तमिलनाडु में पुलिस हिरासत में प्रताड़ित करते हुए एक शख्स का दांत तोड़ दिया गया। इस मामले में आईपीएस अफसर का नाम सामने आया है। तमिलनाडु सरकार ने बलवीर सिंह नामक इस आईपीएस को निलंबित कर दिया है। पुलिस हिरासत में यातना के मामलों में अभी तक निचले स्तर के इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारियों के नाम आते रहे हैं, लेकिन तमिलनाडु के के मामले में आईपीएस का नाम आया है। नेशनल कैंपेन अगेंस्ट टॉर्चर की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 के दौरान भारत में हिरासत में 1,731 लोगों की मौत हुईं। इस रिपोर्ट ने द हिंदू के एक संपादकीय को कोट करते हुए लिखा है कि अफसोस की बात है कि पुलिस अधिकारी व्यक्तिगत दुश्मनी निपटाने के लिए अपनी शक्ति और अधिकार का उपयोग करते हैं।
एनडीटीवी की खबर के मुताबिक तमिलनाडु में 2020 बैच के आईपीएस बलवीर सिंह के खिलाफ पर आरोप है कि लगभग दस दिन पहले तिरुनेलवेली जिले के अंबासमुद्रम में बतौर सहायक पुलिस अधीक्षक, उन्होंने कथित तौर पर काटने वाले प्लायर से पांच पुरुषों के दांत निकाल दिए थे और एक नव विवाहित व्यक्ति के अंडकोष को कुचल दिया था। जिन पर यह कार्रवाई की गई उन लोगों पर मारपीट का सामान्य आरोप था। उन लोगों ने जमानत पर बाहर आने के बाद सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयान किया था।
लोगों की जिन्दगी से खिलवाड़ करने वाले पुलिस अधिकारियों का निलंबन कोई सजा नहीं है। रिटायर्ड आईपीएस, लेखिका और मोटीवेशनल स्पीकर मीरान चड्ढा बोरवंकर ने हफ़िंगटन पोस्ट को दिए गए इंटरव्यू में हाल ही में कहा था कि ऐसे अधिकारियों को जल्द से जल्द सजा दी जाए। उनके कारनामों का पर्दाफाश किया जाए। यही इनका इलाज है। जनता से पुलिस का संवाद ही पुलिस की भूमिका को फिर से तय करने में मदद करेगा।
एनडीटीवी के मुताबिक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बुधवार को विधानसभा में बताया कि उन्होंने अधिकारियों को बलवीर सिंह को निलंबित करने का आदेश दिया है। स्टालिन ने कहा- इस मामले में मजिस्ट्रियल जांच की रिपोर्ट के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। पुलिस थानों में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर समझौता करने के लिए कोई जगह नहीं है।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का हालांकि कहना है कि आईपीएस बलवीर सिंह के खिलाफ यह कार्रवाई पर्याप्त नहीं है। उनका कहना है कि पुलिस को उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करना चाहिए था।
एनडीटीवी के मुताबिक मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ काम करने वाले एनजीओ पीपुल्स वॉच के कार्यकारी निदेशक हेनरी टीफागने ने कहा, उस अधिकारी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाना और कार्रवाई शुरू करना जरूरी है।
इस मामले में मजिस्ट्रेट कोर्ट की कथित चूक पर उन्होंने कहा- न्यायिक मजिस्ट्रेट ने इन आरोपियों को उनके पूरे शरीर पर यातना के ऐसे घोर निशानों के बावजूद उन्हें कैसे रिमांड पर भेज दिया? यह राष्ट्रीय कानून रिमांड प्रणाली की विफलता है।
उन्होंने सवाल किया कि मजिस्ट्रेट आधी रात को उनके घर लाए गए ऐसे आरोपियों को रिमांड पर क्यों भेजते हैं? उन्हें यह कहने से कौन रोकता है कि उन्हें कल सुबह 10 बजे पेश करो।
एनडीटीवी के मुताबिक कई लोगों का कहना है कि सथनकुलम पुलिस हिरासत में कथित यातना मौतों के बाद पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के अदालती आदेश के बाद भी कानून लागू करने वालों द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन जारी है।