दिल्ली और मुंबई के बाद अब चेन्नई में भी कोरोना वायरस मरीज़ों की मौत के आँकड़ों में गफलत होने की रिपोर्ट आई है। मौत के आँकड़ों का मिलान करने या यूँ कहें कि सामंजस्य बिठाने के लिए गठित कमेटी ने कहा है कि राज्य की मृतकों की सूची में दर्ज नहीं की गई 236 मौतों को कोरोना संदिग्ध माना जाना चाहिए। कमेटी ने इसकी रिपोर्ट भेज दी है। यदि मौत के ये आँकड़े जोड़े जाते हैं तो मृतकों की इतनी ही संख्या बढ़ जाएगी। फ़िलहाल राज्य में मृतकों की संख्या 1450 है। सबसे ज़्यादा कोरोना संक्रमण के मामले में तमिलनाडु देश में दूसरे स्थान पर है और राज्य में अब तक 1 लाख 7 हज़ार 1 पॉजिटिव केस आ चुके हैं।
वैसे, पैनल की रिपोर्ट के बाद माना जा रहा है कि चेन्नई में कोरोना मरीज़ों की मौत के 236 मामले जोड़े जा सकते हैं। ऐसा महाराष्ट्र में किया जा चुका है। जून महीने के मध्य में महाराष्ट्र में 1328 मौतों का मामला संयोजित किया गया था यानी पहले की मौत के ये आँकड़े राज्य की सूची में जोड़े गए थे। यह सुधार तब किया गया था जब विपक्ष और कुछ रिपोर्टों में भी कोरोना से मौत की संख्या में गड़बड़ी पर सवाल उठाए गए थे।
कुछ ऐसी ही गड़बड़ी का मामला चेन्नई में भी आया है। जून की शुरुआत में जन स्वास्थ्य और निवारक चिकित्सा निदेशालय (DPH) ने पाया कि ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन (GCC) द्वारा बनाए गए डेथ रजिस्ट्री में 236 मौतें दर्ज की गईं, जिन्हें राज्य की टैली में नहीं जोड़ा गया था। 12 जून को DPH ने चेन्नई के लिए कोविड-19 से संबंधित मौतों को समायोजित करने के लिए एक समिति बनाई।
'हिंदुस्तान टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. पी वैदिवेलन के नेतृत्व वाली कमेटी ने यह रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है। इस कमेटी ने इन मौत के मामलों की पूरी जाँच के बाद यह रिपोर्ट जमा की है।
अब कोरोना मृतकों की यह संख्या जोड़ी जाएगी या नहीं, यह इस पर निर्भर करता है कि इन मौतों को इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर प्रोटोकॉल के तहत कोरोना से मौत होना माना जाता है या नहीं।
तमिलनाडु कोविड-19 मृत्यु को पंजीकृत करने के आईसीएमआर के प्रोटोकॉल का पालन करता है। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने कहा, 'भले ही किसी व्यक्ति की आत्महत्या या ल्यूकेमिया से मृत्यु हो, लेकिन पॉजिटिव है तो हम इसे कोविड-19 की मृत्यु के रूप में दर्ज करते हैं।'
टैली में आँकड़े बेमेल होने के लिए कुछ निजी अस्पतालों द्वारा एक प्रक्रियात्मक चूक को ज़िम्मेदार ठहराया गया था। इन अस्पतालों को GCC और DPH दोनों को ही कोविड-19 से संबंधित मौतों की रिपोर्ट करना होता है, लेकिन उन्होंने केवल GCC को संख्या की सूचना दी। निगम द्वारा घर में होने वाली मौतों को भी दर्ज किया जाता है, जिसके पास श्मशानों और कब्रिस्तानों की भी ज़िम्मेदारी है।
ऐसी ही शिकायतें दिल्ली के बारे में भी आई थीं। दिल्ली सरकार ने पूर्व डीजीएचएस अशोक कुमार की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय डेथ ऑडिट कमेटी 22 अप्रैल को गठित की थी। कमेटी को ज़िम्मेदारी दी गई कि वह रोज़ कोरोना संक्रमण से होने वाली हर मौत का ऑडिट करे।
सभी सरकारी और निजी अस्पतालों को कोरोना संक्रमित मृतक की डेथ सीट और मेडिकल रिपोर्ट कमेटी को भेजना था, लेकिन अस्पताल यह प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहे थे। ऐसे में कोरोना संक्रमित की मौत होने के बावजूद सरकार कमेटी की पुष्टि नहीं होने पर उसे रिकॉर्ड में शामिल नहीं कर रही थी। यही कारण है कि अस्पताल में कोरोना संक्रमण से मौत और सरकारी आँकड़ों में अंतर आ रहा था। बाद में तो यह मामला अदालत तक पहुँचा।
उसी दौरान पश्चिम बंगाल के बारे में भी कोरोना मरीज़ों की मौत के आँकड़ों को लेकर सवाल उठ रहे थे।