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बीजेपी को हैदराबाद मेयर की नहीं सीएम की कुर्सी चाहिए!

बीजेपी को हैदराबाद मेयर की नहीं सीएम की कुर्सी चाहिए!

बीजेपी ने हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अपने सबसे भरोसेमंद नेता भूपेंद्र यादव को यह चुनाव जितवाने की ज़िम्मेदारी सौंपी है।

बीजेपी ने हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अपने सबसे भरोसेमंद नेता भूपेंद्र यादव को यह चुनाव जितवाने की ज़िम्मेदारी सौंपी है। भूपेंद्र यादव को अब तक कई राज्यों में विधानसभा और लोकसभा चुनाव के वक़्त भी अहम ज़िम्मेदारी दी जा चुकी है। लेकिन पहली बार उन्हें किसी शहर में  निगम के लिए हो रहे चुनाव में पार्टी की रणनीति को अमल में लाने का काम सौंपा गया है। इसी से साफ है कि बीजेपी हैदराबाद में असरदार प्रदर्शन के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहती है। 

जानकारों का कहना है कि हैदराबाद नगर निगम के ज़रिये बीजेपी तेलंगाना विधानसभा में बहुमत पाने की ओर क़दम बढ़ा रही है। बीजेपी ने इस बार तेलंगाना के अपने चार सांसदों के अलावा तेज़तर्रार युवा नेता और कर्नाटक से लोकसभा सदस्य तेजस्वी सूर्या को प्रचार की कमान सौंपी है। 

सांप्रदायिक रंग दे रही बीजेपी

अब तक जितना प्रचार हुआ है, उसमें बीजेपी चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने में कामयाब रही है। बीजेपी इस बार सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) को कम और असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) को ज़्यादा निशाना बना रही है। हैदराबाद में पुराने शहर का इलाका एमआईएम का गढ़ है। बीजेपी ने असदुद्दीन ओवैसी के गढ़ में सेंध लगाने की योजना बनायी है। यही वजह है कि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और लोकसभा सदस्य बांडी संजय कुमार ने एक बयान में कहा कि चुनाव में जीतने पर हैदराबाद में घुसपैठियों पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करायी जाएगी। 

संजय का आरोप है कि ओवैसी की पार्टी हैदराबाद में गैर-कानूनी तरीके से बांग्लादेश से आये  मुसलमानों और बर्मा से आये रोहिंग्या लोगों को पनाह दिये हुए है। उधर, प्रचार के दौरान बीजेपी युवा मोर्चा के मुखिया तेजस्वी सूर्या ने असदउद्दीन ओवैसी को मुहम्मद अली जिन्ना का नया अवतार बताया। सूर्या ने कई सभाओं में कहा कि एमआईएम को वोट देने का मतलब देश के हित के खिलाफ जाना है। 

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ऐसा पहली बार हो रहा है जब हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में ‘विकास’ का मुद्दा काफी पीछे छूट गया है। बीजेपी ने ‘टीआरएस में परिवारवाद’ को भी इस बार मुद्दा नहीं बनाया है। बीजेपी हिंदुत्व का एजेंडा अपनाये हुए है। 

हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में पाकिस्तान, घुसपैठिए, रोहिंग्या, सर्जिकल स्ट्राइक जैसे शब्दों का इस्तेमाल ज़्यादा हो रहा है। बीजेपी अगर टीआरएस पर हमला बोल भी रही है तो इसमें वह उसकी एमआईएम के साथ सांठगांठ और दोस्ती का हवाला देती है।

सात हज़ार करोड़ का बजट

सात हज़ार करोड़ रुपये के बजट वाले हैदराबाद नगर निगम में कुल 150 सीटें हैं। 2016 में हुए पिछले निगम चुनाव में टीआरएस को 150 में से 99 सीटें मिली थीं। ओवैसी की एमआईएम 44 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर थी। बीजेपी को सिर्फ चार सीटें मिली थी। कांग्रेस को दो और टीडीपी को एक सीट मिली थी। इतिहास बताता है कि हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में राज्य में सत्ताधारी पार्टी की ही जीत हुई है। 

देखिए, इस विषय पर वीडियो- 

दुब्बका ने बदले समीकरण 

करीब तीन महीने पहले यही माना जा रहा था कि टीआरएस आसानी से दुबारा नगर निगम पर अपना परचम लहराएगी। लेकिन हाल ही में दुब्बका विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में बीजेपी की जीत ने समीकरण बदल दिए। टीआरएस के मुखिया और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव (केसीआर) के गृह जिले में विधानसभा सीट जीतकर बीजेपी ने सभी को चौंका दिया। इस जीत ने न सिर्फ बीजेपी नेताओं का उत्साह बढ़ाया बल्कि कार्यकर्ताओं में नया जोश भरा। 

कार्यकर्ताओं के इसी जोश को वोटों और सीटों में बदलने के लिए बीजेपी के रणनीतिकार दिन-रात एक कर रहे हैं। संभव है कि मतदान से पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह भी हैदराबाद में चुनाव-प्रचार कर सकते हैं। 

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गौर करने वाली बात यह भी है कि कांग्रेस और टीडीपी इस चुनाव में बेअसर नज़र आ रही हैं। अलग-अलग समय में दोनों पार्टियों को नगर निगम में बहुमत हासिल था। पिछले चुनाव की तरह इस बार भी इन्हें दो और एक से ज़्यादा सीटें न मिलने का अनुमान है। 

टीआरएस की बढ़त का अनुमान

हैदराबाद की राजनीति पर पैनी नज़र रखने वाले विश्लेषकों में ज़्यादातर का मानना है कि चुनाव में ज़्यादातर सीटें टीआरएस को मिलेंगी। दूसरे नंबर पर हर बार की तरह ओवैसी की पार्टी रहेगी। बीजेपी इस बार अच्छा प्रदर्शन करेगी लेकिन मेयर की कुर्सी से दूर रहेगी। एमआईएम की मदद से टीआरएस अपना मेयर बनवाने में कामयाब रहेगी। 

सूत्रों की मानें तो बीजेपी के रणनीतिकार भी मानते हैं कि मेयर की कुर्सी पाना इस बार मुश्किल है, लेकिन उनकी नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है। इनका यह भी मानना है कि अगर बीजेपी नगर निगम में 30 से 40 सीटें भी जीत लेती है तो विधानसभा चुनाव तक कार्यकर्ताओं का उत्साह बना रहेगा और इसका फायदा भारी जीत से होगा। 

बीजेपी के कई नेता अब यह खुलकर कहने लगे हैं कि दक्षिण में कर्नाटक के बाद तेलंगाना दूसरा ऐसा राज्य होगा जहां उनकी अपनी सरकार होगी।

सूत्र यह भी बताते हैं कि बीजेपी के रणनीतिकारों को भरोसा है कि नगर निगम के चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बाद टीआरएस और कांग्रेस के कई बड़े और प्रभावशाली नेता बीजेपी में शामिल होंगे। 

यह भी कहा जा रहा है कि अगला विधानसभा चुनाव सीधे-सीधे टीआरएस-एमआईएम गठबंधन और बीजेपी के बीच होगा। जानकार बताते हैं कि तेलंगाना में बीजेपी ‘तुष्टिकरण’ को मुद्दा बनाकर ‘ध्रुवीकरण’ की कोशिश करेगी, जैसा कि उसने कई राज्यों में किया है।

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