथ एक इंटरव्यू में ट्रंप ने यह उम्मीद जताई कि ईरान बातचीत की मेज पर आएगा। उन्होंने कहा, 'मैंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि आप बातचीत करेंगे, क्योंकि यह ईरान के लिए बहुत बेहतर होगा।' हालाँकि, ट्रंप ने वैकल्पिक कार्रवाइयों की चेतावनी भी दी और कहा, 'दूसरा विकल्प यह है कि हमें कुछ करना होगा, क्योंकि उन्हें परमाणु हथियार नहीं रखने दे सकते।'

ट्रंप ने आगे कहा, 'यदि ईरान बातचीत नहीं करता, तो उनके लिए यह बहुत बुरा होगा। ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं हो सकते। हमारे पास अन्य विकल्प भी हैं।' यह बयान उनकी उस लंबे समय से चली आ रही नीति को दिखाता है जिसमें वह ईरान को परमाणु हथियारों से लैस होने से रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं। व्हाइट हाउस ने अभी तक न तो पत्र के बारे में पुष्टि नहीं की और न ही इस बारे में कि यह पत्र सीधे खामेनेई को संबोधित था या नहीं। इस अनिश्चितता से यह सवाल उठता है कि क्या यह वास्तव में तनाव कम करने की दिशा में एक ठोस क़दम है या केवल एक प्रतीकात्मक संकेत।

ईरान और अमेरिका के बीच कूटनीतिक संबंध 2018 से तनावपूर्ण बने हुए हैं। यह वही साल था जब ट्रंप ने संयुक्त व्यापक कार्य योजना यानी ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका को बाहर कर लिया और कड़े प्रतिबंध फिर से लागू कर दिए। इस संदर्भ में ट्रंप का यह नया प्रस्ताव एक तरफ़ बातचीत का रास्ता खोलता दिखता है, लेकिन उनकी चेतावनी यह भी संकेत देती है कि वह सैन्य कार्रवाई या अन्य दबाव के तरीक़ों से पीछे नहीं हटेंगे।

इसी बीच, रूस के उप विदेश मंत्री सर्गेई रयाबकोव ने शुक्रवार को ईरानी राजदूत काज़ेम जलाली के साथ ईरान के परमाणु कार्यक्रम के मुद्दे को सुलझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों पर चर्चा की। यह घटनाक्रम दिखाता है कि ईरान का परमाणु मुद्दा केवल अमेरिका और ईरान के बीच का द्विपक्षीय मामला नहीं है, बल्कि इसमें वैश्विक शक्तियों की भी भूमिका है। पहले ईरान परमाणु समझौते का हिस्सा रहा रूस संभवतः इस स्थिति में मध्यस्थता या अपने हितों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।

ईरान परमाणु समझौता क्या था?

अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु समझौते का मुद्दा दशकों से वैश्विक कूटनीति और क्षेत्रीय सुरक्षा का एक केंद्रीय विषय रहा है। संयुक्त व्यापक कार्य योजना यानी जेसीपीओए के रूप में जाने जाना वाला ईरान परमाणु समझौता 2015 में अमेरिका व ईरान और रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस व जर्मनी के बीच हस्ताक्षरित किया गया था। इसका उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करना था। इसके बदले में ईरान को आर्थिक प्रतिबंधों से राहत देने का वादा किया गया। 

यह समझौता तब तक प्रभावी रहा जब तक डोनाल्ड ट्रंप ने 2018 में अमेरिका को इससे बाहर नहीं निकाल लिया। ट्रंप ने कहा था कि यह ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से पूरी तरह रोकने में सक्षम नहीं था।

बहरहाल, ट्रंप का यह ताज़ा क़दम उनकी पुरानी रणनीति का हिस्सा लगता है, जिसमें वह एक तरफ़ प्रतिबंधों में राहत जैसे प्रलोभन देते हैं और दूसरी तरफ़ सख़्त कार्रवाई की धमकी। यह नज़रिया उनके पहले कार्यकाल में भी देखा गया था, जब उन्होंने उत्तर कोरिया के साथ भी इसी तरह की रणनीति अपनाई थी। लेकिन ईरान के साथ यह रणनीति कितनी सफल होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि तेहरान इस प्रस्ताव को कैसे लेता है। खामेनेई और ईरानी नेतृत्व ने बार-बार अमेरिका पर भरोसा न करने की बात कही है, खासकर 2018 के बाद से।

ट्रंप का यह पत्र और उनके बयान अंतरराष्ट्रीय समुदाय, खासकर इसराइल और सऊदी अरब जैसे सहयोगियों के लिए भी एक संदेश है, जो ईरान के परमाणु महत्वाकांक्षाओं से चिंतित हैं। यदि ईरान बातचीत से इनकार करता है तो ट्रंप के पास सैन्य विकल्प चुनने का दबाव बढ़ सकता है। दूसरी ओर, अगर बातचीत शुरू होती है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप प्रशासन ईरान को क्या पेशकश करता है और क्या यह समझौता ईरान परमाणु समझौते से अलग होगा।

यह घटनाक्रम मध्य पूर्व की भू-राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है, लेकिन अभी यह साफ़ नहीं है कि यह शांति की ओर ले जाएगा या टकराव को और गहरा करेगा।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)