तेलंगाना जाति सर्वेः 46.25% ओबीसी, लेकिन राजनीति पर कब्जा ऊंची जाति का
तेलंगाना में जाति सर्वेक्षण से पता चला है कि राज्य की 46.25 प्रतिशत (1,64,09,179 लोग) आबादी पिछड़ा वर्ग से है। इस आंकड़े से राज्य के राजनीतिक दल हैरान हैं। राज्य के नागरिक आपूर्ति मंत्री एन उत्तम कुमार रेड्डी ने सामाजिक-आर्थिक, शैक्षिक, रोजगार, राजनीतिक और जाति (एसईईईपीसी) सर्वेक्षण को जारी किया। सर्वे के अनुसार, तेलंगाना की आबादी में अनुसूचित जाति (एससी) का हिस्सा 17.43 प्रतिशत (61,84,319) और अनुसूचित जनजाति का हिस्सा 10.45 प्रतिशत (37,05,929) है।
यह रिपोर्ट 4 फरवरी को राज्य कैबिनेट के सामने पेश की जाएगी और बहस के लिए विधानसभा के विशेष सत्र में रखी जाएगी।
तेलंगाना जाति सर्वे से पहले राज्य में मुस्लिम आबादी 10 फीसदी बताई जा रही थी। लेकिन सर्वे में यह 12 फीसदी से ज्यादा सामने आई है। तेलंगाना में मुस्लिम आबादी को लेकर जाति सर्वेक्षण से पता चला कि 44,57,012 लोग अल्पसंख्यक समुदाय से हैं, जो कुल आबादी का 12.56 प्रतिशत है। उनमें से, 35,76,588 पिछड़े वर्ग (बीसी) से हैं, जिनकी संख्या 10.08 प्रतिशत है, जबकि 2.48 प्रतिशत अन्य जाति (ओसी) से हैं, जिनमें 8,80,424 व्यक्ति हैं। यानी तेलंगाना में मुस्लिमों का एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम पसमंदा समुदाय का है। अगर इसे 46.25 फीसदी ओबीसी से जोड़ दिया जाए तो राज्य में ओबीसी की आबादी 56.33 हो जाती है।
तेलंगाना के जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों ने राज्य की सामाजिक और राजनीतिक संरचना पर नई बहस छेड़ दी है। यह आंकड़ा राज्य की राजनीतिक व्यवस्था में ओबीसी समुदाय के प्रतिनिधित्व की कमी को उजागर करता है, जहां अभी भी ऊंची जातियों का दबदबा बना हुआ है।
तेलंगाना की सामाजिक संरचना में जाति एक प्रमुख कारक है। राज्य में विभिन्न जातियों और समुदायों का मिश्रण है, जिनमें ओबीसी, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और सवर्ण जातियां शामिल हैं। अब साफ हो गया कि ओबीसी समुदाय राज्य की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा है, जो 46.25% है। इसके बाद अनुसूचित जाति (19%) और अनुसूचित जनजाति (14%) का स्थान आता है। मुस्लिमों की आबादी 12.8 फीसदी है। सवर्ण जातियों की आबादी लगभग 20% है। ओबीसी समुदाय में कई जातियां शामिल हैं, जैसे कि गौड़ा, गोल्ला, कापू, वड्डर, और मुस्लिम पिछड़े वर्ग। ये समुदाय मुख्य रूप से कृषि, मजदूरी और छोटे व्यवसायों से जुड़े हुए हैं। हालांकि, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से ये समुदाय अभी भी पिछड़े हुए हैं। सरकारी नौकरियों और शिक्षा में इनका प्रतिनिधित्व कम है, जो सामाजिक असमानता को और बढ़ावा दे रहा है।
तेलंगाना की राजनीतिक व्यवस्था में ओबीसी समुदाय का प्रतिनिधित्व उनकी आबादी के अनुपात में नहीं है। राज्य के विधानसभा और संसदीय सीटों पर अधिकांश नेता ऊंची जातियों से आते हैं। यह असमानता राजनीतिक दलों की नीतियों और चुनावी रणनीतियों में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। बीजेपी, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) और कांग्रेस जैसे प्रमुख राजनीतिक दलों में ऊंची जातियों का प्रभुत्व है। बीआरएस पहले टीआरएस के नाम से जानी जाती थी। इसके संस्थापक और तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) वेलमा जाति से हैं, जो एक ऊंची जाति है। इसी तरह कांग्रेस नेता और मौजूदा मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी भी अगड़ी जाति से आते हैं। बीजेपी में तो ऊंची जाति के नेताओं का बोलबाला है।
ओबीसी, एससी और मुस्लिम समुदाय के नेताओं को तमाम दलों के भीतर महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति नहीं मिलती है।राज्य के विधानसभा चुनावों में ओबीसी उम्मीदवारों की संख्या कम होती जा रही है। उदाहरण के लिए, 2018 के विधानसभा चुनावों में, टीआरएस ने 119 सीटों में से केवल 30 सीटों पर ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट दिया। इसी तरह, कांग्रेस और बीजेपी ने भी ओबीसी उम्मीदवारों को कम टिकट दिए। मुस्लिम उम्मीदवारों की तो कोई गिनती नहीं है। इनकी संख्या दो-चार से आगे नहीं बढ़ पाती। यह प्रवृत्ति राज्य की राजनीति में ओबीसी समुदाय के हाशिए पर होने को बताती है।
कांग्रेस सांसद और नेता विपक्ष राहुल गांधी लंबे समय से देशव्यापी जाति जनगणना की मांग उठा रहे हैं। उन्होंने समय-समय पर मोदी सरकार पर इसके लिए हमला किया है। उन्होंने बताया कि कैसे नीतियां तय करने वाले मंत्रालय में सचिव, उपसचिव के पदों पर नामात्र के ओबीसी हैं। वहां उच्च जाति के लोगों की भरमार है। देखना है कि कांग्रेस शासित तेलंगाना में इस रिपोर्ट के बाद कांग्रेस सरकार क्या कदम उठाती है। क्योंकि अन्य दलों की नजरें भी इस पर लगी हुई हैं। अगर इस रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस अपनी नीतियां तेलंगाना के लिए बनाती है तो पार्टी के लिए यह बहुत गेम चेंजर हो सकता है। कांग्रेस यही काम हिमाचल प्रदेश में भी कर सकती है, जहां उसकी सरकार है।
(यह रिपोर्ट यूसुफ किरमानी ने पेश किया)