टैरिफ़ वार: मैक्सिको, कनाडा, चीन के बाद ट्रंप के निशाने पर अब यूरोपीय संघ
डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा, मैक्सिको और चीन के बाद अब यूरोपीय देशों पर टैरिफ़ लगाने की धमकी दी है। हालाँकि उन्होंने इसके लिए कोई समय-सीमा तय नहीं की है, लेकिन उन्होंने कहा है कि यह जल्द ही होने जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा एक दिन पहले लिए गए एक फ़ैसले की वजह से दुनिया भर में 'टैरिफ़ वार' की आशंका बढ़ गई है।
ट्रंप ने शनिवार को उस एग्ज़क्यूटिव ऑर्डर पर दस्तख़त कर दिया जिसमें कनाडा, मैक्सिको और चीन से आने वाले सामानों पर हैवी टैरिफ़ लगाया गया है। ट्रंप के इस फ़ैसले के तुरंत बाद उसके पड़ोसी देश कनाडा और मैक्सिको ने जवाबी कार्रवाई की और अमेरिका पर जवाबी शुल्क लगा दिया। इससे अब एक बड़े आर्थिक संघर्ष भड़कने की आशंका हो गई है। इसी बीच ट्रंप की यूरोपीय संघ को धमकी सामने आई है।
ट्रंप ने कहा कि वह निश्चित रूप से यूरोपीय संघ पर नए टैरिफ लगाएंगे। राष्ट्रपति ने 27 देशों वाले यूरोपीय संघ के साथ अमेरिकी व्यापार घाटे का ज़िक्र करते हुए कहा कि उन्होंने वास्तव में हमारा फायदा उठाया है। उन्होंने कहा, 'मैं यह नहीं कहूंगा कि कोई समयसीमा है, लेकिन यह बहुत जल्द होने जा रहा है।'
ट्रंप ने पहले भी यूरोपीय संघ पर टैरिफ की धमकी दी थी। उन्होंने शुक्रवार को भी ओवल ऑफिस में संवाददाताओं से कहा था कि यूरोपीय संघ ने हमारे साथ बहुत बुरा व्यवहार किया है। उन्होंने कहा था कि टैरिफ़ लगाने की ज़रूरत है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक दिन पहले ही कनाडा, मैक्सिको और चीन पर टैरिफ लगाने के लिए जो आदेश निकाला है उसमें कहा गया है कि चीन से होने वाले सभी आयातों पर 10 प्रतिशत और मैक्सिको तथा कनाडा से होने वाले आयातों पर 25 प्रतिशत शुल्क जाएगा। ट्रंप द्वारा हस्ताक्षर किए गए एग्ज़क्यूटिव ऑर्डर में यह भी शामिल है कि अगर देश अमेरिका के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हैं तो दरों को बढ़ाया जा सकता है।
ट्रंप को जैसी आशंका थी पड़ोसी देश कनाडा और मैक्सिको ने जवाबी टैरिफ़ लगाने की घोषणा कर दी। इससे आर्थिक संघर्ष भड़कने की आशंका बढ़ गई है।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि उनकी सरकार ट्रंप द्वारा मंगलवार से पड़ोसी देश से आयातित सभी सामानों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के निर्णय के जवाब में 155 बिलियन कनाडाई डॉलर मूल्य के अमेरिकी सामानों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाएगी।
मैक्सिकन राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम ने घोषणा की कि मैक्सिको अपने हितों की रक्षा के लिए जवाबी शुल्क लगाएगा और अन्य उपाय करेगा। उन्होंने ट्रंप के इस आरोप को भी खारिज कर दिया कि मैक्सिकन सरकार के आपराधिक संगठनों से संबंध हैं। यूरोपीय संघ ने भी रविवार को कहा है कि अगर अमेरिकी राष्ट्रपति टैरिफ लगाते हैं तो वह 'मज़बूती से जवाब देगा'।
टैरिफ़ क्या है?
आसान शब्दों में कहें तो टैरिफ दूसरे देशों से आयातित सामान पर लगाए जाने वाले कर हैं। अधिकांश टैरिफ सामान के मूल्य के प्रतिशत के रूप में तय किए जाते हैं और आम तौर पर, आयातक उन्हें भुगतान करता है।
आयात किए गए सामानों की क़ीमत बढ़ाने का मक़सद उपभोक्ताओं को सस्ते घरेलू उत्पाद खरीदने के लिए प्रोत्साहित करना है, ताकि उनकी अपनी अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा मिल सके। ट्रंप उन्हें अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने, नौकरियों को बचाने और कर राजस्व बढ़ाने के तरीके के रूप में देखते हैं।
साफ़ है कि ट्रंप ने ऐसे मुद्दे को छेड़ दिया है जो अमेरिका के लिए भी कम महंगा साबित नहीं होगा। ट्रंप के इस निर्णय से मैक्सिको और कनाडा के साथ आर्थिक गतिरोध का ख़तरा बढ़ गया है। बता दें कि मैक्सिको और कनाडा अमेरिका के दो सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं। जब इन दो पड़ोसी मुल्कों से सामानों पर भारी शुल्क लगाया जाएगा तो अमेरिका में इससे महंगाई की स्थिति भी काफी खराब हो सकती है। खुद कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने इसके संकेत दे दिए हैं। ट्रूडो ने माना है कि अगले कुछ सप्ताह कनाडाई और अमेरिकियों के लिए मुश्किल होंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि व्यापार युद्ध से अमेरिकी विकास धीमा होने और महंगाई बढ़ने की संभावना है।
ट्रंप द्वारा अपने पहले कार्यकाल में लगाए गए बाहरी टैरिफ के प्रभाव के आर्थिक अध्ययनों से पता चलता है कि अधिकांश आर्थिक बोझ आख़िरकार अमेरिकी उपभोक्ताओं पर आया था।
टैरिफ से काफी बड़ी आर्थिक बाधा आ सकती है। विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि इससे महंगाई बढ़ सकती है। एक रिपोर्ट के अनुसार येल विश्वविद्यालय के बजट लैब ने अनुमान लगाया है कि नए आयात करों के कारण औसत अमेरिकी परिवार को वार्षिक आय में 1,170 डॉलर का नुकसान होगा। इसके अतिरिक्त, इस कदम से आर्थिक विकास धीमा हो सकता है और किराने का सामान, गैसोलीन, आवास और ऑटो की कीमतें और बढ़ सकती हैं।
तो सवाल है कि ट्रंप आख़िर इतना बड़ा जोखिम क्यों ले रहे हैं? आख़िर उनका मक़सद क्या है?
दरअसल, ट्रंप के टैरिफ एक व्यापक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हैं। उनका कथित उद्देश्य अमेरिकी उद्योगों की रक्षा करने और अवैध इमिग्रेशन व मादक पदार्थों की तस्करी जैसे मुद्दों से निपटने के अपने अभियान के वादों को पूरा करना है। राष्ट्रपति लंबे समय से यह तर्क देते रहे हैं कि अमेरिका की आर्थिक शक्ति को बहाल करने के लिए टैरिफ ज़रूरी हैं। ट्रंप इसके लिए वे 19वीं सदी के अंत से तुलना करते हैं, जब अमेरिका राजस्व के लिए टैरिफ पर बहुत अधिक निर्भर था।
आर्थिक विशेषज्ञों ने ट्रंप की व्यापार नीतियों के दीर्घकालिक प्रभाव के बारे में संदेह जताया है। पूर्व अमेरिकी व्यापार अधिकारी विलियम रेन्श सहित आलोचकों ने कच्चे माल पर टैरिफ लगाने के तर्क पर सवाल उठाया। उनका तर्क है कि आयातित वस्तुओं की लागत बढ़ाकर अमेरिकी निर्माताओं को कम प्रतिस्पर्धी बना सकता है।
अब ट्रंप को इसकी भारी क़ीमत भी चुकानी पड़ेगी। उनके सामने महंगाई को काबू में करने की चुनौती होगी। उनका प्रशासन यह दाँव लगा रहा है कि टैरिफ के कारण आए आर्थिक जोखिम महंगाई को काफ़ी ज़्यादा ख़राब नहीं करेंगे या वैश्विक अर्थव्यवस्था को अस्थिर नहीं करेंगे। दावे कुछ भी किए जाएँ, लेकिन क्या व्यापार युद्ध के नतीजे कभी बेहतर हो सकते हैं?