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चुनाव आयुक्तों पर लाए गए नए विधेयक को रद्द कर दिया जाना चाहिएः जस्टिस नरीमन 

चुनाव आयुक्तों पर लाए गए नए विधेयक को रद्द कर दिया जाना चाहिएः जस्टिस नरीमन 

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन एफ नरीमन ने राज्यसभा से पारित मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त  (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 पर कड़ी टिप्पणी की है। 

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन एफ नरीमन ने राज्यसभा से पारित मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त  (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 पर कड़ी टिप्पणी की है। 

राज्यसभा से दो दिन पहले ही पारित हुए इस विधेयक को लेकर उन्होंने कहा है कि इस विधेयक को को रद्द कर दिया जाना चाहिए। इसके पीछे उन्होंने तर्क देते हुए कहा है कि यह विधेयक चुनाव आयुक्तों की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से खतरे में डालता है। 

कानून से जुड़ी खबरों की वेबसाइट लाईव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन एफ नरीमन ने कहा है कि हमें अब यह देखना होगा कि यह विधेयक कैसे एक कानून बनता है और मुझे यकीन है कि इसे चुनौती दी जाएगी। 

उन्होंने कहा कि  मेरे अनुसार, इसे एक मनमाने कानून के रूप में खारिज कर दिया जाना चाहिए क्योंकि यह चुनाव आयोग के कामकाज की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से खतरे में डालता है। 

ये बातें उन्होंने 30वां बंसारी शेठ एंडोमेंट व्याख्यान में कही। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा है कि यह विधेयक चुनाव आयोग के लिए सबसे बड़े खतरे से भरा है। मुझे इस बात की पूरी उम्मीद है कि इसके कानून बनने के बाद जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जाएगा तब इसे खारिज कर दिया जाएगा। 

इस व्याख्यान में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच द्वारा अनूप बरनवाल के मामले में पारित फैसले के बारे में बोलते हुए कहा कि, इस ऐतिहासिक फैसले में, कोर्ट ने आदेश दिया था कि, जब तक संसद एक कानून पारित नहीं करती, तब तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता (या विपक्ष के नेता) की एक समिति की सलाह पर की जाएगी। 

जस्टिस नरीमन ने कहा कि कोर्ट तय करे कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कैसे हो। यह बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि चुनाव आयुक्त पक्षपातपूर्ण होंगे, तो कोई स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं होगा, और कोई लोकतंत्र नहीं होगा।

लाईव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें बोलते हुए जस्टिस नरीमन ने कहा कि देश में हाल की कुछ घटनाएं बहुत परेशान करने वाली हैं। उन्होंने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि सबसे पहले, उन्होंने प्रधानमंत्री के बारे में डॉक्यूमेंट्री प्रसारित करने के बाद बीबीसी के खिलाफ किए गए कर छापों का जिक्र किया। 

उन्होंने कहा कि सबसे पहले, साल की शुरुआत में बीबीसी की यह डॉक्यूमेंट्री थी, जो हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री के बारे में बात कर रही थी, जिसे तुरंत प्रतिबंधित कर दिया गया। प्रतिबंध के बाद टैक्स छापे डालकर बीबीसी को परेशान किया गया। 

हमारा प्रहरी मारा जाता है तो कुछ भी नहीं बचेगा 

लाईव लॉ की रिपोर्ट कहती है कि अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा कि कोर्ट को मीडिया पर हमलों के खिलाफ कार्रवाई में तेजी लानी चाहिए। जैसे ही मीडिया पर कोई हमला होता है कोर्ट को इसे तुरंत रोकने के लिए सतर्क रहना चाहिए।  

उन्होंने कहा कि जिस क्षण मीडिया पर कोई हमला होता है, कोर्ट को तुरंत इसे रोकने के लिए सतर्क रहना चाहिए। अगर आप पाते हैं कि कुछ स्वतंत्र रिपोर्टिंग के कारण कुछ ऐसा हुआ है, जिसके परिणाम स्वरूप कर छापा पड़ा है तो केवल उसी कारण से आपको कहना होगा कि टैक्स छापेमारी अवैध और असंवैधानिक है।  

जस्टिस नरीमन ने कहा कि यह एकमात्र तरीका है, जिससे आप मीडिया और इस देश की रक्षा कर सकते हैं। अन्यथा, आप समाप्त हो गए। मीडिया को लेकर कहा कि यह प्रहरी है और यह हमारा प्रहरी है और यदि हमारा प्रहरी मारा जाता है तो कुछ भी नहीं बचेगा। 

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