हफ़्ते भर में 22 छात्रों की ख़ुदकुशी से तेलंगाना में हड़कंप

06:03 pm Apr 27, 2019 | अरविंद यादव - सत्य हिन्दी

तेलंगाना का शिक्षा जगत स्तब्ध है। छात्र ही नहीं, अभिभावक, शिक्षक और दूसरे लोग भी गमगीन, शांत और परेशान हैं, वे क्षुब्ध भी हैं। तेलंगाना में इंटरमीडिएट परीक्षा में गड़बड़ी होने की वजह से 22 छात्रों ने ख़ुदकुशी कर ली है, जिससे ऐसा लगता है मानो पूरी शिक्षा व्यवस्था ही फेल हो गई है। कॉरपोरेट शिक्षा व्यवस्था, अभिभावकों की अपेक्षाएँ और उस बोझ को ढोने में नाकाम छात्रों की निराशा को राज्य की लुंजपुंज परीक्षा प्रणाली और लापरवाही ने कई गुणा बढ़ा दिया। लेकिन इतनी बड़ी घटना पर देश में कोई हलचल नहीं हुई है, टेलीविज़न चैनलों पर इस पर कोई बहस नहीं हो रही है, सोशल मीडिया भी चुप है, मानो यह कोई बड़ी बात नहीं है। इससे कई सवाल खड़े होते हैं। 

आरोप है, इंटर परीक्षा बोर्ड में इस बार बड़े पैमाने पर गड़बड़ियाँ हुई हैं। परीक्षा के परिणाम घोषित करने से पहले ही अख़बारों में यह ख़बरें आयी थीं कि कई विद्यार्थियों की उत्तर पुस्तिकाएँ गायब हो गयी हैं। बोर्ड ने इन ख़बरों को झूठा क़रार दिया। लेकिन जैसे ही परीक्षा परिणाम घोषित हुए, अनियमितताओं की बात ने तूल पकड़ लिया। जिन विद्यार्थियों के पहले साल में यानी ग्यारहवीं में शानदार नंबर थे, उनमें में से कई बारहवीं में फेल हो गए। 

अनियमितताएँ

कुछ मामले ऐसे भी सामने आए जहाँ विद्यार्थी को परीक्षा में ग़ैर हाज़िर बताया गया, लेकिन उसे पास घोषित किया गया। कई विद्यार्थी ऐसे भी हैं जिनके शून्य अंक मिले। अगर बात इस साल के इंटर परीक्षा परिणामों की की जाय तो अनियमितता का एक बढ़िया उदाहरण मंचारियाल ज़िले की जी. नव्या का है। 

बारहवीं की परीक्षा में नव्या को तेलुगु के पेपर में शून्य अंक मिला, जबकि उसे ग्यारहवीं में तेलुगु में 90 अंक मिले थे। नव्या का दावा है कि अगर उसकी उत्तर पुस्तिका की दुबारा जांच करवाई गई तो उसे 90 से कम अंक नहीं मिलेंगे।

परीक्षा परिणाम घोषित होने के कुछ ही दिनों में 22 विद्याथियों के आत्महत्या कर लेने से राज्य भर में कोहराम मच गया। कई सारे विद्यार्थी और उनके अभिभावक और शिक्षक सड़कों पर आ गये। इंटर परीक्षा बोर्ड और राज्य सरकार के ख़िलाफ़ उग्र विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। विद्यार्थियों की आत्महत्या के लिए सीधे तौर पर इंटर बोर्ड के अधिकारियों की लापरवाही को ज़िम्मेदार ठहराया गया। इंटर बोर्ड के आला अधिकारियों और शिक्षा मंत्री, शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों को बर्ख़ास्त करने की मांग उठी। इतना ही नहीं, फेल हुए सभी विद्यार्थियों की उत्तर-पुस्तिकाओं की दुबारा जांच करवाने की माँग हुई। 

कार्रवाई का भरोसा

विद्यार्थी संगठनों ने सरकार से ख़ुदकुशी करने वाले विद्यार्थियों  के परिजनों को 50 लाख रुपये की मुआवजा राशि देने की भी माँग की है। कुछ अभिभावकों ने उच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया है। विद्यार्थियों और अभिभावकों के आंदोलन को उग्र होता देखकर राज्य सरकार ने फेल हुए सभी विद्यार्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं की दुबारा जांच करवाने का भरोसा दिलाया है। साथ ही यह भी संकेत दिया है कि मामले की जांच करवायी जाएगी और जो अधिकारी दोषी पाये जाएंगे, उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होगी। 

मुआवजे पर चुप्पी

लेकिन ख़ुदकुशी करने वाले विद्यार्थियों के परिजनों को मुआवज़ा देने की मांग पर सरकार की चुप्पी से सभी विद्यार्थी संगठन काफी नाराज़ हैं और इनका आंदोलन जारी है। सभी विद्यार्थी हर दिन सड़कों पर या सरकारी दफ़्तरों के सामने धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। विद्यार्थियों को सभी विपक्षी पार्टियों- कांग्रेस, टीडीपी, बीजेपी और वामपंथी पार्टियों का पुरज़ोर समर्थन मिल रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस साल विद्यार्थियों की खुदकुशी के सबसे ज़्यादा मामले सामने आये हैं। और तो और, इंटर बोर्ड ने खुद अनियमितताओं की बात स्वीकार की है, जिससे समूचा शिक्षा विभाग कटघरे में खड़ा है। सरकार ने भी कोई सख़्त कार्रवाई  नहीं की है। इससे भी विद्यार्थी काफी ग़ुस्साए हुए हैं। 

दक्षिण के सभी राज्यों विशेषकर आंध्र, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में कई अभिभावक सातवीं या आठवीं से ही अपने बच्चों को इंजीनियरिंग या मेडिकल कोर्सों के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी में लगा देते हैं।

दक्षिण के सभी राज्यों में शिक्षा व्यवस्था भी कॉरपोरेट हो चली हैं। बच्चों को छोटी उम्र से आईआईटी, आईआईएम, एम्स जैसे संस्थानों में दाखिले के लिए तैयार करना शुरू करा दिया जाता है। प्रतिष्ठित उच्च शिक्षा संस्थाओं में दाखिले के लिए काफी तगड़ी प्रतियोगिता होती है। ऐसे में तगड़ी तैयारी के बाद भी दाख़िला न मिलने से कई विद्यार्थी काफी मायूस होते हैं। कई शिक्षाविद कॉर्पोरेटर शिक्षा व्यवस्था के ख़िलाफ़ हैं। 

अपेक्षाओं का बोझ

लेकिन इस साल जिस तरह से विद्यार्थियों की ख़ुदकुशी के मामले सामने आए हैं, उसने  सिर्फ तेलंगाना में ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण में शिक्षा व्यवस्था पर कई तीखे सवाल खड़े कर दिए हैं। मनोचिकित्सक डॉ. वीरेंदर चेंनोजु के मुताबिक़, दक्षिण भारत में सातवीं और आठवीं से ही अभिभावक बच्चों पर डॉक्टर या इंजीनियर बनने के लिए दबाव डालना शुरू कर देते हैं। बच्चों का दाख़िला कॉर्पोरेटर कॉलेज में कराया जाता है।

डॉ. वीरेंदर चेंनोजु, मनोचिकित्सक के मुताबिक़, ज़्यादातर बच्चों में डिप्रेशन का कारण माता-पिता की अपेक्षाएँ ही हैं, जिन्हें पूरा करना मुश्किल जान पड़ता है। कुछ मामले ऐसे भी देखने में आये हैं जहां विद्यार्थियों ने इस वजह से खुदकुशी की क्योंकि टॉप नहीं कर पाए जबकि उनके नंबर भी शानदार थे।